Nishikant Thakur
आखिर मणिपुर के विवादित मुख्यमंत्री एन.बीरेंद्र सिंह को त्यागपत्र देना पड़ा. अब यह प्रश्न विचारणीय है कि उन्होंने त्यागपत्र दिया या मुख्यमंत्री से हाईकमान ने इस्तीफा ले लिया. यदि उनमें जरा भी ग़ैरत होती और वे अपने को सत्ता संभालने के काबिल नहीं समझते, तो संभवतः यह विवादित कुर्सी पर बने ही नहीं रह पाते. भला हो केंद्र सरकार का और हाईकमान का कि इतने विवादों से घिरे मुख्यमंत्री सेआखिरकार पिंड छुड़ा लिया.
विश्व की शायद यह पहली घटना रही होगी, जिसमें सभ्य समाज की महिला को निर्वस्त्र करके सरेआम घुमाया गया, उसके साथ सार्वजनिक रूप से दुष्कर्म किया गया और निरीह की तरह मुख्यमंत्री उसे देखते रहे, कुछ कर नहीं पाए. आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि सभ्य समाज में एक महिला को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र करके घुमाया जा रहा हो और मुख्यमंत्री समाज से माफी तक न मांगे? यह कैसे हो सकता है कि मणिपुर सरकार के शस्त्रागार से हजारों आधुनिक हथियार लूट लिए गए हों और मुख्यमंत्री सबकुछ आंखें मूंदकर अपनी कुर्सी बचाने के लिए मौन धारण कर लिया हो?
यह कैसे संभव हो सकता है कि जातिवाद में कोई आकंठ डूबकर अपनी जाति की रक्षा करने के लिए चुप बैठा रहे? जो भी हो, प्रशासनिक रूप से इतना दुर्बल, जो केवल अपनी कुर्सी बचाने के लिए अपनी ही निरीह जनता की हत्या करवाता रहे, ताकि उसकी कुर्सी बची रहे. ऐसे नेताओं के लिए यही सजा है कि उससे त्यागपत्र लेकर कुर्सी से बेदखल कर दिया जाए ? आज यह प्रश्न मणिपुर की जनता पूछती है, देश पूछ रहा है.
अपने ही सैनिकों को विपक्ष में एक तरफ खड़ा करके दूसरी तरफ उनपर विजय पाने के लिए स्वयं खड़े हो जाएं… इस तरह की एक कथा उस दौर के महाभारत की है, जब धर्म का नाश हो गया था और अधर्म चरम पर था. अपनी नारायणी सेना कौरवों को सौंपकर स्वयं पांडवों का साथ देने के लिए श्रीकृष्ण, गांडीवधारी अर्जुन के सारथी बनकर युद्ध में उतर आए थे (यह उदाहरण केवल यह दिखाने लिए है कि एन. बीरेंद्र सिंह की सरकार केंद्र सरकार के साथ मिलकर कुकी जनता पर अत्याचार करते रहे और केंद्र सरकार दोनों ओर की जनता, जो भारतीय ही थी, मारते मरवाते रही.
यहां न तो केंद्र सरकार को कृष्ण कहा गया है, न ही कुकी समुदाय को कौरव सखा. इसे केवल समझने के लिए उल्लेख किया गया है. ऐसा इसलिए, क्योंकि एन. बीरेंद्र सिंह मैतई समाज से आते हैं, जो बहुसंख्यक समाज है. कुकी अल्पसंख्यक हैं, जो पहाड़ों पर रहते हैं और उनकी आबादी कम है. अतः वहां कोई भी व्यक्ति बहुसंख्यक समाज से ही मुख्यमंत्री बनाया जाता है. एन. बीरेंद्र सिंह बहुसंख्यक समाज से आते हैं और उनपर शुरू से ही यह आरोप लगता रहा है कि उनका प्रशासन अपनी जीत को कायम रखने के लिए एकपक्षीय निर्णय लेता है, जिसके परिणामस्वरूप कुकी समाज पर इतने अत्याचार, उनकी महिला को निर्वस्त्र करके सरेआम सार्वजनिक स्थल पर जुलूस के रूप में घुमाया गया, फिर दुष्कर्म किया गया, शस्त्रागार से शास्त्र लूटे गए और हत्याओं का दौर आज भी लगातार जारी है.
कहा यह भी जा रहा है कि मणिपुर हाईकोर्ट के एक फैसले के कारण शुरू हुई हिंसा के बाद कुकी और मैतई समाज के बीच का पुराना विवाद फिर से जिंदा हो गया, जिनमें दोनों पक्ष में से कोई भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं था. संकट इतना गहरा गया, जो दोनों समस्या के समाधान के लिए आमने—सामने बातचीत के लिए भी तैयार नहीं थे. केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से धीरे-धीरे इसे दूर करने का प्रयास किया गया और अब दोनों समुदाय के नेताओं ने आपसी मुद्दों को हल करने पर तैयार हो गए हैं. कहा यह भी जा रहा है कि एन.
बीरेंद्र सिंह के इस्तीफे के बाद जल्द ही दोनों समुदायों के बीच बातचीत शुरू हो जाएगी. दरअसल, पूर्व गृह सचिव अजय भल्ला को पिछले साल दिसंबर में मणिपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया था, जिसका खास उद्देश्य राज्य में शांति और सुरक्षा उपायों को तेजी से लाना था. इसलिए अब एन. बीरेंद्र सिंह के इस्तीफे के बाद स्थिति में सुधार आएगा, लेकिन राज्यपाल ने अगली व्यवस्था होने तक एन. बीरेंद्र सिंह इस्तीफे के बाद मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है.
बता दें कि सिंह भाजपा विधायकों के बीच भी समर्थन खो चुके थे, जिनके कई विधायक दिल्ली में पार्टी नेताओं से भेंट करके उनके मुख्यमंत्री पद पर बने रहने पर आपत्ति जताई थी. इसी बीच फरवरी में शुरू होने जा रहे विधानसभा का सत्र होने जा रहा था, इसलिए इस बात को लेकर केंद्र सरकार चिंता में थी कि कुछ पार्टी विधायक अपने ही नेतृत्व को निशाना बनाकर सरकार गिराने का प्रयत्न कर सकते हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अपने ट्यूटर हैंडल ‘एक्स’ पर लिखा कि 21 महीने तक भाजपा ने मणिपुर में आग लगाई और विभिन्न समुदाय के लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया. सोशल मीडिया पर यह भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले सप्ताह अमेरिकी राष्ट्रपति से उनके दूसरे कार्यकाल में पहली बार मिलने जा रहे हैं जिसमें इस विषय पर भी चर्चा होगी; क्योंकि अमरीकी राष्ट्रपति को इस कार्यकाल में भारत के लिए कड़ा रुख अपनाते हुए देखा जा सकता हैं. ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है कि वहां दो समुदायों मैतई और कुकी की आपसी कलह में तीसरे समुदाय ईसाइयों की भी हत्या की गई, जो बेकसूर थे.
यदि ऐसा होता है, तो यह बेहद शर्मनाक स्थिति होगी, इसलिए जिन्हें तथाकथित तौर पर मुख्य गुनहगार माना जा रहा है, वे अब तक अपने पद पर कैसे बने रहे हैं? इसलिए इस स्थिति को देखते हुए भी पार्टी हाईकमान ने सख्त निर्णय लिया और इतने लंबे समय तक चर्चा में रहने तथा इतनी आलोचनाओं, आरोपों को झेलने के बाद उन्हें त्यागपत्र देने के लिए मजबूर किया गया और फिर इतने दबाव के बाद बीरेंद्र सिंह को त्यागपत्र देना पड़ा.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संबित पात्रा मामले में ठोस निर्णय लेने के लिए इम्फाल पहुंच चुके हैं. हो सकता है कि वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए वहीं हुआ भी मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है. उनकी बातचीत राज्यपाल अजय भल्ला से हो चुकी है. श्री भल्ला और कुकी नेताओं को बातचीत लिए राजी करने में अहम भूमिका निभा चुके हैं.
समाचारों की मानें, तो जिन मुद्दों पर आपसी सहमति नहीं बन पा रही है, उसमें कुकी समुदाय द्वारा अपने प्रभुत्व वाले इलाकों के लिए अलग राज्य और मैतई समुदाय द्वारा म्यांमार से घुसपैठ रोकने के लिए कड़े प्रावधान करने की मांग शामिल हैं. जो भी हो, मणिपुर में शांति-व्यवस्था कायम हो और केंद्र सरकार द्वारा इस पर कड़ाई से पालन करने का निर्देश जारी हो. पूरा देश चाहता है कि पूर्वांचल की जनता अपने को भारतीय माने और इसे महसूस कराने के लिए सरकार द्वारा जो भी प्रयास किया जा सकता है, वह किया जाए.
अन्यथा मणिपुर की अशांति के बाद पूर्वांचल के कई राज्य अपने को उपेक्षित महसूस करेंगे और इसकी आग और भभकने लग जाएगी, जिसका असर पूरे देश पर ही नहीं, विश्व में गृह युद्ध के रूप में होगा. यदि छोटे—छोटे राज्य अपने को उपेक्षित महसूस करने लग जाएंगे, तो मणिपुर ही इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा, बल्कि केंद्र सरकार ही जिम्मेदार मानी जाएगी, जिसका कलंक भारतीय जनता पार्टी पर ही वर्षों तक लगा रहेगा.
डिस्क्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं.