Ranchi : रांची समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ झारखंड अब सुलगने लगा है. इस कानून का विरोध मुस्लिम कर रहे हों या नहीं. मगर यहां पर इसके खिलाफ आदिवासी गोलबंद होकर इसके विरोध में आवाज उठाना शुरू कर दिया है. बुधवार को आदिवासी समन्वय समिति के बैनर तले विभिन्न आदिवासी संगठन और सामाजिक नेताओं इसके खिलाफ राजभवन मार्च किया और प्रदर्शन किया. बाद में एक ज्ञापन राज्यपाल को सौंपा गया. प्रदर्शन के मुख्य समन्वयक देवकुमार धान थे. उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता जारी किए जाने के विरोध एक दिवसीय धरना व प्रदर्शन किया जा रहा है. इस धरना में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए. जिसमें मुख्य रूप से उरांव, मुंडा, संथाली, हो, लोहरा, महली, गौड समेत अन्य समुदाय के लोग शामिल हुए. धान ने कहा कि आदिवासियों के विनाश के लिए ही यह काला कानून बनाया गया है. इस कानून से आदिवासियों का आरक्षण खत्म हो जाएगा. साथ ही आदिवासियों के प्रथागत कानून भी खत्म हो जाएंगे. इससे आगे कहा कि पांचवीं अनुसूची, छठी अनुसूची, सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट, विलकिंसन रूल सभी समाप्त हो जाएंगे. कुल मिलाकर आदिवासी इस देश से खत्म हो जाएंगे.
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इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे – आदिवासी संगठन
वहीं धरना को संबोधित करते हुए आदिवासी धर्म अगुवाओं ने साफ तौर पर कहा कि इस कानून के दायरे से झारखंड के जनजातीय समुदाय को अलग रखा जाए, नहीं तो इसे यहां लागू होने नहीं देंगे. इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे. अगर जरूरत पड़ी तो मार-काट भी किया जाएगा. कार्यक्रम की माध्यम से कहा गया कि इस देश में लगभग 10.4 करोड़ आदिवासी रहते हैं. झारखंड में ही 32 प्रकार के अनुसूचित जनजाति पाए जाते हैं. इन सभी जनजातियों के अपने रीति रिवाज,परम्परा और अनुठे प्रथागत कानून है आदिवासियों के प्रथागत कानून यूसीसी के आने से गंभीर रूप से प्रभावित होंगे जनजातियों को उनके अलग प्रथागत कानूनों के कारण हिंदू कानूनों से मुक्त रखा गया है. परंतु आने वाले समय में यूसीसी लागू होने पर और प्रथागत कानूनों के अभाव में उन्हें हिंदू माना जाएगा. झारखंड में बहुसंख्यक अनुसूचित जनजाति समाज पितृसत्तात्मक है, वह विरासत और उत्तराधिकार कानून में भी लागू होती है.
वे पितृसत्तात्मक पद्धति का पालन करते हैं. सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट और विल्किंसन कानून के तहत जनजातियों को सुरक्षा मिला हुआ है. यूसीसी आने के बाद इनकी जल जंगल और जमीन खत्म हो जाएगा. यह आदिवासियों के सामाजिक परंपरा को नष्ट कर देगा अनुसूचित क्षेत्रों में पारंपरिक निकायो पड़हा, मुंडा – मानकी,माँझी परगनैत, ढोकलो सोहोर आदि आदिवासियों के स्वशासन का बल देता है यह सभी खत्म हो जाएंगे. कहा जाए तो इस देश से आदिवासी समाप्त हो जाएंगे. इस क्षेत्र से पांचवी अनुसूची एवं देश से पेसा कानून,सभी स्तरों पर आरक्षण, एसटी अत्याचार कानून, वन अधिकार कानून, सब कुछ समाप्त हो जाएंगा. जिससे आदिवासियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा.कार्यक्रम में पूर्व और समन्वय समिति के मुख्य संयोजक देवकुमार धान, पूर्व मंत्री एवं अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की अध्यक्ष गीताश्री उरांव, पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष देंवेंद्र नाथ चांपिया, आदिवासी जनपरिषद के अध्यक्ष प्रेम शाही मुंडा, आदिवासी रक्षा मंच के मुख्य संयोजक लक्ष्मीनारायण मुंडा, केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की, रामचंद्र उरांव, सुनील फकीरा, कुदरसी मुंडा, नारायण उरांव, निरंजना हेरेंज, दयामनी बारला, दखिन किस्कू यदुनाथ तियू, दामोदर हंसदा, शयाम सुन्दर करमाली, सवना मुंडा महावीर लोहरा जलेश्वर उरांव, मुंशी मुंडा सुधीर किस्कु सैकड़ों की संख्या में आदिवासी शामिल थे.
आदिवासी नेताओं के अनुसार आदिवासियों के जीवन में पड़ेगा यह प्रभाव
-देश में 730अनुसूचित जनजातियां हैं, जो कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है. 2011की जनगणना के अनुसार झारखंउ में 32 जनजातीय हैं.
-प्रत्येक जनजातियों का का अपना रीति-रिवाज, परंपरा और प्रथागत कानून है. जो उनके व्यक्तिगत कानूनों के आधार पर भी है.
-वे विभिन्न संवैधानिक प्रावाधनों के तहत संरक्षित हैं. जैसे अनुच्छेद 13 (3), (क), 23 (धर्म की स्वतंत्रता), 29-30 (सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार, पांचवीं अनुसूची).
-इसके अलावे भीम नारायण लोकुर समिति 1965 के अनुसार, विशिष्ट संस्कृति उन्हें एसटी के रूप में निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण आधारों में से एक है. प्रथागत कानून जो यूसीसी के आने से गंभीर रूप से प्रभावित होंगे.
-आदिवासी प्रथागत कानून किसी विशिष्ट धर्म से उत्पन्न नहीं होते हैं. बल्कि वे प्राचीन काल से सामाजिक मानदंडों और प्रथाओं से उत्पन्न होते हैं. धार्मिक संहिता और दस्तावेजीकरण के अभाव में यूसीसी उनके हितों को प्रभावित करेगा.
-हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी, यहुदियों जैसे अन्य प्रमुख धर्मों के तरह प्रथागत कानूनों को प्रलेखित/संहिताबद्ध नहीं किया है. ऐसे में कई जनजातियों के रीति-रिवाजों और कानूनों को भी जानना भी मुश्किल है. इसलिए झारखंड में यह अनावश्यक और अवांछनीय है.
-एसटी को उनके अलग प्रथागत कानूनों के कारण हिंदू कानूनों से मुक्त रखा गया है. न्यायालयों ने भी आदिवासियों को रीति-रिवाज के आधार पर हिंदू कानूनों से अलग रखा है. प्रथागत कानूनों के अभाव में एसटी को हिंदू माना जाएगा और हिंदू कानून लागू होंगे. इससे आदिवासियों की अपनी अलग पहचान और परंपरा खत्म हो जाएगी.
-झारखंड में बहुसंख्यक अनुसूचित जनजाति समाज पितृसत्तात्मक है. वे विरासत और उत्तराधिकार की पितृसत्तात्मक पद्धति का पालन करते हैं. इन्हें सीएनटी-एसपीटी अधिनियम और विल्किंसन नियम आदि के तहत सुरक्षा मिलते हैं. यूसीसी सामाजिक संरचना को अस्थिर करेगा.
-तमाम कानून के बावजूद वर्तमान में झारखंड में अन्य अवैध तरीके से जमीन हड़पी जा रही है. अवैध बिक्री-खरीद बढ़ेगी, जो पांचवी अनुसूचित और रेवन्यू कानूनों के भावना के विपरित होगा. रैयती और आदिवासी जमीन तेजी से हस्तांरित होने लगेंगे.
-पांचवीं अनुसूची के पैरा 5 (1) के तहत राज्यपाल को अनुसूचित क्षेत्रों में लागू होने वाले केंद्रीय या राज्य अधिनियमों में अपवाद और उपारंतरों के तहत संसोधन लाने का अधिकार दिया गया है. इसलिए अनुसूचित जनजातियों के हितों में यूसीसी कानून अनुचित है.
-एक बार जब यूसीसी कस्टम आधारित कानूनों पर हावी हो जाता है, तो यह पांचवी अनुसूची में निहित अन्य प्रवाधानों को प्रभावित करेगा.
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