Ranchi: झारखंड विधानसभा के बजट सत्र में इस बार एक अलग ही नजारा देखने को मिल रहा है. वो विपक्ष, जो हर छोटे-बड़े मुद्दे पर सत्ता पक्ष को घेरने के लिए हंगामा करता था, अब शांत नजर आ रहा है. न वेल में जाकर नारेबाजी, न कार्यवाही में बाधा डालने की कोशिश – आखिर विपक्ष के इस बदले हुए व्यवहार के पीछे क्या रणनीति है?
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पहली बार बिना हंगामे के बजट भाषण सुना गया!
तीन मार्च को सरकार का बजट पेश किया गया और हैरानी की बात ये रही कि विपक्ष ने बिना किसी शोर-शराबे के पूरा भाषण सुना. न कोई टोका-टोकी, न कोई वॉकआउट. पिछले दो दिनों से विधानसभा की कार्यवाही में जिस तरह की शांति दिख रही है, वो झारखंड की राजनीति में एक नई तस्वीर पेश कर रही है.
विपक्ष की नई रणनीति या मजबूरी?
सत्ता पक्ष के खिलाफ हर मुद्दे पर हमलावर रहने वाला विपक्ष अब सदन में सहयोग करता दिख रहा है. बजट पर चर्चा के दौरान विपक्षी विधायक अपनी बातें तो रख रहे हैं, लेकिन आक्रामक तेवर गायब हैं. सत्ता पक्ष के खिलाफ खामियां गिनाने के साथ-साथ सुझाव भी दिए जा रहे हैं. सवाल ये उठता है कि ये विपक्ष की रणनीति है या संख्याबल की मजबूरी?
सत्ता पक्ष का मजबूत किला, विपक्ष की कमजोर गूंज
सदन के अंदर का गणित इस बार पूरी तरह सत्ता पक्ष के पक्ष में झुका हुआ है. इंडिया गठबंधन के पास 56 विधायकों की मजबूत संख्या है, जबकि एनडीए के पास मात्र 23 विधायक. पहली बार झारखंड में विपक्ष इतना कमजोर नजर आ रहा है और इसका सीधा असर विधानसभा की कार्यवाही पर दिख रहा है. विपक्ष शायद जानता है कि उसके पास सरकार को घेरने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं है, इसलिए हंगामे की बजाय शांति से रणनीति बना रहा है.
क्या विपक्ष का मौन तूफान से पहले की शांति है?
राजनीति में अचानक आने वाले बदलाव हमेशा किसी बड़े घटनाक्रम की ओर इशारा करते हैं. विपक्ष का यह शांत रवैया कहीं किसी बड़ी योजना का हिस्सा तो नहीं? या फिर यह उनकी मजबूरी बन गई है? आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि विपक्ष का ये नया रूप सिर्फ दिखावा है या वाकई वे अब नई रणनीति के साथ सरकार से टक्कर लेने की तैयारी में हैं.
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