Ranchi: देवघर स्थित त्रिकूट पर्वत में बने रोपवे हादसे में फंसे लोगों को रेस्क्यू टीम ने कठिन अभियान चलाकर बचा लिया. हालांकि इस हादसे में तीन पर्यटकों की जान भी गयी है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मृतक के परिजनों को आर्थिक सहायता और घायलों का इलाज कराने की घोषणा की है. उन्होंने हादसे की जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का भी भरोसा दिलाया है. झारखंड हाईकोर्ट ने हादसे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जांच का निर्देश राज्य सरकार को दिया है. हालांकि इन सबसे अलग देवघर रोपवे निर्माण में हुई तकनीकि गड़बड़ियों की उन पहलुओं को छोड़ दिया गया है, जिसकी जांच की बात पहले ही आ चुकी है.
अगर इन गड़बड़ियों की निष्पक्षता से जांच होती, तो शायद यह हादसा आज नहीं होता. दरअसल पूर्व वित्त सचिव राजबाला वर्मा ने 28 अगस्त 2009 में तत्कालीन पर्यटन सचिव अरुण कुमार सिंह को रोपवे निर्माण में गड़बड़ी को लेकर एक पत्र लिखा था. लेकिन इन गड़बड़ियों पर पर्यटन सचिव ने कोई ध्यान नहीं दिया. इसी तरह रोपवे निर्माण काम की गुणवत्ता खराबी को लेकर हाईकोर्ट में दो पीआईएल भी हुआ था. लेकिन दोनों ही कानूनी अड़चन में कहीं खो गयी.
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पूर्व सचिव राजबाला वर्मा ने जांच के लिए लिखा था पत्र
पूर्व सचिव राजबाला वर्मा ने तत्कालीन पर्यटन सचिव अरुण कुमार सिंह को पत्र लिख पर्यटन विभाग की कईं परियोजनाओं की विजिलेंस से जांच की मांग की थी. इन्हीं परियोजनों में त्रिकुट रोपवे परियोजना भी शामिल था. पत्र में एजी की रिपोर्ट भी संलग्न थी, जिसमें बताया गया कि जांच क्यों जरूरी है. लेकिन पर्यटन सचिव ने जांच की सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया. राजबाला वर्मा ने पत्र में लिखा था कि झारखंड पर्यटन विकास निगम (जेटीडीसी) द्वारा परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में घोटाले और धन की हेराफेरी की गयी है. ऐसे में इसकी जांच की जानी चाहिए. उन्होंने इस बात पर भी नाराजगी जतायी थी कि एजी ने अपनी एक रिपोर्ट में परियोजना में 14 आपत्तियां बतायी थी, पर जेटीडीसी ने इन आपत्तियों का पालन नहीं किया. जेटीडीसी और भारतीय पर्यटन विकास निगम (आईटीडीसी) ने परियोजनाओं के क्रियान्वयन के नाम पर 40.11 करोड़ रुपये का गबन किया है.
हाईकोर्ट में पहले भी हो चुका है दो पीआईएल
इसी तरह त्रिकुट रोपवे निर्माण परियोजना को भ्रष्टाचार का अड्डा और काम की गुणवत्ता में खराबी बताते हुए हाईकोर्ट में दो पीआईएल भी हुआ था. पहला पीआईएल 2010 में संजय तिवारी द्वारा दायर की गई थी. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश भगवती प्रसाद और न्यायमूर्ति आर के मेराठिया की खंडपीठ ने कोई आदेश पारित नहीं किया, लेकिन कहा कि “याचिकाकर्ता कथित तौर पर हुए इस अपराध के लिए संबंधित पुलिस थाने जा सकता है. जांच का कोई निर्देश नहीं दिया गया.
2011 में डोरंडा के रहने वाले बबलू कुमार ने मामले पर एक और जनहित याचिका (5083/2011) दायर की. झारखंड पर्यटन विभाग के सचिव (विकास आयुक्त अरुण कुमार सिंह उस समय झारखंड पर्यटन विभाग के सचिव थे) को मामले के प्रतिवादी बनाया गया. उन्होंने अरुण कुमार सिंह पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया और कोर्ट से सीबीआई जांच का आदेश देने का अनुरोध किया. उन्होंने अरूण कुमार सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज करने की भी मांग की. इसपर कोई निर्देश नहीं दिया गया.
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