SURJIT SINGH
क्या आपने नोटिस किया है, आपके गली-मुहल्लों में सालों से जो छोटी-छोटी किराना दुकानें चल रही थी, वह बंद हो गयीं. उनकी जगह नयी और बड़ी किराना दुकानें खुल गयी हैं.
-क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि कुछ साल पहले तक जो सामान आप खुद बाजार-दुकान जाकर खरीदते थे, उनमें से कितने सामान अब घर पर डिलीवरी हो जा रहे हैं.
-नहीं नोटिस किया होगा, ना ही गौर किया होगा, पर यह सब हुआ है और हो रहा है. छोटी पूंजी वाली दुकानें खत्म हो रही हैं. उनकी जगह बड़ी पूंजी, कारपोरेट घरानों ने ले ली हैं.
-पर, कितना हो चुका है और कितना हो रहा है, इसका अंदाजा आप आंकड़ों से समझें. वर्ष 2015-23 के बीच हुए एक सर्वे में यह बताया गया है कि 8 सालों में देश के शहरी इलाकों की कुल 1.2 करोड़ किराना दुकानों में से 12 लाख बंद हो गयीं.
-ग्रामीण इलाकों की बात करें तो सिर्फ एक साल में 60 हजार किराना दुकानें बंद हो गयीं, जबकि शहरी इलाकों के 90 हजार दुकानें बंद हुई. इस 90 हजार में से 60 हजार दुकानें टीयर-वन यानी बड़े शहरों में थी.
-एक सवाल यह उठता है कि क्या यह स्थिति पहले भी थी! जवाब है- बिल्कुल नहीं. वर्ष 2011-15 के बीच देश भर में किराना दुकानों की संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी.
-अब बात करते हैं किराना दुकानों के बिजनेस की. आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2023-24 में किराना दुकानों में होने वाले व्यापार में 34 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.
-फिर सवाल यह उठता है कि किराना दुकानों के व्यापार में कमी हो रही है, तो यह जा कहां रहा है. इसका जवाब है- लाभ क्विक मार्केट को हो रहा है. जो 10-15 मिनट में घर के दरवाजे तक सामान पहुंचा रहे हैं. क्विक मार्केट के कारोबार में 31 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है.
-हो यह रहा है कि बड़ी पूंजी वाले या कारपोरेट घराने बेहद कम कीमत पर सामान की खरीद कर लेते हैं, जिस कारण वह किराना दुकानदारों की तुलना में सस्ती सामग्री घर तक पहुंचा पाने में सफल हो रहे हैं. इस कारण लोग भी किराना दुकानों से दूर हो रहे हैं.
-लोगों को थोड़ा सस्ता सामान जरूर मिल रहा है, लेकिन समाज का एक बड़ा हिस्सा बेरोजगार हो रहा है. इतना ही नहीं घरों तक जो सामान पहुंच रहा है, उनमें कई बार आपको बहुत ज्यादा रूपये देने पड़ जा रहे हैं. आपको चाहिए होता है कुछ और लेना पड़ता है कुछ और.
-कुल मिलाकर बात यह है कि गली-मुहल्लों की किराना दुकानें ही बंद नहीं हो रही, उसे चलाने वाले और उसमें काम करने वाले भी बेरोजगार हो रहे हैं.
-बड़ी पूंजी लंबे वक्त तक नुकसान उठाकर छोटी पूंजी वालों को खत्म तो कर देंगी. पर उनके खत्म होने के बाद बड़ी पूंजी जब महंगे सामान बेचना शुरू करेगी, तब किसी के पास कोई रास्ता नहीं होगा. जैसा कि मोबाईल व इंटरनेट के क्षेत्र में देखा गया. कोई सुनने वाला नहीं.
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