Anand Kumar
जॉनसन का नाम पहल-पहल लोगों ने बिटिकलसोय कांड में सुना. अप्रैल 2004 में पुलिस पार्टी पर नक्सलियों ने हमला किया था. हमले में दो ग्रामीण और 17 पुलिस जवान शहीद हुए थे. चाईबासा के तत्कालीन एसपी प्रवीण सिंह (अब दिवंगत) ने इस हमले में बमुश्किल अपनी जान बचाई थी. मगर उन्हें अपने हाथ की उंगलियां गंवानी पड़ी थीं. इसके बाद उसने एक के बाद एक वारदातों को अंजाम दिया. पश्चिमी सिंहभूम जिले में ट्रेनों पर जितने भी नक्सली हमले हुए, ज्यादातर में जॉनसन का हाथ रहा. अज्ञात ग्रामीणों के हाथों मारे जाने तक जॉनसन के ऊपर 27 मामले दर्ज थे. इनमें मनोहरपुर में 7, छोटानागरा में 4, जराईकेला में 6, गोईलकेरा में 2, सोनुवा में 2 व मुफ्फसिल, किरीबुरु व टेबो थाना में एक-एक मामला दर्ज था.
सारंडा के पहाड़ों पर साल के जंगल हैं. पूरे एशिया में साल के पेड़ों का यह सबसे बड़ा जंगल 820 वर्ग किमी में फैला है, जो झारखंड से लेकर ओडिशा की सीमा के भीतर तक जाता है. यहां बनैले पशुओं, पक्षियों और सरीसृपों की सैकड़ों प्रजातियां और उड़ने वाली गिलहरी भी यहां पायी जाती है. हो-भाषा में ‘सारंडा’ शब्द का अर्थ है हाथियों का वन. इस जंगल को इसका नाम यहां बड़ी संख्या में रहनेवाले हाथियों के कारण मिला है. सारंडा को सात सौ पहाड़ियों की भूमि के रूप में भी जाना जाता है. इन सुरम्य पहाड़ियों के बीच से बहती है कारो नदी. इन पहाड़ियों के ऊपर साल के सीधे खड़े ऊंचे पेड़ हैं और इसके गर्भ में दबा है लाखों टन लोहा, जिससे कारखानों में ढाला जाता है इस्पात.
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इस्पात को फौलाद भी कहते हैं. और सारंडा में निवास करनेवाली जनजातियां सदियों से इस लाल बजरी को गला कर अपने लिए खेती और शिकार के औजार बनाती आयी हैं. आजादी के पहले अंग्रेजों ने यहां वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर लोहे का पता लगाया और देश में सबसे पहले टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) ने यहां से लौह अयस्क का खनन शुरू किया. आज यहां देश-विदेश की नामी-गिरामी कंपनियां लौह अयस्क के खनन में जुटी हैं. देश के कुल आयरन ओर (हेमेटाइट) भंडार का 26 प्रतिशत हिस्सा पश्चिमी सिंहभूम में है. यहां नोआमुंडी, गुआ, चिरिया, किरीबुरू, घाटकुरी समेत 41 खदानें हैं. विशेषज्ञों का अनुमान है कि सारंडा में 18 हजार मिलियन टन आयरन ओर का भंडार है.
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सारंडा में खनन कानूनी तरीके से होता है और गैरकानूनी भी. क्षमता से अधिक खनन, कोर-बफर एरिया की परवाह किये बिना उत्खनन. फॉरेस्ट एरिया तक में घुस कर खनिज की चोरी का काम लंबे समय से होता रहा है. निकाले गये खनिज को तोड़ने के लिए क्रशर लगते हैं और ढोने के लिए ट्रांस्पोर्टरों की गाड़ियां. ये सब नक्सलियों को पैसा देते हैं, ताकि उनका काम निर्बाध चले. जो नहीं देते, बम-गोली चला कर उनका काम बंद करा दिया जाता है. गाड़ियां जला दी जाती हैं और कामगारों को मारा-पीटा जाता है. हत्याएं तक हुई हैं. जॉनसन गंझू के ऊपर ही सारंडा क्षेत्र में काम करनेवाली खनन कंपनियों, ट्रांसपोर्टरों, बीड़ी पत्ता कारोबारियों और सरकारी योजनाओं से लेवी वसूली का जिम्मा था. एक अनुमान के अनुसार झारखंड में सालाना 150 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि कारपोरेट कंपनियां नक्सलियों के खाते में डालती हैं. अब इसको एक नया नाम मिला है-टेरर फंडिंग. राष्ट्रीय जांच एजेंसी NIA इसकी जांच में जुटी है. मगर वह मुख्यतः कोयला क्षेत्र में लेवी से जुड़े मामलों की जांच कर रही है.
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वर्ष 2010-11 में चाईबासा थाना क्षेत्र में पुलिस और सीआरपीएफ के संयुक्त एलआरपी के दौरान नक्सली अपने हथियार और सामान छोड़ कर भाग निकले थे. वहां से पुलिस को बाकी सामान के साथ एक पिट्ठू भी मिला था. पिट्ठू में एक डायरी थी. डायरी को पढ़ते ही पुलिस के होश उड़ गये. वह कुख्यात नक्सली कमांडर जॉनसन गंझू उर्फ चंदर गंझू की डायरी थी. जॉनसन गंझू उस वक्त सारंडा के इलाके में वही असर रखता था जो बाद में कुंदन पाहन का हुआ. शातिर जॉनसन उस वक्त पुलिस के सामने से निकल गया था. उसे कोई पहचानता नहीं था. उसकी कदकाठी छोटी थी और देखने में वह कोई मासूम सा ग्रामीण युवक लगता था. जॉनसन को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह इतना खूंखार नक्सली है. जॉनसन गंझू से पिट्ठू से मिली डायरी में सारंडा क्षेत्र में सक्रिय बीड़ी पत्ता कारोबारियों, ठेकेदारों, ट्रांसपोर्टिंग कंपनियों और लौह अयस्क खनन करनेवाली कारपोरेट कंपनियों के नाम और उनसे वसूली जानेवाली राशि का ब्योरा था. माओवादी हर महीने लाखों रुपये लेवी के रूप में उठा रहे थे. पुलिस ने इस संबंध में चाईबासा थाना में एक मुकदमा भी दर्ज किया था. सूत्रों के अनुसार जॉनसन की वह डायरी बतौर सबूत कोर्ट में जमा है. जारी