Vinit Abha Upadhyay
Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में स्पष्ट किया है कि किसी अधिकारी का पिछला स्वच्छ आचरण अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा दी गई सजा की मात्रा में हस्तक्षेप करने का आधार नहीं हो सकता है, जिसकी बाद में अपीलीय प्राधिकारी और एकल-न्यायाधीश पीठ ने पुष्टि की है. दरअसल हाईकोर्ट सीआईएसएफ, बीएसएल के एक पूर्व सहायक कमांडेंट द्वारा दायर अपील पर विचार कर रहा था, जिस पर अपने कार्यालय में पदस्थापित एक इंस्पेक्टर की जाति पर टिप्पणी करने का आरोप था.
इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एम.एस.रामचंद्र राव और जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की खंडपीठ में हुई. सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि हम यह भी नजरअंदाज नहीं कर सकते कि अपीलकर्ता सीआईएसएफ में एक कर्मचारी था, जो एक अनुशासित बल है. जब आरोप गंभीर हो, जैसा कि मौजूदा मामले में है, तो नरमी की जरूरत नहीं है. अपीलकर्ता पर सीआईएसएफ के सहायक कमांडेंट के पद पर रहने के दौरान आरोप लगाया गया था कि उन्होंने एक एएसआई के सामने एक इंस्पेक्टर की जाति (एससी) के बारे में टिप्पणी करके वर्ष 2008 में कदाचार का कार्य किया था.
वर्ष 2009 में उन्होंने फिर से अपने कार्यालय में उसी व्यक्ति पर अपमानित करने के इरादे से एक अन्य एएसआई के सामने उसकी जाति का उल्लेख करते हुए अपमानजनक और डराने वाली टिप्पणी की. अपीलकर्ता सीआईएसएफ से सेवानिवृत्त हो गया, लेकिन उसे सूचित किया गया कि केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 9 के तहत उसकी सेवानिवृत्ति के बाद भी उसके खिलाफ जांच जारी रहेगी.
चार्ज मेमो और विभागीय कार्रवाई शुरू करने की चुनौती देते हुए अपीलकर्ता ने एक याचिका दायर की थी. अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप साबित हुए हैं और स्थायी आधार पर मासिक पेंशन में 20% की कटौती और उसकी पूरी ग्रेच्युटी जब्त करने का जुर्माना लगाया गया है. इसके बाद अपीलकर्ता ने विभागीय अपील दायर की, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया.
अपीलीय प्राधिकारी के आदेश के खिलाफ उनकी अपील भी खारिज कर दी गई. जिसके बाद सिंगल बेंच के आदेश को डबल बेंच में चुनौती दी गई. जहां यह तर्क दिया गया कि अधीनस्थ पदाधिकारी को उसकी जाति के आधार पर गाली देने और उसे डराने और अपमानित करने का प्रयास करने के बारे में था और ऐसा आचरण एक सरकारी कर्मचारी और संघ के सशस्त्र बल में सेवा के लिए अशोभनीय था.
इस पहलू का निर्णय आपराधिक न्यायालय में नहीं किया गया था. चार्ज मेमो में इस्तेमाल किए गए शब्द ‘घोर कदाचार’ का मतलब यह भी है कि कदाचार एक ‘गंभीर’ कदाचार है, यानी बेहद गंभीर प्रकृति का है और केवल इसलिए कि चार्ज मेमो में ‘गंभीर’ कदाचार शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है, अपीलकर्ता इसका लाभ नहीं उठा सकता है. इस संबंध में रजनी कांत पात्रा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी.
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