Pakur : पाकुड़ जिले के कुल 6 प्रखंडों में क्रशर और पत्थर खदान जिले का मुख्य उद्योग माना जाता था. जो इन दिनों बंदी के कगार पर है. जिले में सभी प्रखंडों को मिलाकर कुल 200 से अधिक वैध पत्थर खदान और 500 से अधिक क्रशर संचालित थी. लेकिन मौजूदा समय में पूरे जिले में 20 क्रशर और 15 पत्थर खदान चालू है. बाकी के सभी खदान और क्रशर बंद हो गये हैं.
हज़ारों मजदूर हुए बेकार, पलायन को हुए मजबूर
जानकारी के मुताबिक जिले भर में पत्थर खदान और क्रशर से करीब 30 हज़ार से ज़्यादा मजदूरों का पेट पलता था. क्रशर और खदान बंद होने से सभी मजदूर बेकार हो गये हैं. मॉनसून के कमज़ोर पड़ने से खेत में धान का बिचड़ा झूलस गया. धानरोपनी नहीं हो पाने की हालत में तमाम मजदूर देश के दूसरे शहर का रूख कर रहे हैं. हर रोज सैंकड़ों की संख्या में क्रशर और पत्थर खदान में काम करने वाले मजदूर लाचारी की गठरी लेकर गांव छोड़ रहे हैं. मनरेगा जैसी दूसरी सरकारी योजनाओं को लेकर जब उन मजदूरों से पूछा गया तो उनका कहना है कि सरकार की योजनाएं सिर्फ कागज़ पर ही है. चारो तरफ़ से हताश होने के बाद ही वो पलायन को विवश हो रहे हैं.
क्रशर और खदान संचालक विभाग से परेशान
पत्थर खदान और क्रशर के बंद होने से मजदूरों के सामने रोटी की समस्या खड़ी हो गई तो खदान संचालक भी भारी नुकसान झेल रहे हैं. खदान और क्रशर संचालकों का कहना है कि हर रोज किसी ना किसी कागज़ात के नाम पर उनके क्रशर और खदानों को सील किया जा रहा है. जब कागज़ातों के लिए अर्जी दी जाती है तो महीनों दौड़ाया जाता है. लिहाज़ा वो भी आज की व्यवस्था से हार चुके हैं.
आर्थिक नाकेबंदी जैसे हालात – मजदूर संघ
सीपीआईएम मजदूर संघ के जिला अध्यक्ष मानिक दुबे ने कहा कि क्रशर और खदान बंद होने से मजदूरों की स्थिति दयनीय हो चुकी है. जिसके कारण पाकुड़ के बाज़ार की रौनक भी खत्म होने लगी है. कांग्रेस मजदूर संघ के जिला अध्यक्ष अर्धेंदु शेखर गांगुली ने कहा कि पत्थर खदान एवं क्रशर बंद होने से जिले में व्यवसाय और बाजार की स्थिति भी चिंताजनक हो गई है. कई बार मजदूरों के साथ धरना प्रदर्शन और आंदोलन किया गया, लेकिन पदाधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंगती है. राजद के प्रदेश सचिव सुरेश अग्रवाल ने कहा कि पत्थर व्यवसाय बंद होने से पाकुड़ जिले की आर्थिक नाकेबंदी हो गई है.
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