Shailesh Singh
Kiriburu : आज का बच्चा कल का देश का भविष्य निर्माता है. किरीबुरु-मेघाहातुबुरु समेत सारंडा व लौहांचल के सैकड़ों उपेक्षित गरीब व अनाथ बच्चों का भविष्य आज की सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है. ठंड के इस मौसम में ऐसे बच्चों के लिए शहर में रैन बसेरा आदि की कोई सुविधा नहीं है. आज लौहांचल ही नहीं सारंडा के अन्य हिस्सों में देखा जा सकता है कि कचरों के ढेर में अपनी जिंदगी को तलाशने को विवश हैं गरीब और असहाय बच्चे. जेठ की तपती धरती हो या कड़ाके की पड़ रही सर्दी अथवा सावन-भादो की मूसलाधार वर्षा, ऐसे तमाम मौसमों में एक तरफ लोग एयर कंडीशन और अन्य सुविधाओं से युक्त अपने-अपने आलीशान घरों में रहकर चाय की चुस्कियां लेते हैं तो दूसरी तरफ इससे बेखबर गरीब व अनाथ बच्चे किसी अनिष्ट की परवाह किए बगैर दो जून की रोटी की तलाश में मल-मूत्र एवं विषैले कीड़े-मकोड़े से लबरेज दुर्गंधयुक्त नालियों और गलियों में जाकर शराब की खाली बोतलें, प्लास्टिक व अन्य समान चुनते नजर आते हैं. इसे बेचकर वे अपना पेट भरते हैं. इतना ही नहीं ऐसे गरीब बच्चों को होटल, मोटर गैरेज आदि में काम करते या बस स्टैंड, सार्वजनिक जगहों पर भीख मांगते भी देखा जा सकता है. इनकी यह उम्र शिक्षा और तालीम पाने की होती है. केंद्र व राज्य सरकार और कुछ गैर सरकारी संस्थाओं ने इन बच्चों के उत्थान के लिए कुछ प्रयास अवश्य किए हैं.
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सर्वशिक्षा अभियान के तहत सरकारी विद्यालयों, आंगनबाड़ी केंद्रों व अन्य विद्यालयों में निःशुल्क शिक्षा और कहीं-कहीं आवासीय शिक्षा सुविधा और मध्याह्न भोजन की व्यवस्था की गई है. लेकिन कोरोना महामारी ने इनके सामने विकट स्थिति उत्पन्न कर दी है. दर्जनों गरीब व अनाथ बच्चों के पास अपना रहने की व्यवस्था तक नहीं है ऐसे में वह अपना पेट भरने की दिशा में कदम बढ़ाए या फिर स्कूल की ओर, सरकार ने बाल मजदूरी और शोषण के खिलाफ कड़े कानून बनाए हैं. मंगलवार की अहले सुबह किरीबुरु स्थित मेन मार्केट क्षेत्र की सड़क किनारे झाड़ियों में ऐसे ही गरीब दो बच्चों को ठंड से बचने हेतु अलाव जला कर आग तापते देखा गया. इन बच्चों का कोई आशियाना नहीं है. यह जैसे-तैसे कचरों के ढेर से जरूरी समान चुन व बेचकर अपना भविष्य तलाशने का कार्य प्रतिदिन करते हैं.