Manish Bhardwaj
- रातू अंचल कार्यालय में समय पर नहीं आते अधिकारी, जनता परेशान
- सीओ साहब से काम हो तो अमित जी से मिलना पड़ता
Ranchi : राजधानी रांची के रातू अंचल कार्यालय में मंगलवार की सुबह जो नजारा देखने को मिला, उसने सरकारी सिस्टम की लापरवाही और जनता के प्रति गैर-जिम्मेदाराना रवैये की पोल खोल दी है.
निर्धारित समय पर पहुंचने के बाद भी आम जनता को कार्यालय में ताला जड़ा मिलता है और अधिकारी नदारद रहते हैं. सरकारी व्यवस्था की यह स्थिति बताती है कि कार्यालय समय पर खुले, अधिकारी समय पर पहुंचे और जनता की समस्याओं का त्वरित समाधान हो, अब ये बातें सिर्फ स्लोगन बनकर रह गयी हैं.
जबकि हकीकत यह है कि हर दिन अपनी समस्या लेकर आम लोग कार्यालय आते हैं और दिनभर इंतजार करने के बाद शाम को मायूस होकर लौट जाते हैं.
लगातार डॉट इन के संवाददाता मंगलवार सुबह 10:45 बजे अंचल कार्यालय गये, तो गेट पर ताला लटका मिला. CO साहब भी नदारद थे. CI साहब का भी अता-पता नहीं था. इतना ही नहीं कर्मचारियों को भी ये नहीं पता कि सीओ और सीआई साहब कब तक आयेंगे.
चपरासी से इस बारे में जब पूछने गया तो जवाब मिला कि हमें नहीं पता, वो कब आते हैं. जब उससे पूछा गया कि क्या अधिकारी हमेशा देर से आते हैं, तो जवाब मिला कि हमें तो कुछ बताया ही नहीं जाता.
बाहर खड़े कई ग्रामीणों ने बताया कि सीओ साहब अक्सर तब आते हैं, जब कार्यालय बंद होने का समय हो चुका होता है. ऐसे में आम लोग पूरे दिन इंतजार करते रहते हैं, लेकिन अंत में उन्हें बिना काम कराये ही लौटना पड़ता है.
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि लोगों ने बताया, अगर सीओ साहब से कोई काम है, तो अमित जी से मिलिए. जब यह पूछा गया कि अमित जी कौन हैं, तो पता चला कि वे कार्यालय में बतौर ऑपरेटर काम करते हैं.
जनता का आरोप है कि वास्तविक निर्णय और कामकाज अब अमित जी ही संभालते हैं, और उन्हीं के जरिए फाइलें पास होती हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब अंचल अधिकारी की भूमिका एक ऑपरेटर निभायेगा. क्या यही है डिजिटल और जवाबदेह प्रशासन.
लोगों का कहना है कि कुछ सक्षम लोग शाम को, जब दफ्तर खाली होता है, अमित जी से संपर्क करके अपना काम निकलवा लेते हैं. लेकिन आम गरीब जनता रोज कार्यालय के चक्कर काटते हैं और दिनभर अधिकारियों का इंतजार करने के बाद खाली हाथ लौट जाते हैं. लोगों ने कहा कि गरीबों का कोई सुनने वाला नहीं.
प्रशासव की ओर से जनता दरबार, समाधान शिविर और दाखिल-खारिज जैसे मामलों के समाधान के लिए विशेष कैंप लगाने के आदेश तो आते हैं. लेकिन सवाल ये है कि जब अधिकारी नियमित रूप से समय पर कार्यालय ही नहीं आते, तो फिर जनता की समस्याओं के समाधान के लिए बार-बार कैंप लगाने की जरूरत क्यों पड़ती है.
अगर पदाधिकारी अपने दायित्व का ईमानदारी से पालन करें, तो जनता को ना लाइन लगानी पड़ेगी, ना ही कैंप के सहारे राहत की उम्मीद करनी पड़ेगी. कैंप व्यवस्था अस्थायी इलाज है, लेकिन बीमारी स्थायी लापरवाही और सिस्टम का ढीलापन है.