Kumkum Kumar
भारत में लगभग सभी समुदायों में समाज द्वारा बेटे को प्राथमिकता दी जाती है. बेटे के प्रति इस प्राथमिकता को आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक और भावनात्मक कारकों से जायज ठहराया जाता है. बेटी गौण बना दी जाती है. इस प्रकार एक बेटी या किसी लड़की के लिए उसके जन्म से पहले ही गरिमापूर्ण जीवन जीने का संघर्ष शुरू हो जाता है. विडंबना तो यहां तक है कि लिंग-निर्धारण परीक्षण और लिंग-चयनित गर्भपात से बच बचाकर ही एक बेटी का जन्म लेना मुमकिन हो पाता है. यह भेदभाव जन्म तक ही सीमित नहीं रहता. इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि लड़कियों को बचपन से ही स्वास्थ्य और पोषण संबंधी पक्षपातपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता है. विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि शुरू के पांच सालों में, लड़कों की तुलना में अधिक लड़कियां गंभीर रूप से अविकसित रह जाती हैं. लड़कों की तुलना में अधिक लड़कियों को टीकाकारण से वंचित रखा जाता है. वयस्क हो जाने पर भी महिलाओं को घरों, सार्वजनिक स्थानों एवं संस्थानों और नौकरियों में भेदभाव, उत्पीड़न, हिंसा और शोषण का लगातार सामना करना पड़ता है.
ऐसा नहीं है कि महिलाएं और लड़कियां समाज के इस लैंगिक झुकाव के कारण समान रूप से असुरक्षित हैं. मसलन, ग़रीब वर्ग की महिलाओं और लड़कियों या निम्न जाति, आदिवासी समुदाय या धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में अपनी पहचान के कारण भी लिंग-आधारित भेदभाव के अलावा उन्हें अपने वर्ग या सामाजिक पहचान के कारण भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
“बेटी जिंदाबाद” अभियान की शुरुआत
एक्शन एड एसोसिएशन ने 2013 में गिरते लिंगानुपात के खिलाफ कार्रवाई करने हेतु “बेटी जिंदाबाद” अभियान की शुरुआत की. सनद रहे कि 2011 की जनगणना में लिंगानुपात तीव्रता से गिरता पाया गया था. इस अभियान को कई राज्यों में ले जाने के दौरान, हमें दूर-दराज के जिलों में भी समाज में लिंगभेद जैसे स्वर का सामना करना पड़ा. हमने लिंग निर्धारण को रोकने हेतु, प्रस्ताव पारित करने के लिए स्थानीय स्तर की ग्राम पंचायतों के साथ मिलकर काम किया. हमने यह सुनिश्चित करने का भी प्रयास किया कि ग्राम पंचायत स्तर की मशीनरी, लिंग-चयनित गर्भपात के खतरे को सक्रियता से संबोधित करें.
शहरों में रहने वाली युवा महिलाओं को आर्थिक कठिनाइयों, प्रतिकूल सार्वजनिक सेवाओं तक न्यूनतम पहुंच, अवैतनिक काम का बोझ और लिंग-आधारित हिंसा जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है. महिला कामगारों को ना केवल कम मजदूरी, बल्कि मजदूरी का असमय भुगतान भी सहना पड़ता है. इसके अलावा जल आपूर्ति, परिवहन और स्वास्थ्य सेवाओं में बजट कटौती से भी महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. हम जमीनी स्तर पर नियोक्ताओं से मजदूरी की मांग करने वाले ‘वूमेंस वेज वाच ग्रुप्स’ के साथ काम कर रहे हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि महिलाओं को समय पर उनकी मजदूरी का भुगतान किया जाए. लेकिन यह प्रयास तभी और मजबूत होगा, जब घरेलू महिला श्रमिकों को भी मान्यता देने और न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करने वाला कानून पारित होगा.
कन्या भ्रूण हत्या का मुद्दा अभी भी
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-2021 इंगित करता है कि भारत ने पिछले पांच वर्षों में महत्वपूर्ण प्रगति की है. सर्वेक्षण के अनुसार, प्रति 1,000 पुरुषों पर 1,020 महिलाएं हैं, जो एक सराहनीय उपलब्धि है. हालांकि 2014-15 के 918 से 2019-20 के 934 तक, इन 16 अंकों के सुधार के बावजूद बाल लिंगानुपात एक चिंता का विषय बना हुआ है, जो दर्शाता है कि लिंग चयन और कन्या भ्रूण हत्या का मुद्दा अभी समाप्त नहीं हुआ है.
यह सुनिश्चित करना कि एक बेहतर जीवन प्रदान करने के लिए आवश्यक है कि लड़कियों का स्कूल में दाखिला हो. उनकी शिक्षा बेरोकटोक जारी रहे. एक्शन एड एसोसिएशन भारत के पांच राज्यों के 52 जिलों में “यस टू स्कूल एंड नो टू चाइल्ड मैरिज” अभियान चला रहा है. लड़कियों का बाल विवाह, उन्हें उत्पीड़न और असमानता के जीवन की ओर ले जाता है. इससे उनके जीवन का हर पहलू प्रभावित होता है. सरकार और स्वयंसेवकों के साथ काम करते हुए हमने ओडिशा के 10,000 गांवों को बाल विवाह मुक्त किया. इस बात को सुनिश्चित किया जाना भी जरूरी है कि किशोरियों को स्कूल जाते समय और स्कूल परिसर में उत्पीड़न का सामना ना करना पड़े.
यह भी आवश्यक है कि महिलाओं के लिए पानी लाने में लगने वाले समय को कम किया जाए, ताकि उन्हें अपनी रुचि, व्यवसाय या अवकाश के क्षेत्रों में आगे बढ़ने की छूट मिले. शहरी क्षेत्रों में युवा महिलाओं के नए क्षेत्रों में तेजी से प्रवेश करने के मद्देनजर सुरक्षित परिवहन मुहैया करवाने की आवश्यकता है. पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ बसों और ट्रेनों की नियमित सेवा, इन महिलाओं के लिए एक अच्छी आजीविका कमाने हेतु अनिवार्य है.
अवैतनिक काम के बोझ को कम किया जाए
लड़कियां उच्च शिक्षा और अपने अन्य हितों को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र हों. यह भी जरूरी है कि उनके अवैतनिक काम के बोझ को कम किया जाए. इसलिए पारिवारिक स्तर पर उनके द्वारा किए गए कार्य की पहचान और परिवार के सभी सदस्यों के बीच कार्यभार को फिर से वितरित करना महत्वपूर्ण है, ताकि उनके कार्यभार को कम किया जा सके. सरकार द्वारा पर्याप्त ‘चाइल्ड केयर’ सेवाएं प्रदान करवाना भी महत्वपूर्ण है, ताकि महिलाओं को उन आजीविकाओं को अपनाने के लिए मजबूर ना होना पड़े, जो कम आय प्रदान करती है और उन्हें कमजोर स्थिति में छोड़ देती है.
घर और कार्यस्थल पर लिंग-आधारित हिंसा रोकना महिलाओं के जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है. घरेलू हिंसा अधिनियम, बाल विवाह अधिनियम और दहेज निषेध अधिनियम को उनके अक्षरश: एवं भावना में लागू करना समय की दरकार है. हेल्पलाइन और संकट केंद्रों की स्थापना भी उतनी ही महत्वपूर्ण है. इन केंद्रों का जिला और ब्लॉक स्तर पर होना आवश्यक है, ताकि अधिक से अधिक महिलाएं इन सेवाओं का लाभ ले सकें.
इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कार्यस्थल यौन-उत्पीड़न से मुक्त रहे, यह जरूरी है कि नियोक्ता अनिवार्य रूप से आंतरिक समिति का गठन करे. समिति के सदस्यों को दर्ज मामलों को संबोधित करने के लिए प्रशिक्षित करें. जहां आंतरिक समिति का गठन लागू नहीं है, वहां सरकार द्वारा स्थानीय समिति के माध्यम से व्यापक जागरूकता निर्माण सुनिश्चित किया जाना चाहिए. महिलाओं की इन समितियों के सदस्यों तक पहुंच को आसान बनाया जाना चाहिए.
संपत्ति का होना, महिलाओं को अपनी एजेंसी पर जोर देने में मदद करता है. यह उन्हें हिंसा का विरोध करने में सक्षम बनाता है. अध्ययनों से पता चला है कि जिन महिलाओं के पास संपत्ति होती है, वे उन महिलाओं की तुलना में कम हिंसा का सामना करती हैं, जिनके पास संपत्ति नहीं होती है. संपत्ति वाले परिवारों को ना केवल अपनी लड़कियों को स्कूल और कॉलेजों में भेजना, बल्कि माता-पिता की संपत्ति में उनका हिस्सा भी सुनिश्चित करना चाहिए. उनके नाम पर संपत्ति, भविष्य में उन्हें खुद को मुखर करने में मदद करती है. भविष्य में किसी भी दुर्भाग्य या हिंसा का सामना करने में वह असहाय महसूस नहीं करती.
इस प्रकार कामकाजी दुनिया में महिलाओं की बढ़ती संख्या का जश्न मनाने, महिलाओं के लिए संपत्ति के अधिकार तथा पुरुषों एवं लड़कों को देखभाल के काम में समान रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहन देने हेतु एक राष्ट्रीय अभियान, लड़कियों और महिलाओं के लिए समतल क्रीड़ास्थल बनाने की राह में एक लंबा रास्ता तय करेगा.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.