Ranchi: अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, क्षेत्रीय केंद्र रांची और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में “अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2025 स्मरणोत्सव” एकदिवसीय संगोष्टी श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में आयोजित हुई. इस दौरान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक, डॉ. कुमार संजय झा ने कहा कि मातृभाषा में हमारी संस्कृति को सुरक्षित रखने की अपार शक्ति है. लेकिन वर्तमान समय में यह कमजोर हो रही है. पहले शादी-विवाह और पारिवारिक अवसरों पर जो पारंपरिक गीत गाए जाते थे, वे आज की पीढ़ी अनजान हो रहे हैं. इसके कारण यह केवल भाषा का नहीं, बल्कि संस्कृति का भी ह्रास है.
मातृभाषा भारतीय संस्कृति की सृजन का आधार हैः कुलपति
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति, डॉ. तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि भारत बहुभाषिक और बहुजातीय देश है, जहां अनेकता में एकता इसकी विशेषता है. चिंतन, मनन, ज्ञान-विज्ञान और सृजन का आधार भी है. डॉ.रामदयाल मुंडा आदिवासी कल्याण शोध संस्थान, के पूर्व निदेशक रणेन्द्र कुमार ने कहा कि भाखा और भाषा के बीच विभाजन अंग्रेजों की विभाजनकारी नीति का परिणाम रहा है. झारखंड में 32 जनजातियों की अपनी अपनी भाषाएं हैं. ये सभी भाषाए लुप्त हो रही हैं. इसे बचाने के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता है.
साहित्य के अभाव में मातृभाषाएं अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैंः जिंदर सिंह मुंडा
साहित्य पुरस्कार से सम्मानित महादेव टोप्पो ने कहा कि मातृभाषाएं स्वयं नहीं मरतीं, बल्कि मारी जाती हैं. भाषाओं का स्वरूप तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों से निर्धारित होता है. हर राष्ट्र के राष्ट्रीय प्रतीकों में भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. जिंदर सिंह मुंडा ने कहा कि मातृभाषा के संरक्षण के लिए बौद्धिकता, पठनीयता और विद्वता का सहारा लिया जाना चाहिए. क्षेत्रीय जनजातीय भाषा के कई शब्द हिंदी में सम्मिलित हो चुके हैं, लेकिन लिखित साहित्य के अभाव में मातृभाषाए अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं. संत जेवियर कॉलेज के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष, डॉ. कमल बोस कहा कि राष्ट्र निर्माण में राष्ट्रभाषा, राज्यभाषा और मातृभाषा सभी का योगदान रहा है. हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में भारत को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य करती है.
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