Shailesh Singh
Kiriburu: कोयना के रेंजर विजय कुमार की पिछले दिनों लगभग एक करोड़ रुपये के साथ हुई गिरफ्तारी के बाद वन विभाग के कनिष्ठ से लेकर उच्च अधिकारियों के अलावे विभागीय मंत्रालय में खलबली मची हुई है. कई सवालों को लेकर विभागीय अधिकारियों की परेशानी बढ़ गई है. अगर इन सवालों के सही जवाब मिल गए तो कई लोग विभागीय कार्रवाई की चपेट में आ सकते हैं. सबसे बड़ा सवाल सैकड़ों वर्ग किलोमीटर में फैले सारंडा वन क्षेत्र की संपदा की सुरक्षा का है.
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इन सवालों को लेकर बढ़ी बैचेनी
बैचैनी इस बात को लेकर भी है कि आखिर रेंजर विजय कुमार का स्थानान्तरण होने के बावजूद उनका स्थानान्तरण किस परिस्थिति में रूका! इसके एवज में कितने की डील हुई थी! इस डील में कौन-कौन शामिल थे! विजय कुमार ने जांच टीम को क्या-क्या जानकारी दी! भ्रष्टाचार के इस खेल में उनके साथ कौन-कौन शामिल थे तथा उसने किसके-किसके नाम बताए हैं ! विभागीय फंड का बंदरबांट में किसका कितना हिस्सा जाता है! आदि अनेक सवाल खड़े हो रहे हैं जिसको लेकर विभागीय उच्च अधिकारी से लेकर वन मंत्रालय तक के अधिकारियों में भय का माहौल है.
कोयना, आनंदपुर एंव सोंगरा रेंज का अगला रेंजर कौन?
इन सारे सवालों के अलावे एक बडा़ सवाल यह भी है कि आखिर कोयना, आनंदपुर एंव सोंगरा रेंज का अगला रेंजर कौन होगा! लगभग एक करोड़ रुपये के साथ कोयना के रेंजर विजय कुमार की गिरफ्तारी के बाद उक्त तीनों रेंज, रेंजर विहीन हो गए हैं. लगभग 850 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला सारंडा वन प्रमंडल का जंगल पहले से हीं रेंजर, फौरेस्टर व फौरेस्ट गार्ड जैसे मैन पावर की समस्या से जूझ रहा है. यहां जो रेंजर हैं उन्हें सारंडा, कोल्हान, पोडा़हाट व चाईबासा के विभिन्न रेंज का अतिरिक्त प्रभार देकर भगवान भरोसे पश्चिम सिंहभूम जिला के उक्त वन प्रमंडलों के जंगलों को बचाने की बैसाखी पकड़ा दी गई है. उल्लेखनीय है कि सारंडा वन प्रमंडल का मुख्यालय सारंडा से लगभग 100 किलोमीटर दूर चाईबासा में है. वहां वन प्रमंडल व अन्य पदाधिकारियों के अलावे दर्जनों वनकर्मी काम करते हैं. ये अधिकारी चाईबासा में बैठकर सारंडा की सुरक्षा कैसे करते हैं, यह समझ से परे है.
सारंडा वन प्रमंडल में 64 फॉरेस्ट गार्ड की जगह 40 ही नियुक्त
सारंडा वन प्रमंडल के अधीन चार रेंज कार्यालय जिसमें ससंग्दा (किरीबुरु), गुवा, कोयना (मनोहरपुर) और समठा (जराईकेला) हैं. ससंग्दा के रेंजर राजेश्वर प्रसाद हैं जो ससंग्दा के अलावे नोवामुंडी व चाईबासा के संयुक्त प्रभार में हैं. वे किरीबुरु में यदा-कदा आते हैं. गुवा के रेंजर एके त्रिपाठी हैं जो गुवा के अलावे सोनुवा और गोईलकेरा रेंज के संयुक्त प्रभार में हैं, लेकिन वह गुवा में नहीं रहते हैं. कोयना के रेंजर विजय कुमार थे, जिन्हें कोयना के अलावे आनंदपुर एंव सोंगरा का भी प्रभार था. समठा के रेंजर संजीव कुमार सिंह हैं. सारंडा वन प्रमंडल में 64 फॉरेस्ट गार्ड की जगह 40 ही नियुक्त हैं. इसमें प्रायः अपने-अपने रेंज या बीट कार्यालय में रहते हैं, लेकिन जंगल गश्ती नहीं के बराबर करते हैं. दर्जनों फॉरेस्ट गार्ड को ट्रेंच खुदाई, प्लांटेशन आदि के अलावे कार्यालय के कार्यों में लगाया गया है.
ऐसी स्थिति में कैसे बचेगा सारंडा?
सारंडा के उक्त चारों रेंज में रेंजर, फौरेस्टर आदि की स्थायी नियुक्ति के साथ वाहन समेत तमाम संसाधनों की अत्यंत आवश्यकता है. वन विभाग सेल व टाटा स्टील जैसे कंपनियों के रहमो करम से चलने को मजबूर है. वन विभाग को सिर्फ सारंडा जंगल से लौह अयस्क व अन्य खनिज तथा वन सम्पदा की ढुलाई पर अलग से रॉयल्टी मिलती है. पहले यह रॉयल्टी नहीं मिलती थी लेकिन इसे वसूलने का आदेश अक्टूबर 2020 में दिया गया था. इन पैसों से सारंडा वन प्रमंडल के तमाम खाली पदों को भरा जा सकता है. साथ ही सारंडा के बेरोजगार युवाओं को वन विभाग के अधीन रोजगार व नौकरी देकर सारंडा जंगल को माफियाओं से बचाया जा सकता है.
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