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शहीद ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की वैचारिक विरासत

info@lagatar.in by info@lagatar.in
March 23, 2022
in ओपिनियन
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Faisal Anurag

शहीद ए आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू भारतीय जनगण की स्मृति और चेतना का एक अटूट हिस्सा हैं. ये शहीद न केवल भारतीय स्वतंत्रता, सामाजिक आर्थिक समानता और हर तरह की गैरबराबरी के खिलाफ चलने वाले हर संघर्ष की प्रेरणा हैं. आज के राजनैतिक माहौल में भगत सिंह की पूरी विरासत और वैचारिक चेतना पर दावेदारी करने के प्रयास आम हैं. लेकिन उनके विचारों में वह धार है जो राजनैतिक दलों के लिए पचा पाना आसान नहीं है. एक ऐसी चमक इन अजीम शहीदों की है जो आम लोगों को गहन अंधकार में भी उम्मीद से भर देती है. भगत सिंह और उनके साथियों ने क्रांति यानी संपूर्ण बदलाव विचार को स्थापित किया.

शहादत के ठीक पहले वकील प्राणनाथ मेहता ने भगत सिंह से अंतिम मुलाकात की थी. प्राणनाथ मेहरा ने अपने संस्मरण में लिखा है ” भगत सिंह ने मुसकुरा कर मेरा स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब ”रिवॉल्युशनरी लेनिन” लाए या नहीं ? जब मेहता ने उन्हें किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानों उनके पास अब ज़्यादा समय न बचा हो. मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे? भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बगैर कहा, “सिर्फ़ दो संदेश…साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और ”इंक़लाब ज़िदाबाद!”

इंकलाब जिंदाबाद और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद वह विचार है जो भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के राजनैतिक विचार और भविष्य की परिकल्पना को व्यक्त करते हैं. भगत सिंह और सुखदेव कॉलेज के जमाने से भारत की आजादी,संघर्ष के तरीके और क्रांति की राह की तलाश करते रहे. राजगुरू Hindustan Socialist Republican Association (HSRA) से जुड़ने के बाद भगत सिंह के हमराही बन गए थे. एचआरए में समाजवादी शब्द जोड़ने में भगत सिंह और सुखदेव की महत्वपूर्ण भूमिका थी. भगत सिंह के सहयोगी शिव वर्मा ने इसपर विस्तार से लिखा है. भगत सिंह और उनके साथियों के दस्तावेज के प्रकाशन के बाद से इस क्रांतिकारीधारा की वैचारिक दृढ़ता और उसकी गहरायी ने देश के युवाओं, मजदूरों और किसानों को उद्वेलित किया. भगत सिंह के जेल नोटबुक के प्रकाशन के बाद तो स्पष्ट हो गया कि जेल जीवन में फांसी की प्रतीक्षा करते हुए वे क्या पढ़ रहे थे और उनके चिंतन और उनके विचार की दिशा क्या थी. जेल नोटबुक भगत सिंह के भाई कुलबीर सिंह के पास से उपलब्ध हुई और वह अब दुनिया की कई भाषाओं में प्रकाशित है. जेल नोटबुक उन नोट्स से भरे हैं जो भगत सिंह विभिन्न स्रोतों से जान रहे थे और जो उन्हें प्रभावित भी कर रहे थे.

जेल नोटबुक के पृष्ठ दो पर पहला उद्धरण भगत सिंह ने सोशलिज्म साइंटिफिक एंड यूटोपियन से लिया है जिसमें संपत्ति की मुक्ति के बारे में लिखा है. इसी पृष्ठ पर फ्रंडरिक एंगेल्स की रचना द ओरिजिन ऑफ फैमिली से लिए गए उद्धरण हैं. पूरा नोटबुक ऐसे ही उदाहरणों से भरा है. जिसमें ब्रंर्टेंड रसेल, पेट्रिक हेनरी,,राबर्ट जी इंगरसोल, आपटन सिंकिलेयर, रिचर्ड् जेफरीज पेट्रिक मैकमिलन, होरेस ग्रिले, कोको होशी,मिल मार्क्स, जान स्टुअर्ट मिल्स, गोर्की, वाल्ट हिटमेन, इब्सन जैसे बौद्ध भिक्षुक के कथन को दर्ज किया है. इसके साथ की कीट्स और वर्डसवर्थ जैसे कवियों की रचना भी दर्ज हैं. 23 साल की उम्र में उनकी शहादत हुई और भगत सिंह जिन पुस्तकों के सहारे भारतीय क्रांति के पथ का अन्वेषण कर रहे थे, उनसे दुनिया को बदलने में बड़ी भूमिका निभायी है. 1917 के बाद के क्रांतिकारियों के लिए बेहद प्रेरक थी. 1917 के सोवियत क्रांति ने तमाम मुक्तिकामी आंदोलनों और क्रांतियों को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया. जेल नोटबुक पर इसके असर को देखा जा सकता है.

भगत सिंह न केवल एक स्वतंत्र भारत के लिए लड़ रहे थे बल्कि भारत की उन सामाजिक सच्चाइयों से भी रूबरू थे जिसका दंश देश का एक बड़ा तबका झेल रहा था. यह समस्या थी अछूतों की. अछूतों की मुक्ति के लिए भारत में तीन प्रयास अलग-अलग तरीके से हुए. एक गांधी के नेतृत्व में जिसमें जाति के सवाल को गांधी जी ने अपने नजरिए से देखा परखा. डॉ. अंबेडकर एक दलित की पीड़ा के स्वयं भुक्तभोगी थे. उनकी वैचारिक चेतना ने जाति उन्मूलन की बात की और उसके लिए एक दीर्घकालिक संघर्ष की नींव पड़ी.

भगत सिंह ने भी इस सवाल को संबोधित किया और किसी भी मनुष्य के जाति या धर्म के नाम पर उत्पीड़न के खिलाफ रास्ता दिखाया. उनके लेखों में धर्म और सांप्रदायिकता के सवाल का विस्तार से उल्लेख है. मैं नास्तिक क्यों हूं जेल में लिखा गया उनका वह निबंध है जिसने भारत के पूरे समाज को प्रभावित किया.

क्रांति के लिए भारतीय वैचारिक अवधारणा की नींव भगत सिंह के लेखन में है. 83 साल बाद इन भगत सिंह और उनके साथियों के दस्तावेज को पढ़ कर लगता है कि वे कितने दूरदर्शी थे. उनका इंकलाब संपूर्ण बदलाव के लिए था. सत्ता हासिल करने की तुलना में उनका प्रयास आम मेहनतकश को राजनैतिक तौर पर सत्ता और राज्य संचालन के केंद्र में रखना था. आज का जमाना जब कि किसान और श्रमिकों के लिए शोषण और अन्याय को बढ़ावा देता है और कॉरपारेट राजनीति ने लोकतंत्र का एक तरह से अपहरण कर लिया है.

ऐसे में भगत सिंह की याद का एक ही मतलब है भारत के मेहनतकश नागरिकों के अधिकारों और राजनैतिक हिस्सेदारी की प्रक्रिया के माध्यम से आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ताने बाने में दखल दे कर बदलना. राजनीतिज्ञों के लिए भले ही भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की शहादत प्रतीक भर हो लेकिन मेहनतकश जनगण के लिाए वह वास्तविक मुक्ति का शिक्षाशास्त्र है.

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