Brijendra Dubey
सबसे पहले बात करते हैं चुनाव अभियान की. करीब 80 दिन तक चला लोकसभा चुनाव अभियान शनिवार की शाम थम गया. बड़ी-बड़ी रैलियों, चुनावी सभाओं और रोड शो का समापन हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ और प्रियंका गांधी ने कई-कई रैलियां कीं, तो ममता बनर्जी ने कोलकाता में आठ किलोमीटर लंबी पदयात्रा की. पीएम नरेंद्र मोदी ने पंजाब के होशियारपुर में अपनी आखिरी रैली की. तो राहुल गांधी ने भी पंजाब के ही लुधियाना में अपनी आखिरी रैली करके चुनाव अभियान का समापन किया. सात चरणों वाले लंबे-चौड़े चुनावी कार्यक्रम के दौरान सभी पार्टियों के दिग्गजों ने खूब जोर लगाया. इस दौरान पीएम मोदी ने 172 रैलियां और रोड शो किए. अमित शाह ने 188 रैलियां, रोड शो किए. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 87 रैलियां की. वहीं विपक्ष की बात करें तो राहुल गांधी ने 107 रैलियां और रोड शो किए. अखिलेश यादव ने 69 रैलियां और 4 रोड शो किए, जबकि ममता बनर्जी ने 61 रैलियां और कई रोड शो और पदयात्राएं कीं. वहीं, तेजस्वी यादव ने अकेले दम पर बिहार में 251 रैलियां करके पूरे राज्य को कई-कई बार मथ डाला. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस चुनाव में 101 चुनावी इवेंट किए. कांग्रेस की बात करें तो प्रियंका गांधी ने सबसे ज़्यादा रैलियां, रोड शो और मीडिया से बातचीत की. प्रियंका ने 140 से ज़्यादा रैलियां, रोड शो किए. वहीं खरगे ने 100 से ज़्यादा रैलियां, 20 से ज़्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस और 50 से ज़्यादा इंटरव्यू दिए.
एग्जिट पोल कुछ भी कहें, इंडिया गठबंधन को जीत का पूरा भरोसा है और कांग्रेस का बिना देरी किए बयान भी आ गया कि जीत के 48 घंटे के अंदर ही प्रधानमंत्री चुन लिया जाएगा. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ये बात कही है. उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा सीट जीतने वाले दल का ही प्रधानमंत्री होगा. वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी 4 जून को लेकर बड़ा दावा किया है कि इंडिया गठबंधन पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगा. ये सरकार समावेशी, राष्ट्रवादी और विकास के मुद्दे पर चलेगी. उधर, चुनाव समापन के बाद भाजपा भी अपने प्रदर्शन के आकलन में जुटी है. भाजपा अलाकमान ने देश भर से मिले फीडबैक के आधार पर उम्मीद कर रही है कि एक बार फिर मोदी सरकार बनने जा रही है. भाजपा सूत्रों के मुताबिक पार्टी को कुछ राज्यों में 2019 की तुलना में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. इन राज्यों में ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और यूपी शामिल हैं. इन राज्यों में लोक सभा की 244 सीटें हैं. पिछले चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगियों को इनमें से 94 सीटों पर जीत मिली थी.
तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में भाजपा पिछली बार खाता नहीं खोल सकी थी, जबकि इस बार पीएम मोदी ने वहां धुआंधार प्रचार किया है. भाजपा ने इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन भी किया है. जबकि भाजपा का आकलन है कि कुछ राज्यों में सहयोगी दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इन राज्यों में महाराष्ट्र और बिहार का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है. जबकि राजस्थान और कर्नाटक में 2019 की तुलना में भाजपा की कुछ सीटें कम हो सकती हैं. कर्नाटक में भाजपा ने पिछली बार 28 में से 25 सीटें जीतीं थीं और एक निर्दलीय सांसद का उसे साथ मिला था. जबकि महाराष्ट्र की 48 में से भाजपा ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से उसने 23 सीटें जीती थीं. बिहार में पिछली बार भाजपा और उसके सहयोगियों ने 40 में से 39 सीटें जीती थीं. जहां भाजपा को खुद अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद नहीं दिख रही है, उसके नेताओं को लगता है कि इन राज्यों में उसे कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है.
अब थोड़ा और पीछे चलें तो जनवरी में राम मंदिर के उद्घाटन के साथ भाजपा का आत्मविश्वास चरम पर पहुंच गया था. भाजपा ने उद्घाटन कार्यक्रम में विपक्ष के बहिष्कार को मुद्दा बनाया. बाद में कई दूसरे दलों से नेता इसी को मुद्दा बना कर अपना पार्टियां छोड़ भाजपा में आए. इससे भाजपा को देश भर में राम मंदिर मुद्दे को सेंटर स्टेज पर लाने में मदद मिली. भाजपा ने चुनाव अभियान मोदी की गारंटी से शुरू किया. पार्टी के घोषणापत्र में भी मोदी की गारंटी की बात प्रमुखता से कही गई. भाजपा के तमाम नेता एनडीए के 400 पार जाने की बात उठाते रहे. सामाजिक रक्षा और गरीब कल्याण से जुड़े मुद्दों के विस्तार से रैलियों आदि में जिक्र किया गया. लेकिन जनता में इन बातों पर कोई खास रिएक्शन न मिलने के बाद भाजपा ने प्रचार अभियान की दिशा को मोड़ दिया. पीएम मोदी ने वैल्थ रिडिस्ट्रीब्यूशन के कांग्रेस के वादे को बड़ा मुद्दा बनाया और कांग्रेस के घोषणापत्र की तुलना मुस्लिम लीग से कर दी. इसके बाद भाजपा का चुनाव अभियान बेहद आक्रामक हो गया.
सैम पित्रोदा के विरासत टैक्स के बयान ने भाजपा को हावी होने का मौका दे दिया. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के पुराने बयान का पीएम मोदी ने बार-बार जिक्र किया, जिसमें उन्होंने संसाधनों पर अल्पसंख्यकों के पहले हक की बात कही थी. पीएम मोदी ने कहा कि ये मां-बहनों का मंगलसूत्र भी नहीं बचने देंगे. उन्होंने पूछा कि क्या लोगों की मेहनत का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? विपक्ष के नेताओं ने कहना शुरू किया कि भाजपा 400 पार की बात इसलिए कर रही है, क्योंकि वह संविधान बदल कर दलित, आदिवासियों का आरक्षण खत्म करना चाहती है. यह मुद्दा इतना बढ़ा कि भाजपा और पीएम मोदी बार-बार मुद्दे बदलते नजर आये, लेकिन कोई नैरेटिव नहीं खड़ा कर पाये. दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन खास कर राहुल गांधी ने आक्रामक रुख अख्तियार करके संविधान बदल देने की बात को मुद्दा बना कर जन-जन तक पहुंचा दिया. इसके साथ ही कांग्रेस के मेनिफेस्टो, जिसका प्रचार सर्वाधिक पीएम मोदी ने किया, वह भी आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया.
उधर, पीएम मोदी ने इस पर पलटवार करते हुए मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा उठाया और कहा कि किस तरह से शैक्षणिक संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित कर वहां से एससी-एसटी आरक्षण खत्म करने की कोशिश हो रही है. कुल मिला कर इस बार चुनाव महंगाई और बेरोजगारी ही सबसे बड़े मुद्दे बन कर उभरे. परेशान लोगों के बीच पीएम मोदी हिंदू-मुसलमान कार्ड बिल्कुल नहीं चला. यही वजह रही कि पीएम मोदी ने कई रैलियों में अपनी गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा और कुछ भी बोलते नजर आये. प्रचार अभियान जैसे-जैसे आगे बढ़ा, पीएम मोदी के सारे शुरुआती मुद्दे गौण होते नजर आए. शुरुआती चरणों में कम मतदान ने भी भाजपा को चौकन्ना कर दिया. इससे उत्साहित होकर इंडिया गठबंधन के नेताओं ने दावे करने शुरू कर दिए कि एनडीए बहुमत हासिल नहीं कर सकेगा. राहुल गांधी तो अपनी रैलियों में दावा करने लगे कि लिख कर रख लीजिए, पीएम मोदी देश के अगले पीएम नहीं बनेंगे. बहरहाल, अब जनता का फैसला ईवीएम में कैद हो चुका है. चार जून को पता चलेगा कि किसके दावे में कितना दम है.
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