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Ranchi : रांची से 35 किमी दूर खूंटी जिले के जरियागढ़ थाना क्षेत्र में लाप्पा मोहराटोली गांव है. वैसे तो यह गांव झारखंड के आम गांवों की तरह ही है. पर इसमें कुछ खास है, तो यह कि लाप्पा मोहराटोली मोस्ट वांटेड PLFI सुप्रीमो दिनेश गोप का गांव है. दर्जनों लोगों की हत्या का आरोपी दिनेश गोप इस समय पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है. जिसे झारखंड और बिहार पुलिस के अलावा एनआईए भी खोज रही है. इस समय दिनेश गोप की एक नयी तस्वीर सामने आयी है.
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सेना की नौकरी के लिये आयी थी चिट्ठी, पर नहीं मिली
जानकारों की मानें, तो दिनेश गोप का चयन सेना की नौकरी के लिये हुआ था. सेना की ओर से ज्वाइन करने के लिए उसे चिट्टी भी भेजी गयी थी, लेकिन गांव के दबंगों ने इस चिट्टी को कभी उसके घर पहुंचने ही नहीं दिया. जब इसकी जानकारी दिनेश गोप के भाई सुरेश गोप को हुई, तो उसने इसका विरोध किया और दबंगों के खिलाफ बगावत करनी शुरू कर दी. कई लोग सुरेश गोप का संबंध नक्सलियों से होने की बात भी करते हैं. इसी बीच वर्ष 2000 में पुलिस की गोली से सुरेश गोप की मौत गयी और दिनेश गोप ओडिशा भाग गया. कुछ दिन बाद वह फिर इलाके में लौटा. पर उस समय तक उसका नाम और काम दोनों बदल चुके थे. अब वह गांव का दिनेश नहीं बल्कि एक ऐसे गिरोह का सरगना था, जिनके हाथों में बंदूकें थीं और जो गरीब-गुरबों की हक की बात करता था.
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फिर दिनेश का खौफ पूरे इलाके में व्याप्त हो गया
माओवादी कमांडर मसीह चरण पूर्ति ने साल 2001 में भाकपा माओवादी संगठन से अलग होकर अपना पृथक दस्ता बनाया था. यह दस्ता पहले गुल्लु क्षेत्र में सक्रिय था, फिर इसकी सक्रियता सिलादोना और मारंगहादा तक बढ़ी. इस दस्ते ने जल्द ही मारंगहादा को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लिया. 2006 में इस दस्ते का विलय जेएलटी में हो गया और 20 जुलाई 2007 को इस हथियारबंद दस्ते को एक नया नाम मिला- पीएलएफआई. संगठन दिनों दिन बढ़ता गया और दिनेश गोप का खौफ पूरे इलाके में व्याप्त हो गया. लोगों को लगा कि माओवादियों और दबंगों से निजात यही संगठन दिला सकता है. कुछ लोग इस विचारधारा से प्रभावित होकर तथा कुछ डर से उसके साथ जुड़ते चले गए. मात्र एक साल में ही दिनेश ने अपना संगठन जिला के बाहर कई हिस्सों में फैला दिया. उसके नेटवर्क में सूत्रों की माने तो पुलिस अफसर से लेकर राजनेता तक आ गए. देखते ही देखते दिनेश गोप का वर्चस्व कायम होने लगा और उसने क्षेत्र और राज्य में लोगों को अपनी ओर जोड़ने के लिए मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाते हुए निशुल्क स्कूल खोला. साथ ही गरीब बच्चियों की शादी कराना,लड़ाई झगड़े का फैसला करना, राजनीतिक फायदा दिलवाना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गयी.
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विदेशी हथियार तस्कर के सम्पर्क में आया
जानकारी के अनुसार साल 2006 में पीएलएफआई सुप्रीमो दिनेश गोप का संपर्क विदेशी तस्करों से हुआ. विदेशी हथियार तस्करों से उसे अत्याधुनिक एके -56 एलएमजी और एम 16 जैसे असाल्ट राइफल मिलने लगी. इसका खुलासा तब हुआ जब उस दौरान कुछ पीएलएफआई उग्रवादी गिरफ्तार हुए थे. साल फरवरी 2010 में दिनेश गोप ने अपने संगठन के टॉप कमांडरों के साथ एक मीटिंग बुलायी और प्रशिक्षण कैंप मेरोमबीर (खूंटी-सिमडेगा-गुमला का बॉर्डर) के जंगलों में लगाया. उस समय अपने संगठन का एकीकृत रूप देखने का उसको शौक था. फरवरी 2010 में लगभग 20 से 25 दिन लगभग 350 से 400 की संख्या में उग्रवादियों का कैंप चलता रहा और प्रशासन को पता भी नहीं चला. 12 फरवरी 2010 को लोगों को इसका पता तब चला जब एक पत्रकार ने पूरे प्रशिक्षण कैंप की विस्तृत रिकॉर्डिंग और रिपोर्टिंग सार्वजनिक कर दी.
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सरेंडर के लिये तैयार हुआ लेकिन बात नहीं बनी
जानकारी के अनुसार अनाज के नाम पर वोट की राजनीति” झारखंड की असलियत हेडिंग के साथ ट्रेनिंग कैंप में उग्रवादी खुलेआम अत्याधुनिक हथियारों का प्रदर्शन करते और प्रशिक्षण लेते हुए दिख रहे थे. जब एक पत्रकार उस इलाके में रिपोर्टिंग करने गये. तो उनकी मुलाकात दिनेश गोप से हुई थी. इसी समय पत्रकार के कहने पर दिनेश गोप अपनी कुछ मांगों के साथ पूरी संगठन के कमांडर और लड़ाकों के साथ सरेंडर करने के लिए राजी हो गया था. कहा गया कि सरकार के साथ बातचीत का दौर चलता रहा जो आगे जाकर नाकाम हो गया.
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राजनीतिक पकड़ की वजह से बचता फिर रहा है
सूत्रों की माने तो दिनेश गोप ने राजनीति में पकड़ बनाने के लिए विधानसभा क्षेत्र में इस संगठन के द्वारा अपने लोगों को खड़ा कर विधायक भी बनाया. अब तक गोप का संपर्क दिल्ली में बैठे कई बड़े राजनेताओं से हो गया था. बैठे बैठे टिकट दिलवाना और राजनेताओं को विधायक बनाना इसके पेशे में शामिल हो गया. कई सरकारें आई, उतार चढ़ाव होते रहे कई बार कई राजनेता भी इसके टारगेट में रहे. कई मारे भी गए तो कुछ उसके पास मध्यस्था कर सुलह कर लिया. इस पूरे संगठन की तस्वीर और वीडियो राज्य पुलिस को मिल गयी, परन्तु पीएलएफआई सुप्रीमो की तस्वीर किसी के पास नहीं थी. सूत्र बताते हैं कि यह बीच-बीच में कई राजनेताओं के आवास पर भी जाया करता था. इसका आर्थिक स्रोत तब तक ग्रामीण क्षेत्र में हो रहे माइंस और विकास योजनाओं तक ही सिमटा हुआ था. सूत्र बताते हैं कि कुछ वर्षों से यह राजधानी रांची में दस्तक दे रहा था. राजधानी में पैर जमाने की कोशिश में लगा रहा.लेकिन कामयाब नहीं हो पाया है.
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