Ranchi : झारखंड हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि भूमि अधिग्रहण के मामलों में राशि और ब्याज रहित राशि के बीच कोई अंतर नहीं है. क्योंकि एक बार ब्याज को उस राशि में शामिल कर लिया जाता है, जिसके लिए अवार्ड दिया जाता है तो उसे अलग नहीं किया जा सकता. यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत भूमि अधिग्रहण निष्पादन मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश रद्द करने के लिए दायर याचिका पर आया, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय के आधार पर गणना चार्ट के विरुद्ध डिक्री धारक की गणना पर आपत्ति खारिज कर दी गयी थी.
याचिकाकर्ता ने अदालत में दिया तर्क
याचिकाकर्ता ने सुनवाई के दौरान कोर्ट में बताया कि 1 मई 2013 से 31 अगस्त 2020 तक 15% प्रति वर्ष ब्याज के रूप में 3,27,765.12 रुपये का भुगतान करना था. लेकिन बीसीसीएल ने गणना चार्ट तैयार किया, जिसमें 1 मई 2013 से 31 जनवरी 2023 तक 15% ब्याज की गणना केवल 2,75,896.66 रुपये की मूल राशि पर की गयी. इस प्रकार कुल अवार्ड राशि में पहले से अर्जित ब्याज का एक हिस्सा शामिल नहीं है. जबकि ब्याज सहित मुआवजा 6,03,661.78 रुपये हो गया. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उनकी भूमि भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) द्वारा अधिग्रहित की गयी और उनके नाम पर अवार्ड तैयार किया गया, इसके बाद याचिकाकर्ता ने भूमि अधिग्रहण न्यायाधीश के समक्ष निष्पादन मामला दायर किया, जिसमें अर्जित ब्याज के साथ बढ़ी हुई दर पर मुआवजे का भुगतान करने का आदेश देने का आग्रह किया गया. इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संजय द्विवेदी की कोर्ट में हुई.
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