Girish Malviya
इस देश में एक बड़ी आबादी की ऐसी पूरी जमात इकट्ठा हो गयी है. जो अब सही को सही और गलत को गलत बोलने से दूर भागती है. और अपने नेता के हर गलत निर्णय का भी खुलकर समर्थन करती है. रेलवे को ही देख लीजिए 20 मार्च 2020 से ट्रेन के पहिए जो थमे हैं, वो आज तक अपनी पूरी रफ्तार से नहीं चल पा रहे हैं. सिर्फ 70 प्रतिशत ट्रेन ही चल रही है. जो ट्रेनें चल रही हैं, उन्हें स्पेशल ट्रेन बनाकर चलाया जा रहा है. इन स्पेशल ट्रेनों के रूट और स्टेशन भी बदले जा रहे हैं. लेकिन कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं है. स्पेशल ट्रेन में किराया अधिक वसूला जा रहा है.
जिन एक्सप्रेस और मेल ट्रेनों के ठहराव छोटे स्टेशनों पर हुआ करता था, वो अब बंद कर दिया गया है, वहां के यात्रियों को सैंकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर बड़े शहरों से ट्रेन पकड़ना पड़ रहा है.
बताया जा रहा है कि रेलवे देश के 10 हजार रेलवे स्टॉपेज को भी बंद करने फैसला कर सकती है.
सभी ट्रेनों में जनरल का रेल टिकट महंगा हो गया है. रेलवे ने किराया नहीं बढ़ाया है, लेकिन रिजर्वेशन शुल्क जुड़ने के कारण अधिक रुपए लग रहे हैं.
पहले ट्रेन में सीनियर सिटीजन को किराए में छूट मिलती है, जो अब नहीं मिल रही है. फिर से जो ट्रेनें तो चालू की गई है, उसमें वरिष्ठ नागरिकों के लिए किराए में छूट वाली सुविधा अब तक नहीं दी गयी है.
अधिमान्य पत्रकारों, विद्यार्थियों और खिलाड़ियों को ट्रेन के किराए में छूट दी जाती थी, जो अब बंद कर दी गयी है.
ट्रेनों में आरक्षित टिकट पर यात्रा करने वाले यात्रियों को मुफ्त मिलने वाले कंबल, चादर, बेडशीट अब तक नहीं मिल रहे हैं. एक बार उपयोग करने वाले चादर, कंबल और बेडशीट रेलवे स्टेशनों पर उपलब्ध कराए गए हैं. लेकिन यात्रियों को अलग से रुपए चुकाने पड़ रहे हैं.
कोरोना महामारी के कारण आदमी की जेब पर असर पड़ा है. उसकी आमदनी प्रभावित हुई है. लेकिन उसके बावजूद रेलवे जैसी प्राथमिक जरूरत में सरकार ने सुविधाएं घटाकर और दाम बढ़ाकर लूट मचा दी है. लेकिन कोई भी यह बोलने को तैयार नहीं है कि यह गलत हो रहा है?
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.