- जमशेदपुर में स्व. रामसनेही मिश्रा ने की थी रामलीला मंचन की शुरुआत
Jamshedpur (Vishwajeet Bhatt) : पूरे लौहनगरी में दुर्गोत्सव की धूम है. भव्य पंडाल व आकर्षक देवी प्रतिमा के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ उमड़ रही है. लेकिन इस चकाचौंध में इस वर्ष रामलीला का आनंद लेने से लोग वंचित हो गए हैं. बीच में कोरोना महामारी व अन्य कारणों से एक-दो बार के व्यवधान को छोड़ दें तो 1922 से यहां रामलीला का हर वर्ष मंचन होता रहा है. इस वर्ष 2024 में होने वाली रामलीला रामफल मिश्रा के असामयिक निधन के कारण स्थिर की गई है. इसलिए इस वर्ष रावण दहन भी नहीं होगा. गत पांच अक्टूबर को रामलीला के लिए बनाए गए पक्के मंच पर सुंदरकांड पाठ का आयोजन करके परंपरा का निर्वाह कर दिया गया.
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जमशेदपुर में रामलीला मंचन की शुरुआत 1922 में स्व. रामसनेही मिश्रा ने की थी. उस जमाने में कोई बहुत बड़े और मझे हुए कलाकार नहीं होते थे. न ही उनकी कोई फीस या पारिश्रमिक होती थी. शहर के कुछ लोग ही आपस में मिलकर रामलीला के सभी पात्रों के रोल तय करते थे और उसका बहुत लगन और मेहनत से रिहर्सल करके स्थानीय लोग ही रामलीला की इतनी जीवंत प्रस्तुति करते थे कि हजारों हजार की भीड़ यहां रामलीला देखने के लिए आती थी. उस जमाने में रामलीला देखने वालों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या बहुत अधिक होती थी.
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शुरुआत के दिनों में कुछ वर्षों तक काशीडीह 10 नंबर लाइन में रामलीला का मंचन किया जाता रहा. छोटी जगह और भीड़ की अधिकता को देखते हुए 1932 में प्रशासन व टाटा स्टील ने रामलीला मैदान को आयोजनकर्ताओं को सुपुर्द कर दिया. कुछ वर्षों तक तो शहर के कलाकार रामलीला का मंचन बिना किसी फीस या पारिश्रमिक के करते रहे, लेकिन कई कारणों से धीरे-धीरे इनकी संख्या कम होने लगी. इसके बाद आयोजनकर्ता बाहर से मंडलियां बुलाने लगे. मंडली में शामिल होने वाले कालाकारों की कोई फीस नहीं हुआ करती थी. जो थोड़ा बहुत पैसा चढ़ावा में आ जाता था, उसी से सभी कलाकार संतुष्ट हो जाते थे. केवल भोजन की व्यवस्था आयोजनकर्ताओं को करनी पड़ती थी. अभी लगभग 15 साल पहले तक कई हजार लोग रामलीला देखने आते थे, जिनमें महिलाओं की संख्या बहुत अधिक होती थी.
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इन कारणों से कई वर्ष बंद रहा रामलीला का मंचन
1979 में शहर में हुई कुछ अप्रिय घटनाओं के कारण रामलीला का मंचन लगभग सात साल तक बंद रहा. इसके बाद 1986 में भाजपा के वरिष्ठ नेता स्व. रामफल मिश्रा और तत्कालीन एसपी अमर प्रताप सिंह के अथक प्रयास के बाद रामलीला का मंचन फिर से शुरू हुआ. इसके पूर्व ही 1982 में तत्कालीन एसडीओ बहादुर प्रसाद ने रामलीला मैदान में रामलीला मंचन के लिए पक्का मंच का निर्माण करा दिया था. धीरे-धीरे महंगाई बढ़ने लगी. रोजी रोजगार की तलाश में कलाकार भी इधर-उधर हो गए. अब जमाना यह आ गया कि मंडलियां पहले से ही अपना पारिश्रमिक तय करके रामलीला मंचन के लिए आने लगीं. खैर, आयोजन समिति भी इन परििस्थतियों के लिए तैयार हो चुकी थी. लोगबाग भी सहयोग के लिए आगे आने लगे थे. सो, रामलीला का मंचन अनवरत जा रही रहा. टीवी व मोबाइल के इस जमाने भी पांच से छह सौ लोग रामलीला देखने के लिए आते हैं.
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सुंदरकांड पाठ का आयोजन करके परंपरा का निर्वाह किया गया
2014 में जब रामफल मिश्रा अधिक उम्र हो जाने के कारण अपने आपको रामलीला का आयोजन करने में असमर्थ पाने लगे तब उन्होंने इसकी जिम्मेदारी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में मनोज कुमार मिश्रा को सौंप दी. कोरोना के दो साल छोड़कर अभी तक रामलीला का मंचन अनवरत हो रहा है. 2024 में होने वाली रामलीला रामफल मिश्रा के असामयिक निधन के कारण स्थिर की गई है. इसलिए इस वर्ष रावण दहन भी नहीं होगा. गत पांच अक्टूबर को रामलीला के लिए बनाए बए पक्के मंच पर सुंदरकांड पाठ का आयोजन करके परंपरा का निर्वाह कर दिया गया. रामलीला उत्सव समिति की सामान्य सभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर मनोज कुमार मिश्रा को नया अध्यक्ष चुन लिया गया. भागवत कथा यथावत फरवरी के अंतिम तथा मार्च के प्रथम सप्ताह में आयोजित की जाएगी, उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है. रामलीला उत्सव समिति में डॉ. डीपी शुक्ला, गया प्रसाद चौधरी, अनिल कुमार चौबे, दिलीप कुमार तिवारी, अवधेश कुमार मिश्रा, महेंद्र नाथ पांडे, जेके शर्मा, जयप्रकाश सैनी, रोहित कुमार मिश्रा, मनीष कुमार मिश्रा, पवन अग्रहरि व रामकेवल मिश्रा शामिल हैं.
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