![](https://lagatar.in/wp-content/uploads/2024/07/WEB-BANNER-021.jpg)
Girish Malviya
हिमाचल के शिमला के ऊंचे इलाकों में सेब के बागान हैं और वहां के किसानों से छोटे-छोटे व्यापारी कुछ सालों पहले तक सेब खरीदकर देश भर में भेजते थे. इन व्यापारियों की छोटी मंडी थी. इनके छोटे-छोटे गोदाम थे. वर्ष 2012 में अडानी की नजर इस धंधे पर पड़ गयी. चूंकि उस वक्त हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार थी, तो अडानी को वहां गोदाम बनाने के लिए जमीन लेने और बाकी कागजी कार्यवाही में कोई दिक्कत नहीं आई. अडानी ने शिमला जिले में स्थित मेहंदी, रेवाली और सेंज में कोल्ड स्टोर इकाइयों की स्थापना की. ये जो उन छोटे व्यापारियों के गोदाम से हजारों गुना बड़े थे.
शुरुआत में अडानी ने सेब खरीदना शुरू किया, तो उसने कुछ सालों तक सेब उगाने वालों से छोटे व्यापारी की अपेक्षा अधिक भाव पर सेब खरीदना शुरू किया. बाद में वॉलमार्ट, बिग बास्केट और सफल जैसी नामी कंपनियां मैदान में आयीं और रेट पहले की अपेक्षा अच्छा मिलने लगा. नतीजा यह हुआ कि मंडी का छोटा व्यापारी इन मल्टीनेशनल कंपनियों के सामने टिक नहीं पाया और साफ हो गया. अब वहां की मंडियों में इन बड़े व्यापारियों में कुछ ही व्यापारी बचे. अब अडानी अपने असली रंग में आ गया है.
अडानी ग्रुप अब हर साल वहां उत्पादित सेब की कीमत को कम कर रहा है. इस साल जो उसने कीमत तय की है वह बीते साल के मुकाबले 16 रुपये प्रतिकिलो कम हैं.
अमर उजाला अखबार की खबर के अनुसार अडानी एग्री फ्रेश कंपनी 80 से 100 फीसदी रंग वाला एक्स्ट्रा लार्ज सेब 52 रुपये प्रति किलो, जबकि लार्ज, मीडियम और स्मॉल सेब 72 रुपये प्रति किलो की दर पर खरीद रही है. जबकि बीते साल एक्स्ट्रा लार्ज सेब 68 रूपये किलो और लार्ज, मीडियम और स्मॉल सेब 88 रुपये प्रति किलो खरीदा गया था. सेब के वाजिब दाम नहीं मिलने से सेब वाले बागवानों ने तुड़ाई का काम रोक दिया है.
दरअसल, यही भविष्य है कृषि के कॉरपोरेटीकरण का. ऐसा ही होगा जब अडानी ग्रुप जैसे बड़े उद्योगपति मंडियों पर कब्जा कर लेंगे तो ऐसा ही परिदृश्य सामने आएगा.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.
![](https://lagatar.in/wp-content/uploads/2024/07/WEB-BANNER-011.jpg)
Leave a Reply