Lagatar Desk : गुजरात में राहुल गांधी ने कहा और अब वही बात झारखंड कांग्रेस के प्रभारी राजू ने भी दोहरायी. कांग्रेस में कई नेता-कार्यकर्ता ऐसे हैं, जो हैं तो कांग्रेस में, लेकिन असल में वो भाजपाई हैं.
सवाल यह उठता है कि कांग्रेस में कौन-कौन भाजपाई हैं. क्या उसकी पहचान होनी बाकी है या की जा चुकी है. क्या ऐसे नेताओं को पार्टी बाहर का रास्ता दिखाने का माद्दा रखती है या कहीं ऐसा तो नहीं कि हर कोई संदेह के दायरे में है.
बात चाहे जो भी हो, पर अब कांग्रेस को अगले कुछ दिनों में यह स्पष्ट करना होगा, उन नामों को सार्वजनिक करना होगा, जो कांग्रेस में रहते हुए दिल से भाजपाई हैं और मौका मिलते ही पार्टी छोड़ देते हैं.
हमने कुछ कांग्रेसियों से बात की तो यह पता चला कि पांच माह पहले झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले शायद ही कोई बड़ा नेता भाजपा के संपर्क में नहीं था. पार्टी से टिकट नहीं मिलने की स्थिति में वह भाजपा में जा भी सकते थे. यह स्थिति कमोबेश दूसरी पार्टियों में भी थी.
पिछले 4-5 सालों में कांग्रेस के कई नेताओं के नाम उछले, जिनके बारे में कहा गया कि वह भाजपा में जा रहे हैं. दो बार तो ऑपरेशन लोटस के तहत कांग्रेस के 11-12 विधायकों के दिल्ली पहुंचने की बात भी खबरों में आयी.
पिछली विधानसभा में जिन विधायकों के नाम भाजपा के संपर्क में रहने को लेकर चर्चा में आयी, इस बार उनमें से कुछ तो मंत्री भी बन गये. फिर कैसे माना जाये कि कांग्रेस पार्टी अपने ऐसे नेताओं पर कार्रवाई करेगी.
तो क्या यह मान लिया जाये कि कांग्रेस के अधिकांश विधायक अंदर से भाजपाई हैं या सिर्फ वो मौकापरस्त मात्र हैं. लेकिन वो लोग हैं कौन? यह सबसे बड़ा सवाल है.
कांग्रेस के एक बड़े नेता ने बताया कि उनकी पार्टी में अधिकांश लोग केंद्र की भाजपा सरकार से डरे हुए हैं. वह पूरी तरह भाजपाई तो नहीं है, लेकिन डर की वजह से ना कुछ बोलते हैं और ना ही करते हैं.
ऐसे कांग्रेसी नेताओं ने अपने-अपने इलाकों में अपना साम्राज्य कायम कर रखा है. कोई कोयला ढ़ो-बेच रहा है, तो कोई शराब. तो कोई ठेकेदारी में काफी आगे निकला चुका है तो किसी का उद्योग-धंधा है.
कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार कर अकूत संपत्ति हासिल कर ली है और अब उसे बचाने के लिए परेशान चल रहे हैं. उनके बारे में किसी से कुछ छिपा नहीं है. हर कोई जानता है, वो कौन लोग हैं. जो नेतागिरी कम धंधागिरी ज्यादा करते हैं.
ऐसे नेताओं के सामने दिक्कत यह है कि वह अगर मुखर होते हैं, तो उनके धंधे की दिक्कतें बढ़ जाती है. अगर चुप रहते हैं और जरुरत के हिसाब से पाला बदलते हैं, तो फायदे में रहते हैं.
पार्टी को सबसे अधिक दिक्कत उन नेताओं से है, जो पावर के फेर में भाजपा से संपर्क बनाये रखे हुए हैं. मंत्री नहीं बनाया गया, पार्टी में पद नहीं मिला, टिकट नहीं मिली, वैल्यू नहीं मिला, तो पार्टी से बाहर हो जाते हैं.