- पूर्वजों को नयी फसल अर्पित करने के बाद ही करेंगे सेवन
Ranchi : प्रकृति पर्व सरहुल की तैयारी को लेकर आदिवासी समाज में खासा उत्साह देखा जा रहा है. राजधानी में सभी चौक- चौराहों पर सरना झंडा से पाट दिया गया है. रांची के सभी सरना स्थल को अंतिम रूप दिया जा रहा है. सरना समिति के जगलाल पाहन ने बताया कि आदिवासी समाज के लोग उपवास के दिन कृषि से संबंधित कार्य जैसे हल-कुदाल नहीं चलाते हैं. 23 मार्च को पारंपरिक विधि विधान के साथ सरना उपवास रखा जायेगा. इस दिन लोग नदी, झरना, तालाब में केकड़ा पकड़ने जाते हैं. केकड़ा को पकड़कर रसोई घर में अरवा धागा से बांधकर टांग दिया जाता है. धान बुआई के समय केकड़ा को मसलकर उसे खेतों में छींटा जाता है. कहावत है कि इसे मिलाकर बोने से धान की फसल अच्छी होती है.
मिट्टी के घड़ों में पानी रख कर बारिश की भविष्यवाणी की जायेगी
शाम में पाहन के द्वारा मिट्टी के दो घड़ों में पारंपरिक विधि विधान के साथ सरना स्थल में पानी रखा जायेगा. इसे देख कर सुबह में बारिश की भविष्यवाणी की जाएगी. रांची विश्वविद्यालय के प्रो बिरेद्र सोय ने बताया कि सरना स्थल के मौजा में आने वाले गांवों में कोटवार के माध्यम से गांव में हकवा दी जाती है कि खेतो में कुदाल और हल नही चलायें. इस दिन को सूर्य और धरती के बीच विवाह के रूप में देखा जाता है. सखुवा फूल को सभी फूलों में श्रेष्ठ माना जाता है. इसलिए सखुआ फूल नये साल में पूर्वज और सरना स्थलों में अर्पित किये जाते हैं.
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