Kiriburu (Shailesh Singh) : एक बार फिर से आठ सितंबर को गुवा गोलीकांड के शहीदों के मजार पर राजनीतिक मेला लगाया जाएगा. शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद सारे नेता विशेष मंच से राजनीतिक रोटी सेंकने के साथ-साथ सारंडा के वनवासियों व आदिवासियों को एक बार फिर आश्वासन की घूंट पिलायेंगे. ऐसे राजनीतिज्ञों की केवल कथनी होगी, लेकिन करनी कुछ नहीं. कारण यह की गुवा गोलीकांड जिस आंदोलन की याद दिलाता है व इस गोलीकांड में शहीद हुये लोगों ने जो सपना देखा था, वह आज तक पूरा नहीं हुआ है. सिर्फ शहीदों के आश्रितों को सरकार ने नौकरी देकर खानापूर्ति कर दिया. जबकि जल, जंगल, जमीन पर मालिकाना हक, जंगल कटाई से संबंधित दर्ज मुकदमे वापस करने, खदानों से निकलने वाली लाल पानी को रोक इस लाल पानी से बंजर हुई ग्रामीणों के खेतों का मुआवजा, खदानों से प्रभावित गांव के लोगों को खदान में नौकरी, सारंडा क्षेत्र का सर्वागीण विकास, जैसे सड़क, यातायात, चिकित्सा, शिक्षा, शुद्ध पेयजल, संचार आदि में से कुछ भी नहीं हुआ.
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गुवा गोलीकांड का इतिहास
झारखंड अलग राज्य अर्थात झारखंड आंदोलन, वनों पर वनवासियों का अधिकार व गुवा खदान से निकलने वाली लाल पानी से प्रभावित व बंजर हो रही खेतों को नुकसान पहुंचाने से रोकने आदि मांगों से जुड़ी घटना का उदाहरण है गुवा का गोलीकांड. इस गोलीकांड में दर्जनों आदिवासी आंदोलनकारी व पांच बीएमपी के जवान शहीद और दर्जनों घायल हुये थे. लेकिन आज भी गुवा स्थित शहीद स्थल पर इस गोलीकांड से जुडे़ दस शहीदों के ही नाम दर्ज हैं. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1980 के दशक में झारखंड आंदोलन के नाम पर राज्य के अन्य जिलों से आए ग्रामीणों द्वारा भारी पैमाने पर सारंडा के जंगलों की कटाई कर मैदान बना उस वन भूमि पर कब्जा करने का कार्य चल रहा था. इसके खिलाफ गुवा वन विभाग ने कार्रवाई करते हुये इस अभियान में शामिल लोगों समेत कुछ निर्दोषों को भी पकड़ कर जेल भेजना प्रारंभ कर दिया. हालांकि उस समय झारखंड अलग राज्य को लेकर पूरे राज्य में व्यापक आंदोलन चल रहा था व उसी समय यह कार्य भी सारंडा में झारखंड आंदोलन के नाम पर जारी था. इसके खिलाफ वन विभाग की यह कार्रवाई ने आग में घी डालते हुये दोनों कार्य में लगे लोगों को संगठित कर दिया.
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पूर्व विधायक के अह्वान पर हजारों ग्रामीण गुवा में अपनी मांग को लेकर हुए थे संगठित
वहीं, इन दोनों आंदोलनों के अलावा उस समय की इस्को की गुवा खदान (अब सेल) से निकलने वाली लाल पानी से सारंडा के गांवों के खेत व नदी-नाले प्रदूषित हो गए थे. इससे भी सारंडा के ग्रामीण नाराज थे. इन तीनों मामलों को लेकर चक्रधरपुर के उस वक्त के पूर्व विधायक स्व. देवेन्द्र मांझी के अह्वान पर सारंडा, कोल्हान व पोड़ाहाट रिजर्व वन क्षेत्र के हजारों ग्रामीण आठ सितंबर 1980 की सुबह से ही गुवा में वन विभाग व तब की इस्को प्रबंधन के खिलाफ पारंपरिक हथियारों के साथ संगठित होने लगे. आंदोलनकारियों की मांग थी की जंगल कटाई के नाम पर फर्जी मुकदमा कर जेल भेजे गये लोगों को रिहा किया जाए व फर्जी मुकदमाओं को वापस लिया जाए. खदानों से निकले लाल पानी को नदी-नालों व खेतों में छोड़ना बंद किया जाए आदि मांगों को लेकर वन विभाग व इस्को प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी होती रही. इस आंदोलन की विस्फोटक स्थिति को देखते हुये गुवा में धारा 144 लगा बीएमपी व बिहार पुलिस के जवानों को तैनात कर दिया गया.
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आंदोलन में हुई गोलीबारी में पांच जवान हुए थे शहीद
इस आंदोलन में पूर्व विधायक बहादुर उरांव, झामुमो के वर्तमान जिलाध्यक्ष भुवनेश्वर महतो, सुखदेव भगत, सुला पूर्ति आदि आदिवासियों के दर्जनों प्रमुख नेता शामिल थे. सभी आंदोलन का आयोजन करने वाले पूर्व विधायक स्व. देवेन्द्र मांझी के आने का इंतजार आंदोलन स्थल पर करते रहे, लेकिन देवेन्द्र मांझी नहीं पहुंच पाये. इसी बीच आंदोलन व नारेबाजी वन विभाग व इस्को प्रबंधन के खिलाफ तेज होता रहा. वहीं, आंदोलनकारियों को वन विभाग कार्यालय की तरफ पारंपरिक हथियारों के साथ बढ़ता देख स्थिति को समान्य व नियंत्रित करने हेतु आदिवासियों के नेता व झामुमो के वर्तमान जिलाध्यक्ष भुवनेश्वर महतो को बीएमपी जवानों ने अरेस्ट कर लिया. इसके बाद स्थिति विस्फोटक हो गई व नारेबाजी और भड़काऊ ब्यानबाजी भीड़ ने तेज कर दिया. साथ ही भीड़ में से कुछ लोगों ने बीएमपी जवानों को निशाना कर तीर चला दिया, जिसमें बीएमपी के पांच जवान शहीद हो गए व दोनों तरफ से गोलीबारी प्रारंभ हो गई.
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गुवा अस्पताल में इलाजरत आंदोलनकारियों पर जवानों ने कर दिया था अंधाधूंध फायर
इस गोलिबारी में दर्जनों आंदोलनकारी घायल हुये, जिन्हें वर्तमान का गुवा अस्पताल इलाज हेतु ले जाया गया. इस बीच बीएमपी जवानों को पता चला की घायल आंदोलनकारी गुवा अस्पताल में इलाज हेतु गये हैं, तो सभी जवानों ने वहां पहुंच घायलों पर अंधाधूंध फायर कर दिया, जिसमें दर्जनों मारे गये व सैकड़ों घायल हुये थे. इस घटना के बाद लगभग तीन वर्षों तक सारंडा क्षेत्र में दहशत व आक्रोश व्याप्त रहा. लेकिन बाद में पूर्व सांसद कृष्णा मार्डी ने इस्को प्रबंधन की इजाजत के खिलाफ गुवा बाजार में शहीद स्थल का निर्माण कराया. इसके बाद से ही गुवा में 8 सितंबर को शहीद दिवस मनाने का सिलसिला जारी है.
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गुवा गोलीकांड के शहीदों की सूची
ईश्वर सरदार (कैरोम), रामो लागुरी, चन्दो लागुरी (दोनों चुर्गी), रेंगो सुरीन (कुम्बिया), बागी देवगम, जीतु सुरीन (दोनों जोजोगुटू), चैतन चाम्पिया (बाईहातु), चुड़ी हंसदा (हतनाबुरु), जुरा पूर्ति (बुंडु), गोंडा होनहागा (कोलायबुरु) शामिल हैं. हालांकि शहीदों व घायलों की संख्या काफी थी. लेकिन उस वक्त पुलिस के डर से लोग सामने नहीं आये अर्थात कुछ मृतकों को गांव में दफना दिया गया. जबकि अनेक घायलों ने जंगल व गांवों में छूप कर अपना जख्म देहाती दवाओं से भरने का कार्य किया. गुवा के शहीदों के प्रायः आश्रितों को सरकार द्वारा नौकरी दे दी गयी, लेकिन चुर्गी का शहीद चन्दो लागुरी के आश्रित नहीं मिलने की वजह से उसे नौकरी नहीं दिया जा सका.
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वहीं, गुवा गोलीकांड के चश्मदीद बेड़ा राईका निवासी भोरगोड़िया सिरका जिसे गोलीकांड के दौरान पुलिस की गोली उसके जबडे़ को चिरते हुए आर-पार हो गयी थी. उसने अपनी जान बचा घायल अवस्था में जंगल में भाग जंगल की जड़ी-बुटियों से इलाज कर अपना घाव तो ठीक कर लिया, लेकिन उसके घाव आज भी ताजा है. वह प्रत्येक शहीद दिवस के अवसर पर इस उम्मीद के साथ अपने गांव से पैदल लगभग बारह किलोमीटर दूरी तय कर इस लिये आता है कि सरकार उसे भी कुछ मुआवजा दे या दिला सके.
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