Manish Bhardwaj
Ranchi : झारखंड सरकार ने जमीन के म्यूटेशन (नामांतरण) को पारदर्शी और सुरक्षित बनाने के लिए जियो टैगिंग सिस्टम लागू किया है. इसके तहत म्यूटेशन तभी होगा, जब राजस्व उपनिरीक्षक खुद मौके पर जाकर जमीन का भौतिक सत्यापन करेंगे और वहीं से GPS लोकेशन वाली फोटो अपलोड करेंगे. इसका उद्देश्य जमीन से जुड़े फर्जीवाड़ा रोकना और रिकॉर्ड को और अधिक सुरक्षित करना है. लेकिन जमीनी सच्चाई इससे परे है.
बिना तैयारी के चालू कर दिया सिस्टम
लगातार डॉट इन के संवाददाता ने जब राज्य के कई जिलों में अंचल अधिकारियों से बात की, तो पता चला कि कई जगहों पर न तो पर्याप्त प्रशिक्षण दिया गया है और न ही तकनीकी आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं, बावजूद इसके नई व्यवस्था को पहले ही लाइव कर दिया गया है. रांची जिले में अधिकारियों को सिर्फ ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया, वह भी अधूरा.
इसके अलावा, इंटरनेट की धीमी गति और फोटो अपलोड करने जैसी तकनीकी समस्याएं भी काम में बड़ी रुकावट बन रही हैं. पलामू जिले में कुछ इलाकों में धीरे-धीरे म्यूटेशन की प्रक्रिया शुरू की गई है, लेकिन वहां भी अधिकांश म्यूटेशन फाइलें लंबित पड़ी हैं, जिससे आम जनता को काफी परेशानी हो रही है. अधिकारियों का कहना है कि जब तक पर्याप्त प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता नहीं दी जाती, तब तक यह व्यवस्था अपेक्षित लाभ नहीं दे पाएगी.
झारखंड में हालात कमोबेश एक जैसे
म्यूटेशन की समस्या सिर्फ एक-दो जिलों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे झारखंड में हालात कमोबेश एक जैसे हैं. सभी जिलों में म्यूटेशन को लेकर आवेदन किए जा रहे हैं, लेकिन उनका निपटारा नहीं हो पा रहा. आम लोग महीनों से जमीन के कागज लिए दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन काम अधूरा ही रह जा रहा है. आवेदन फंसे हैं, फाइलें अटकी हैं और अफसर खुद तकनीकी और प्रशासनिक उलझनों में फंसे हैं. सरकार की तरफ से स्थिति पर कोई ठोस पहल होती नहीं दिख रही. ऐसा लग रहा है, जैसे प्रशासनिक स्तर पर गहरी नींद सोई हुई है, जबकि जनता रोजमर्रा की जमीन से जुड़ी परेशानियों से जूझ रही है.
एक कर्मचारी, कई हलकों की जिम्मेदारी! सिस्टम पर बोझ, समाधान नदारद
राज्य भर के अंचल कार्यालयों में म्यूटेशन की नई व्यवस्था ने कर्मचारियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. कई जगहों पर एक ही कर्मचारी को दो से तीन हलकों की जिम्मेदारी सौंप दी गई है. जबकि एक-एक हलका में 10 से 40 गांव तक शामिल होते हैं. इन हलकों में जाकर जमीन का मुआयना करना, फोटो लेना और फिर डेटा को ऑनलाइन सिस्टम में अपलोड करना, इन सब कामों में समय के साथ संसाधनों की भी जरूरत होती है. लेकिन सरकार की ओर से न तो कोई यात्रा भत्ता दिया जा रहा है, न ही इंटरनेट या अन्य तकनीकी संसाधन मुहैया कराए गए हैं. कर्मचारियों को अपने मोबाइल से, अपने खर्चे पर डेटा अपलोड करना पड़ रहा है. ऐसे में कर्मचारियों पर सिर्फ बोझ बढ़ता जा रहा है और समाधान कुछ नहीं हो रहा है.
पहले बहाली और ट्रेनिंग, फिर तकनीक लागू करें : अधिकारियों की दो टूक
अंचल अधिकारियों का कहना है कि सरकार ने बुनियादी तैयारियों को दरकिनार कर जल्दबाजी में इसे लागू कर दिया. पहले रिक्त पदों पर बहाली की जानी चाहिए, ताकि काम का बोझ संतुलित हो. फिर सभी कर्मचारियों को पूरी तरह प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. उसके बाद ही इस तरह की तकनीकी व्यवस्था को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए. ताकि इसका नुकसान आम जनता को ना झेलना पड़े.
DC हर बैठक में कहते - म्यूटेशन जल्दी करो, पर कैसे
हर जिले में उपायुक्तों की बैठकों में एक बात बार-बार दोहराई जाती है कि लंबित म्यूटेशन के मामलों का जल्द निपटारा करें. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. क्या उपायुक्तों को सच में मौजूदा हालात की जानकारी है या फिर ये निर्देश सिर्फ कागजी बैठकों और दबाव के आंकड़ों तक सीमित रह गए हैं.
जियो टैगिंग का मकसद सुधार, पर यह बन रही जनता की परेशानी का कारण
सरकार की मंशा भले ही जमीन व्यवस्था में पारदर्शिता और सुधार लाने की हो, लेकिन अधूरी तैयारी और आधे-अधूरे सिस्टम के साथ कोई भी सुधार अव्यवस्था में बदल जाता है. फिलहाल झारखंड में म्यूटेशन का काम लगभग ठप है. हजारों मामले पेंडिंग हैं. जनता महीनों से चक्कर काट रही है और सरकारी तंत्र चुप है. अगर हालात पर समय रहते गंभीरता नहीं दिखाई गई, तो जियो टैगिंग व्यवस्था, जमीन सुधार की योजना नहीं, नए विवाद और जनता की नई मुसीबत का कारण बन जाएगी.