Seraikela : देशभर में लगातार बढ़ रही महंगाई से जनता परेशान है. महंगाई का सबसे अधिक असर मध्यम और निम्न मध्यम वर्गीय परिवार पर पड़ रहा है. तेजी से बढ़ती महंगाई में लोगों के वेतन में वृद्धि नहीं हो रही है. सीमित आय में लोगों को घर चलाना मुश्किल हो रहा है. बच्चों की स्कूल फीस देने में लोग असमर्थ हो रहे हैं. लोग वेतन और खर्च के बीच तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं. पेट्रोल, रसोई गैस, सब्जियां, राशन, कपड़े और दवाइयां सभी की कीमत बहुत अधिक बढ़ गई है. इसके बोझ से लोग कराह रहे हैं.
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महंगाई ऐसी कि हरी सब्जी खाना हुआ दुर्लभ
आदित्यपुर बस्ती सी रोड के सपन दास कहते हैं महंगाई ऐसी है कि हरी सब्जी खाना दुर्लभ हो गया है. कोई भी सब्जी 30 रुपये प्रतिकिलो से कम नहीं है. आज मैं घर से हरी सब्जी खरीदने निकला हूं. लेकिन भाव जानकर एक किलो खरीदने के बजाय एक-एक पाव खरीद रहा हूं. बैंगन 50 रुपये, लौकी 30 रुपये, करेला 60 रुपये, पटल 40 रुपये, पालक साग 80 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. हाल के दिनों में बढ़ी महंगाई से जीना मुहाल है. सरकार को आमलोगों के आमदनी और खर्च पर ध्यान रख कर बाजार भाव पर नियंत्रण रखनी चाहिए.
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कपड़ों की कीमत लगभग दोगुनी हो गई
लोगों की आवश्यक आवश्यकताओं में से एक कपड़ा भी महंगाई की चपेट में है. बीते तीन-चार वर्षों के अंदर ही दैनिक उपयोग के कपड़ों की कीमत लगभग दोगुनी हो गई है. ब्रांडेड कपड़ों की बात करें तो वह गरीबों की पहुंच से बाहर हो गई है. चौका स्थित शुभम वस्त्रालय में खरीदारी करने पहुंचे खूंटी निवासी मोटर मैकेनिक लक्ष्मीकांत महतो ने बताया कि ग्रामीण अंचलों में हर पर्व त्योहार के अवसर पर नए कपड़े पहने का रिवाज चला आ रहा है. क्षेत्र के मजदूर किसान वर्ग के लोग अब हर पर्व त्योहार में नए कपड़े नहीं खरीद पा रहे हैं.
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दवाओं की बढ़ती कीमत जानलेवा साबित हो रही है
सरायकेला के अश्वनी रजक ने कहा कि अन्य सभी आवश्यक वस्तुओं के साथ ही जीवन रक्षक दवाओं की बढ़ती कीमत ने भी कमर तोड़ कर रख दी है. उन्होंने कहा कि दवाइयों की निरंतर बढ़ती कीमतें जानलेवा साबित हो रही हैं. घर के किसी सदस्य बीमार हो जाने पर चिकित्सक द्वारा लिखी गई सभी दवाएं खरीदने में घर का बजट पूरी तरह बिगड़ जाता है. सभी खर्च में कटौती करते हुए भी दवा खरीदनी पड़ती है. जनहित के लिये सरकार को इसके मूल्य में कमी करने का प्रयास करना चाहिए.
तेल की कीमत कुछ घटी तो चावल की बढ़ गई
गल्ले की दुकान में खरीददारी कर रहे सरायकेला प्रखंड के एक ग्रामीण रघुनन्दन प्रधान ने मंहगाई पर पूछने पर परेशान होकर बताया कि राशन की दुकान में जरूरत की सभी वस्तुएं खरीदने हेतु काफी हिसाब बैठाना पड़ता है. घर से मिली जरूरत की सूची एवं अपनी जमा पूंजी लेकर दुकान पहुंचने के बाद पहले मिलान करनी पड़ती है. निरन्तर बढ़ती कीमतों के मध्य पैसे कम पड़ने पर कुछ वस्तुओं की खरीद में कटौती करनी पड़ती है. उन्होंने कहा अत्यधिक बढ़े खाने के तेल की कीमत कुछ घटी है पर चावल की कीमत पुनः बढ़ गई.
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भरपेट भोजन के लिये 100 की जगह 500 रुपये देने पड़ रहे
सरायकेला प्रखंड के दोलनडीह गांव के नारायण पडेया का मानना है कि महंगाई से जन जीवन अस्त व्यस्त हो गया है. पहले जहां 100 रुपये में भरपेट भोजन मिल जाता था आज उसके लिये 150 रुपये अदा करना पड़ रहा है. नास्ते में समोसा 10 रुपये हो गया है जो पांच रुपये था. रसोई गैस से लेकर अन्य खाद्य पदार्थ के दाम भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं, जिसका असर भी खाने की थाली पर भी पड़ रहा है. सरकार को महंगाई पर अंकुश लगाने की जरूरत है ताकि होटल में भोजन के दाम भी कम हो.
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