Sunil Pandey, Jamshedpur: अकबर-बीरबल की कहानियों में लहर गिन कर पैसा कमाने वाला किस्सा तो सभी ने पढ़ा है, लेकिन पूर्वी सिंहभूम जिले में खनन महकमे की कहानी का वर्तमान अध्याय इससे भी रोचक है. अब यहां लोहा-कोयला तो है नहीं, पत्थर-बालू से ही काम चलाना है. पिछले महीने के अंतिम सप्ताह में यहां पहुंचे खनन विभाग के नए अधिकारी ने “राजस्व वसूली” (पाठक राजस्व का अर्थ अपने हिसाब से समझ सकते हैं) का नया तरीका ढूंढ लिया है. कभी बगल के पत्थर-बालू वाले जिले में रह चुके यह अधिकारी पत्थर-बालू का खेल ठीक से समझते हैं. पत्थर की खुदाई, तुड़ाई और ढुलाई में काम तो पहले भी एक नंबर के साथ दो नंबर का चलता था. मगर अब धरती और पहाड़ों का सीना छलनी होने की रफ्तार बढ़ गई है. वजह है साहब की पत्थर से “तेल” निकालने की तकनीक. साहब की इस जुगत से माइनिंग माफियाओं की दसों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में वाली स्थिति है जबकि एक नंबर से काम में जुटे खनन उद्यमियों के पसीने छूट रहे हैं.
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नये साहब ने फंसा दिये हैं कुछ नये पेंच


एक दमदार मंत्री (इस जिले या पड़ोसी वाले नहीं) से पंगा लेने के बाद जब पुराने खनन अधिकारी खूंटी में खुड्डे लाइन लगा दिये गये तो 29 जनवरी को नये वाले की इस पद पर धमाकेदार इंट्री हुई. धमाकेदार इसलिये कि पद संभालते ही इन्होंने जो रंग-रूप दिखाया, खनन कारोबारियों के होश उड़ गए. मांग ऐसी कि सभी का चौंकना लाजिमी था. खनन के काम धंधे के परंपरागत लेनदेन के तो सभी अभ्यस्त हो चुके हैं. मगर इस बार डिमांड कुछ हटकर की गई. इस डिमांड से दुआ-सलाम करने पहुंचे खनन कारोबारी दुविधा में पड़े हुए हैं. 31 मार्च को खदान की लीज अवधि समाप्त हो रही है.पिछली बार सभी ने अच्छा-खासा “राजस्व” चुकाकर सभी पेपर ठीकठाक कर लिये थे. तो नये साहब ने अब कुछ नये पेंच फंसा दिये हैं. इन पेंचों पर अगली स्टोरी में चर्चा होगी. फिलहाल मुद्दे की बात पर आते हैं.
तीन-चार को “तेल” निकालने की तकनीक जंच गई, बाकी पसीना पोछते निकल लिए

मुद्दा पत्थर के अवैध खनन और परिचालन से जुड़ा है. पता चला है कि इस जिले में सक्रिय पत्थर खदान के कारोबारियों में से तीन-चार को साहब की पत्थर से “तेल” निकालने की तकनीक जंच गई, बाकी तो सुनने के बाद पसीना पोछते निकल लिए. तकनीक पर फिट बैठे लोगों को छूट मिल गई कि जितना माल चालान पर निकलना है उतना ही और बिना चालान के निकाल लें. यह भी आश्वासन मिला कि नवीकरण की प्रत्याशा का जिक्र करते हुए उनकी लीज का छह माह के लिये अवधि विस्तार भी कर दिया जाएगा. बस ग्रीन सिग्नल मिलते ही धड़ाधड़ सब्बल-गैंता से लेकर बड़े-बड़े पोकलेन दस दिनों से इस क्षेत्र में काम पर लगा दिए गए हैं. पहाड़ से लेकर खेत तक जहां भी पत्थर हैं, समेटने का काम शुरू हो गया है. सभी को यह खेल दिखाई दे रहा है, पर खनन विभाग की आंखों पर “पट्टी” बांध दी गई है.
हाइवा की बढ़ी आवाजाही बता देती है सारी कहानी

अभी सिर्फ जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर दूर पोटका क्षेत्र की बात करते हैं. पिछले दस दिनों से इस इलाके में रात में हाइवा की आवाजाही कुछ अधिक ही बढ़ गई है. दिन में इक्का-दुक्का जबकि रात में धड़ल्ले से पत्थर लेकर डम्पर निकलते हैं. कहीं कोई चेकिंग रोक-टोक नहीं. मामला पहले से सेट रहता है. सब्बल-गैंता से लेकर बड़ी-बड़ी मशीनों का शोर अधिक परेशान करने लगा है. ऐसा नहीं है कि पहले पत्थरों का अवैध खनन नहीं होता था पर अब इसकी गतिविधियां कुछ तेज हो गईं हैं. यहां तुड़ी, तेतला, तुमुंग, गीतिलता, भीतरडाढ़ी में पत्थर खदान हैं. खदान वाले अंदर की गतिविधियों को अंदर तक रखने के लिये बैरियर लगाकर गार्ड की तैनाती कर चुके हैं. खनन माफिया का इन दिनों दुस्साहस इतना बढ़ गया है कि पहाड़ तो पहाड़ खेतों के आसपास की पथरीली जमीन को भी नहीं छोड़ रहे. यहां से पत्थरों की खुदाई कर जगह-जगह जमा छोटे-छोटे पत्थरों को एक साथ डम्पर अथवा ट्रैक्टर में लोड करते हैं. कई जगहों पर तो इतनी गहरी खुदाई कर दी गई है कि पानी तक निकलने लगा है. कच्ची सड़कों पर हाइवा-ट्रैक्टर चलने से उड़ने वाली धूल से इस क्षेत्र के ग्रामीण परेशान हैं. वहीं क्रशर के कारण समीपवर्ती खेतों में पत्थर के डस्ट की परत जम जाने से कई खेत बेकार हो चुके हैं. इसका विरोध स्थानीय स्तर इसलिये भी नहीं होता क्योंकि पत्थर तोड़कर ही कई स्थानीय परिवारों का घर चलता है. बाकी मामला संभालने के लिये नए साहब तो हैं ही. (अगली किस्त में अगली कहानी)
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