Ranchi : रांची के हरमू मैदान में रांची के छोटानागपुर क्राफ्ट डेवलपमेंट सोसाइटी की ओर 21 मार्च तक गांधी शिल्प बाजार मेला का आयोजन किया गया है. मेला में कुंदन और मोती की ज्वेलरी, मधुबनी प्रिंटेड साड़ियां और दुपट्टे, गुजरात का ट्रेडिशनल प्रिंट के बेडशिट, प्योर कॉटन और लिनेन के कपड़े, कॉक्ररी, कारपेट आदि लोगों को काफी लुभा रहे हैं. ये सभी चीजें मार्केट में 30 रुपये से लेकर 5,000 रुपये तक के रेंज में उपलब्ध हैं. मेले में गुजरात, पटना, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और रांची के व्यापारियों ने स्टॉल लगाये हैं.
व्यापारियों का कहना है कि लगभग एक वर्ष तक मेला नहीं लगने से उन्हें काफी परेशानी हुई. पिछले वर्ष ही मेला लगने वाला था और लॉकडाउन लग गया था. ऐसे में उनका ढेरों माल फंस गया था. इसके साथ ही उन्हें आर्थिक रूप से भी परेशानी थी, पर अब जब चीजें सामान्य हो रही हैं. पुराना नुकसान उभर रहा है. उन्हें उम्मीद है कि आगे उनका व्यापार सही तरीके से चलेगा.
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केला रेशम की हैंडप्रिंट ओढ़नी आकर्षण का केंद्र
मेले में भागलपुर से आये दिनेश दास अपने साथ कई खास चीजें लेकर आए हैं. इनके पास सबसे खास है केला रेशम की हैंडप्रिट वाली ओढ़नी, जो 800 रुपये के रेंज में है. इसके साथ ही इनके पास प्योर कॉटन सिल्क दुपट्टा भी है. ड्रेस मैटेरियल 150 रुपये से लेकर 800 रुपये तक के रेंज में है. सूट, शर्ट, तौलिये 100 रुपये में, लुंगी 150 रुपये में उपलब्ध है.
शिल्प मेला : लकड़ी का उल्लू हर साइज में उपलब्ध
पश्चिम बंगाल से माधव भास्कर अपने साथ लकड़ी के विभिन्न साइज में उल्लू लाए हैं. उन्होंने बताया कि लोग उल्लू को काफी शुभ मानते हैं और अपने घरों में सजाते हैं. ये सभी उल्लू हाथों से बनाए गए हैं. इनके पास छोटे से लेकर काफी बड़े साइज के उल्लू उपलब्ध हैं. इनके पास लकड़ी के टेबल, घड़ी, शीशा आदि भी उपलब्ध हैं. ये सभी चीजें 30 रुपये से लेकर 2000 रुपये के रेंज में उपलब्ध हैं.
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धीरे-धीरे पटरी पर आ रहा व्यापार
अबरार हैदर हाजीपुर से प्योर खादी कॉटन के हैंड प्रिंटेड स्कर्ट और गाउन कुर्ती लेकर आए हैं. इन कपड़ों की खास बात है कि ये कपड़े पटना के प्रभात एनजीओ की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तैयार किए गए हैं. इसके साथ ही ये कपड़े हाथों से ब्लॉक प्रिंट किये गए हैं. ये सभी कपड़े 250 रुपये से लेकर 800 रुपये तक के रेंज में उपलब्ध हैं.
अबरार ने आगे बताया कि उनका परिवार काफी बड़ा है. लॉकडाउन में उन्हें काफी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा, पर पुरानी बचत से चीजें थोड़ी आसान हुईं. अब जब परिस्थितियां सामान्य हो रही हैं तो हमें पिछले तीन-चार महीनों में ही देश के कई कोनों में मेला लगा लिया है और आगे भी कई मेलों में अपना स्टॉल लगाने के लिए रजिस्ट्रेशन हो चुका है.