Nishikant Thakur
आखिरकार भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में लगभग ढाई दशक बाद सरकार बनाकर अपना झंडा गाड़ दिया. इस कालखंड में दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा की सरकार बनी, लेकिन उसके बाद आम आदमी की पार्टी ने दोनों दलों पर इस तरह झाड़ू फेरा कि वह दिल्ली में छा गई और भाजपा या कांग्रेस दोनों के अस्तित्व को एक लंबे समय के लिए दूर धकेल दिया.
जनता की सांसों में इस तरह वह पार्टी और विशेष रूप अरविंद केजरीवाल ही सर्वश्रेष्ठ नेता मान लिए गये. जिसके कारण कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेता शायद यह उम्मीद तक छोड़ चुके थे कि अब उनकी दिल्ली की सत्ता में उनकी दोबारा वापसी होगी. लेकिन, जनता के मन में क्या कुछ चल रहा होता है, यह तो चुनाव में वोटों की गिनती के बाद ही पता चलता है.
चुनाव पूर्व तक तमाम तरह के कयास लगाने वाले यहां तक तो बोलने लगे थे कि इस बार आम आदमी पार्टी की भाजपा से आमने-सामने की लड़ाई है. लेकिन सरकार तो आम आदमी पार्टी की ही बनेगी. लेकिन, जनता सब समझती है और जब यह वह समझ गयी कि पिछले दस वर्षों में उनको धोखे में रखा गया और पार्टी द्वारा यह कहा जाता रहा कि केंद्र सरकार उन्हें काम करने नहीं देती है, जिसके कारण वह दिल्ली का विकास उस तरह नहीं कर पा रही है.
आम आदमी पार्टी केंद्र पर आरोप-दर-आरोप लगाती रही, फिर दिल्ली की जागरूक जनता ने सच को समझकर मतदान कर दिया, जिसके दम पर भाजपा ने आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस का भी पत्ता साफ कर दिया.
लेकिन, यहां अहम सवाल यह है कि आखिर इस बदलाव के पक्ष में क्या दिल्ली में यह भाजपा की आंधी थी या कुछ और ‘खेला’? वैसे, चुनाव जीतने के बाद ऐसा होता ही है. उद्देश्य यही होता है कि पिछली सरकार को इतना कोसो कि समाज के हर वर्ग को इससे नफरत हो जाये और वह पछताती रहे कि इतने दिनों तक गुमराह क्यों होते रहे. वैसे, राजनीतिक भाषा में इस समय को हनीमून पीरियड कहा जाता है, अर्थात कुछ समय इसी उधेड़बुन में समाज का गुजर जाये कि पिछली सरकार ने उन्हें कितना गुमराह किया और वे कितनी गलतफहमियां पालते रहे.
वैसे, पिछली सरकार और नई सरकार का अंतर तो कुछ दिन बाद ही समझ में आने लगता है, लेकिन एक सामान्य नागरिक को पांच वर्ष का इंतजार तो करना ही पड़ता है. नयी सरकार की नीति-रणनीति यही है कि पिछली सरकार द्वारा किये गये हर कार्य को कटघरे में खड़ा कर उसे नकारा साबित करो.
इधर, पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सरेआम आरोप लगाते रहे कि उनके विधायकों को खरीदने का प्रयास भाजपा द्वारा किया जा रहा है, वोटरों को नकद भुगतान देकर उनके पक्ष में मतदान करने लिए धमकाया गया. जो भी हो सरकार तो अब बन गयी. अब कोई कुछ करे, कोई फर्क नहीं पड़ता है. भाजपा की सरकार तो गिर नहीं सकती, क्योंकि उसे किसी न किसी प्रकार भारी बहुमत से सरकार बनाने का अवसर दिल्ली की जनता ने दिया है.
चुनाव में जनता से किये गये वादों को यदि सत्तारूढ़ दल अमल में लाने लगे तो फिर से अगली बार सरकार बनाने में उन्हें न तो कोई परेशानी होगी, न ही उसे झूठ बोलने पड़ेंगे, लेकिन ऐसा होता नहीं है. कई नेता तो ऐसे होते हैं, जो चुनाव जीतने के बाद फिर पलटकर दूसरी बार चुनाव में ही जनता के सामने वोट मांगने और यह कहने कि उन्हें एक बार फिर से अवसर दें, हम काया पलट कर देंगे. जनता फिर उनके बहकावे आ जाती है, लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति बन जाती है. ऐसा ही तो किया देश की राजधानी दिल्ली में, जिसमें आप सरकार शीला दीक्षित सरकार के किये कार्यों को अपने पक्ष में भुनाकर खुद को यशस्वी, ईमानदार और अरविंद केजरीवाल स्वयं को कर्मठ मुख्यमंत्री होने का दम भरते रहे.
अब नई सरकार की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता कहती हैं कि उनकी सरकार यमुना नदी की सफाई और महिला सम्मान के लिए कृत संकल्पित है, लेकिन क्या यह सच साबित हो पायेगा. ऐसा इसलिए कि देश कि गरिमा गंगा सफाई योजना के लिए केंद्र सरकार भी कटिबद्धता दिखाती थी, जिसे स्वयं प्रधानमंत्री ने गंगा में डुबकी लगाकर कहा था. लेकिन, क्या आज गंगा साफ हो गयी? गंगा सफाई के निमित्त सरकार द्वारा करोड़ों रुपये बहाये गये, प्रतिफल क्या है?
इसी तरह दिल्ली की मुख्यमंत्री ने जिस यमुना नदी की सफाई के लिए अपनी सरकार को कृत्य संकल्पित कहा है, उस दावे और वादे को पूरा कर पायेगी? लेकिन चूंकि अभी सरकार नई नवेली है, इसलिए मुख्यमंत्री द्वारा किये गये वादों को झुठलाया नहीं जा सकता. जनता को इतना विश्वास करना और धीरज धरना ही होगा तथा पांच साल तक प्रतीक्षा भी करनी पड़ेगी.
इसी तरह राज्य के पुराने और वरिष्ठ नेता और दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा कहते हैं कि दिल्ली में पर्यावरण की समस्या गंभीर हो गयी है. इस प्रदूषण के कारण कई औद्योगिक इकाइयां दूसरे राज्यों में जा रही हैं. भाजपा सरकार ने अपने संकल्प पत्र में इस समस्या के निदान का वादा किया है. इसके अतिरिक्त कई मुद्दों को पूरा करने की बात कर रहे हैं. सच में जनता को रोजगार और ईश्वर प्रदत्त स्वच्छ हवा में सांस लेने का अधिकार तो है, लेकिन जिन्हें किसी न किसी प्रकार प्रदूषित कर दिया गया है तथा जिसके कारण दिल्ली को विश्व का सबसे प्रदूषित शहर कहा जाता है.
जो भी हो, दिल्ली राज्य के लिए भाजपा की सरकार वर्षों बाद लौटकर आयी है, इसलिए अभी आशा तो करनी हो चाहिए और इस सरकार के किसी वादों पर तंज नहीं कसना चाहिए. अब केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच किसी तरह की तनातनी नहीं होगी, क्योंकि यह राष्ट्रीय राजधानी है. इसके विकास को विदेशों में भी आंका जाता है. अब कोई यह कहने वाला नहीं होगा कि केंद्र सरकार के कारण यह कार्य नहीं करने दिया जा रहा है. वैसे, पिछले दिनों जब कांग्रेस की सरकार थी और शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं, तब कहा जाता है कि उनके मुख्यमंत्रित्व काल में ही दिल्ली का सर्वाधिक विकास हुआ, लेकिन पिछले दस वर्षों में जनता यह सुनते-सुनते आजिज आ चुकी थी, यह एक दूसरे पर आरोप लगाने वाली सरकार कबतक झुठलाती रहेगी.
कहा जाता है कि अंत भला तो सब भला. इसलिए दिल्ली की जनता को भरोसा करना ही पड़ेगा कि दिल्ली अब विकास के नये अंदाज में सामने आयेगी. इसलिए नई सरकार के लिए भी यह राज्य चुनौतियों से भरी रहेगी, अन्यथा झूठ के कोई पैर नहीं होते और समाज के सामने कुछ ही दिनों में सच प्रकट हो जायेगा कि उनका चयन इस बार सही रहा या अगले चुनाव तक उन्हें इसे बदलने का प्रयास करना ही होगा. जो भी हो, अभी से कोई नकारात्मक कयास लगाना उचित नहीं होगा. फिलहाल तेल देखिए और तेल की धार देखिए.
डिस्क्लेमर : लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं, ये इनके निजी विचार हैं.