Soumitra Roy
अगली 1 फरवरी को बजट पेश होना है. एक महीने से भी कम वक्त बचा है. वित्त मंत्री निर्मला जी बजट कैसे बना रही होंगी? बीते दिसंबर तक वित्तीय घाटा 11 लाख करोड़ को छू रहा था. इस साल मार्च तक इसके 14 लाख करोड़ को पार कर जाने की आशंका है.
यानी वित्तीय घाटा वर्ष 2020-21 के बजट अनुमान से 135 फीसदी ज़्यादा है. सरकार की प्राप्तियां भी बजट अनुमान का 37% ही है. खींचतान कर यह 40% तक जा सकता है. यानी 100 रुपये के खर्च पर 60 रुपये वापस नहीं मिलेंगे. इस कमी को वित्त मंत्री कैसे पूरा करेंगी?
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पिछले साल केंद्र ने DA रोका था, इस साल क्या होगा?
पिछले साल केंद्र ने DA रोका था. तो क्या इस साल सैलरी भी रुकेगी? राज्यों को टैक्स का हस्तांतरण रुका हुआ है.
बीते साल राज्यों को 3.34 लाख देने में ही सरकार की सांसें फूल गयीं. उसने राज्यों को कर्ज़ का कटोरा थमा दिया है. अब यह कर्ज़ भी गले तक आ चुका है.
महालेखा नियंत्रक के गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, मोदी सरकार ने बजट अनुमान का 63% खर्च कर दिया है. इसमें से लगभग 6 लाख करोड़ ब्याज़ और सब्सिडी के रूप में हैं.
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बजट सरकार की नासमझी और वित्तीय कुप्रबंध की भेंट चढ़ने वाला है!
मोदी सरकार का पिछला बजट कोविड ने फेल किया था. अगला बजट सरकार की नासमझी और वित्तीय कुप्रबंध की भेंट चढ़ने वाला है. इसका सबसे बुरा असर गरीब, कमज़ोर और वंचित तबकों पर पड़ने वाला है.इसमें हैरत नहीं होनी चाहिए कि फंड की कमी से ढेर सारी जनकल्याण योजनाएं बंद हो जाएं.
बीते करीब 10 महीने से स्कूल, आंगनबाड़ी सब बंद है. सर्व शिक्षा अभियान जैसी योजनाओं का बजट अगर दूसरी मदों में भी लगा दें, तो भी 14 लाख करोड़ के घाटे की भरपाई नहीं हो पाएगी.मोदी सरकार को किसी भी सूरत में सामाजिक क्षेत्र में खर्च बढ़ाना ही होगा. सवाल यह है कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा?
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बैंकों का बढ़ता NPA सरकार को चैन से सोने नहीं देगा
पैसा आने की बारीक सी उम्मीद उन 25 कंपनियों से होगी, जो मोदी सरकार इस साल बेचेगी. इसके लिए कैबिनेट की हरी झंडी मिल ही चुकी है. हालांकि, दूसरी ओर बैंकों का बढ़ता NPA सरकार को चैन से सोने नहीं देगा. बीते साल सरकार ने बैंकिंग सेक्टर में 30 लाख करोड़ उड़ेले थे. इससे कॉरपोरेट को ही फायदा हुआ. बाकी लोगों को नहीं.एक बार फिर आम जनता के टैक्स के पैसे को ढहते बैंकिंग के ढांचे में डालना कतई अक्लमंदी नहीं है.
सच ही तो है. उधार की अक्ल से देश नहीं चलता.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.