आदिवासी समुदाय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ बड़ी उम्मीद से देख रहा- महुआ माजी

Ranchi : झामुमो कोटे से नवनिर्वाचित सांसद बनी महुआ माजी ने गुरूवार को राज्यसभा में अपना पहला भाषण दिया. पहले भाषण में उन्होंने झारखंड के आदिवासियों की समस्याओं और उनपर पड़ते महंगाई के असर की बातों को प्रमुखता से उठाया. उन्होंने कहा, "मैं धरती आबा के उस जमीन से आती हूं, जहां के धरती के नीचे अकूत खनिज सम्पदा छिपी हैं. दुर्भाग्य है कि उस धरती के ऊपर रहने वाले लोग बहुत गरीब हैं. आज हम नवनिर्वाचित राष्ट़्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर गौरवान्वित महसूस कर रही हूं. लेकिन यह भी सच है कि आज पूरा आदिवासी समुदाय उनकी तरफ बड़ी उम्मीद से देख रहा है. सभी सोच रहे हैं कि अब निश्चित रूप से उनकी समस्याएं दूर होगी." महुआ माजी ने कहा कि देश में आज जीएसटी और महंगाई से सबसे ज्यादा प्रभावित न केवल झारखंड बल्कि बंगाल, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल सहित तमाम आदिवासी बहुल राज्यों की महिलाओं और बच्चे हो रहे हैं. इसे भी पढ़ें-सीएजी">https://lagatar.in/cag-report-374-projects-incomplete-even-after-spending-rs-4669-crore/">सीएजी

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झारखंड में महिलाओं की तस्करी से सभी वाकिफ 

महुआ माजी ने कहा, "झारखंड महिला आयोग की अध्यक्ष रहने के दौरान वह आदिवासी और महिलाओं की समस्याओं को व्यक्तिगत रूप से जानती हैं. झारखंड में महिलाओं की तस्करी (विशेषकर आदिवासी महिलाओं) की समस्या से सभी वाकिफ हैं. पन्ना लाल जैसे तस्कर आज जेल में हैं. उसने हमारे राज्य से ही केवल 15,000 से अधिक महिलाओं की तस्करी की. ऐसी महिलाएं दूसरे राज्यों में काम के लिए जाती है, लेकिन वहां उनका शारीरिक, आर्थिक, मानसिक शोषण होता है. अब अगर देश में महंगाई बढ़ते जाए, तो आप सोच सकते हैं कि इनपर क्या असर पड़ेगा. इसे भी पढ़ें-बोकारो">https://lagatar.in/bokaro-10-years-rigorous-imprisonment-for-the-guilty-in-the-attempted-rape-case/">बोकारो

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रॉयल्टी का 1.36 लाख करोड़ बकाया-माजी

महुआ माजी ने कहा, "झारखंड एक पठारी इलाका है. यहां के ग्रामीण इलाकों में केवल बरसात के दिनों में ही खेती होती है. बाकी महीने वे आजीविका तलाश करते रहते हैं. वे कम मजदूरी दर पर काम के लिए दूसरे राज्य जाते हैं. झारखंड गरीब नहीं है. यहां की खनिज संपदा इसे अपने आप में समृद्ध बनाती है. लेकिन केंद्र झारखंड से कोयला तो लेता है, पर रॉयल्टी का बकाया 1.36 लाख करोड़ आज तक नहीं दे रहा, जो अभी भी कोल कंपनियों पर बकाया है. डीवीसी के आठ हजार करोड़ वसूलने के लिए झारखंड की बिजली काट दी जाती है." [wpse_comments_template]