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राजधानी में नरक-1: मोरहाबादी के वाल्मीकि नगर की पहचान बन गयी हैं बजबजाती नालियां

info@lagatar.in by info@lagatar.in
November 24, 2020
in झारखंड न्यूज़, रांची न्यूज़
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Ranchi : राजधानी रांची में आये दिन बड़े-बड़े कॉम्पलेक्स और बिल्डिंग का निर्माण हो रहा है. जो मेट्रो की झलक दे रहा है. लेकिन राजधानी रांची के भी दो चेहरे हैं. एक तो जो बड़े कॉम्पलेक्स हैं और उनकी चकाचौंध है. लेकिन उसके पीछे भी एक दुनिया ऐसी है, जो नरक जैसी है. वैसे ही मोहल्लों से लगातार न्यूज नेटवर्क आपको रूबरू करवा रहा है.
उन इलाकों की नारकीय स्थिती के बारे एक सीरीज के माध्यम से आपका ध्यान उस ओर खींच रहा है. कि राजधानी रांची में भी लोग ऐसे जीने को मजबूर हैं.
राजधानी में यदि कहीं नरक देखना है, तो आप मोरहाबादी के चिरौंदी स्थित वाल्मीकि नगर (वांबे आवास) चले जाइये. वहां की स्थिती देखकर आप खुद ही कह पड़ेंगे कि यह तो नरक से भी बदतर है.

साल 2011 में चिरौंदी के विस्थापित परिवारों को रहने के लिए सरकार ने वाल्मीकि अंबेडकर मलिन बस्ती आवास योजना (वांबे) के तहत 867 मकान बनवाये थे. जिसमें विस्थापित परिवारों को गुजर-बसर की जगह दी गयी थी.
इस बस्ती में लगभग 1000 से अधिक सफाईकर्मी भी रहते हैं. लेकिन बस्ती की साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं होने से चारों ओर गंदगी का अंबार लगा है. इस बस्ती में रहने वाले गंदगी के बीच ही जीने को मजबूर हैं.
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अनुमंडल पदाधिकारी के निर्देश के बाद भी कोई सुधार नहीं

इस साल जनवरी महीने में रांची के तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी लोकेश मिश्रा ने वाल्मीकि नगर का औचक निरीक्षण किया. बस्ती के लोगों से मिलकर वहां की समस्या से भी रूबरू हुए. साथ ही सुधार के लिए पदाधिकारियों को निर्देश देते हुए जल्द से जल्द सुविधा मुहैया कराने का निर्देश भी दिया. लेकिन अनुमंडल पदाधिकारी के निर्देशों को भी दरकिनार कर दिया गया और अभी तक कोई सुविधा मुहैया नहीं करायी गयी है.

राजधानी में नरक 1: मोरहाबादी के वाल्मीकि नगर की पहचान बन गयी हैं बजबजाती नालियां
मोरहाबादी के चिरौंदी स्थित वाल्मीकि नगर (वांबे आवास) में फैली गंदगी की तस्वीर

स्थानीय लोगों का कहना है कि आधिकारी आते हैं और देख कर चले जाते हैं. नगर निगम की गाड़ी कभी यहां कूड़ा उठाने नहीं आती है. कोरोना महामारी के बीच भी सफाई को लेकर निगम की ओर से कोई काम नहीं किया गया.
वाल्मिकी नगर में जिस तरह की गंदगी फैली है. उसे देखने से लगता है कि यह स्थान जानवरों के रहने के भी लायक नहीं है. प्रशासन और अधिकरियों की बेरूखी के कारण लगभग 1000 से ज्यादा लोग नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं.

जनसंवाद तक भी पहुंचा था मामला

रघुवर सरकार के कार्यकाल में भी ये मामला जनसंवाद तक पहुंचा था. उस दौरान 5.63 करोड़ रुपये का एस्टिमेट भी तैयार था. जिसके तहत आवासों का जीर्णोंधार करना था. शिकायत मिलने पर सीएमओ की ओर से मामले पर गंभीरता भी प्रकट की गयी थी. तत्कालीन अपर सचिव रमाकांत सिंह ने नगर विकास विभाग को इसपर काम शुरू करने का निर्देश भी दिया था. जिसपर स्वीकृति अब तक नहीं मिल पायी है.
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