Kaushal Anand
Ranchi: 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लगभग डेढ़ साल बचे हैं और तमाम राजनीतिक फैसले इसी के मद्देनजर लिये जाने लगे हैं. झारखंड में एक बार फिर से गोत्रधारी कुरमी (कुड़मी) जाति को एसटी जाति की सूची में शामिल करने की मांग तेज हो गयी है. यह आंदोलन अब ओडिशा और बंगाल तक पहुंच गया है.
इन राज्यों में पिछले दिनों अनिश्चिकालीन रेल रोको आंदोलन भी चला. दुर्गा पूजा, दिवाली व छठ को देखते हुए आंदोलन को एक महीने के लिये रोका गया है. इसके साथ ही कुरमी जाति की मांग का फिर से विरोध भी शुरू हो गया है. आदिवासी संगठन इसके विरोध में उतर चुके हैं. आंदोलन को धार देने के लिए एक नया संगठन आदिवासी अधिकार रक्षा मंच का गठन किया गया है. छठ के बाद विरोध का स्वर तेज होगा. झारखंड के नजरिये से देखें तो यह मुद्दा राजनीति को बड़े स्तर पर प्रभावित करेगा. जनसंख्या की दृष्टिकोण से सबसे अधिक संख्या वाली जातियों के बीच तनाव बढ़ सकता है.
आबादी का गणित
कुरमियों की आबादी- करीब 70 लाख
कुल आबादी का हिस्सा- करीब 23.5 प्रतिशत
साक्षरता दर- पुरुष में 50 व महिला में 32 प्रतिशत
आर्थिक स्थिति
– करीब दो प्रतिशत आबादी व्यवसाय से जुड़े हैं.
– करीब पांच प्रतिशत आबादी नौकरी से जुड़े हैं.
राजनीतिक स्थिति
कुरमी जाति के लोगों का कहना है कि एसटी का दर्जा खत्म होने के बाद वे अपने कई अधिकार से वंचित हो गए. आबादी के हिसाब से इस जाति से पांच सांसद व 18-19 विधायक होने चाहिए. वर्तमान में दो सांसद व 8 विधायक ही इस जाति से हैं.
जीने का तौर-तरीका
ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले कुरमी जाति के लोगों का रहन-सहन कमोबेश आदिवासियों जैसा ही है. हां, शहरी क्षेत्र में स्थिति थोड़ी अलग जरूर है.
किस क्षेत्र में है बहुलता
पूर्वी सिंहभूम
सरायकेला-खरसावां
धनबाद
बोकारो
रांची
गिरिडीह
हजारीबाग
चतरा
गोड्डा
साहेबगंज
जामताड़ा
एसटी में शामिल करने की मांग के पक्ष में तर्क
-1910 के संथाल परगना के प्रकाशित डिस्ट्रिक गजेटियर में मुंडा, कुड़मी, बिरहोर, खरवार की उपजाति में दर्शाया गया.
– 2011-12 के जातीय जनगणना में कुड़मी को एसटी माना गया है.
– 1901-1911 के जनगणना में कुड़मी को एबओरजिनल कम्युनिटी में दर्शाया गया.
– 1921 की जनगणना में कुड़मी को एनिमिस्टस सूची में रखा गया.
– 1931 के जनगणना में कुड़मी को प्रिमिटव ट्राईव की सूची में रखा गया.
– 6 सितंबर 1950 को जनजातीय शब्द एसटी शब्द में तब्दील हो गया.
– इसके बाद 13 में केवल 11 जाति को ही एसटी सूची में शामिल किया गया, कुड़मी को एसटी सूची से हटा दिया गया.
– तत्कालीन पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसे सरकारी त्रुटि के रूप में स्वीकार किया था.
– 23 नवंबर 2004 को राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने 1901, 1913, 1938 को आधार मानते हुए कुड़मी को पुन: एसटी सूची में शामिल करने का प्रस्ताव कैबिनेट से पास करके केंद्र सरकार को भेजा.
– केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय ने इसकी रिपोर्ट झारखंड जनजातीय शोध संस्थान से मांगा. तत्कालीन निदेशक डॉ. प्रकाश चंद्र उरांव ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि यह जाति एसटी बनने की पात्रता कहीं से नहीं रखती.
– 25 नवंबर 2018 को प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर सीएम हेमंत सोरेन सहित कुल 42 विधायक और 2 सांसदों ने एक संयुक्त हस्ताक्षर कर सहमति पत्र राष्ट्रपति के पास भेजा, इसमें कुड़मी को एसटी में शामिल करने की मांग की गयी.
– मानभूम जनगणना रिपोर्ट 1891 में लिखा है ट्राईब्स, जिनका हिन्दूकरण नहीं हुआ है. वे कुड़मी, मुंडा, भूमिज, संथाल, रजवार और भुइयां हैं. स्पष्ट लिखा है छोटानागपुर के कुड़मी और बिहार के कुर्मियों में फर्क है. छोटानागपुर के कुड़मी से ब्राह्मण जल ग्रहण नहीं करते.
कुरमी जाति को ये पांच बड़े फायदे होंगे
– अभी आदिवासियों की आबादी 26 प्रतिशत है. अगर कुरमी की आबादी 23.5 प्रतिशत एसटी बन जाते हैं, तो एसटी की कुल आबादी 51 प्रतिशत हो जाएगी. इससे झारखंड छठी अनुसूची में आसानी से शामिल हो जाएगा और झारखंड पूर्ण रूप से आदिवासी राज्य बन जाएगा.
– झारखंड में परिसीमन का खतरा मंडरा रहा है. आदिवासियों की जनसंख्या लगातार गिरती जा रही है. इससे आरक्षित सीटों की संख्या घट जाएगी. इससे भी बचा जा सकता है.
– जो संवैधानिक अधिकार छीने गए हैं, वह पुन:प्राप्त हो जाएगा और कुरमी लोगों का विकास तेजी से होगा.
– जनजातीय बनने से कुरमियों की जमीन सुरक्षित रहेगी. अभी कुरमी की जमीन सीएनटी-एसपीटी के दायरे में आ चुकी है.
– कुरमी के आदिवासी बनने से पूरे झारखंड में आदिवासी सांसद-विधायक की संख्या भी बढ़ेगी.
कुरमी नेताओं के तर्क
शैलेंद्र महतो, पूर्व सांसद और प्रमुख कुरमी नेता
कागजात और ऐतिहासिक तथ्य को कोई मिटा नहीं सकता है. यह कोई राजनीतिक मांग नहीं है. हम फैक्ट पर बात करते हैं. हम इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जा सकते हैं. जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, वे नासमझ हैं. किसी की कोई हकमारी नहीं होगी. झारखंड एक आदिवासी राज्य के रूप में स्थापित हो जाएगा. पहले बिहार और अब झारखंड गठन के बाद कई ऐसे सीटें रहीं जो कुरमी बहुल होते हुए रिजर्व हो गईं. पोटका, चंदनक्यारी सबसे बड़ा उदाहरण हैं. आदिवासी लोग बार-बार जनजातीय शोध संस्थान की रिपोर्ट की बातें कर रहे हैं. सभी जानते हैं कि यह रिपोर्ट पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर तैयार की गयी. हमारी हकमारी तो दक्षिणी छोटानागपुर में हो चुकी है. हम तो केवल लड़ाई उत्तरी छोटानागपुर और कोल्हान के लिए लड़ रहे हैं ताकि यहां पर हमारा हक अधिकार बच जाए.
लंबोदर महतो, विधायक आजसू
कुरमियों की वेशभूषा, सभ्यता, संस्कृति ,गोत्र और रहन-सहन शत-प्रतिशत आदिवासियों जैसा है. 3 मई 1913 को प्रकाशित इंडिया गजट नोटिफिकेशन नंबर- 550 दिनांक 2 मई 1913 में कुरमी जनजाति को एवोरिजनल एनिमिस्ट मानते हुए छोटानागपुर के कुरमियों को अन्य आदिवासियों के साथ भारतीय उत्तराधिकारी कानून 1865 के प्रावधानों से मुक्त रखा गया. 16 दिसंबर 1931 को प्रकाशित बिहार उड़ीसा गजट नोटिफिकेशन न.49 पटना में भी साफ-साफ उल्लेख किया कि बिहार-उड़ीसा में निवास करने वाले मुंडा, उरांव, संथाल, हो, भूमिज, खड़िया, घासि, गौंड, कांध, कौरआ, कुरमी, माल, सौरिआ और पान को प्रिमिटिव ट्राइव मानते हुए भारतीय उत्तराधिकारी कानून 1925 से मुक्त रखा गया.
कुरमी जनजाति को सेन्सस रिपोर्ट 1901 के वॉल्यूम (1) में पेज 328-393 में, सेन्सस रिपोर्ट 1911 के भोल्यम (1)में पेज 512 में तथा सेन्सस रिपोर्ट 1921 के वोल्यूम (1) पेज 356-365 मे स्पष्ट रूप में कुरमी जनजाति को अवोरिजनल एनिमिस्ट के रूप में दर्ज किया गया. 1931 के सेन्सस रिपोर्ट में वोल्यूम (1) पार्ट 1 के पेज 502-507 प्रिमिटिव ट्राइव के रुप में दर्ज किया गया. डॉ. सर जार्ज ग्रिएसन की पुस्तक ट्राइव एंड कास्ट ऑफ बंगाल 1891 में छोटानागपुर के कुरमियों के टोटेमिक पहचान के कारण द्रविड़ कुल में रखा गया. अपने लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया के पांचवें वोल्यूम में स्पष्ट रूप में लिखा छोटानागपुर के कुरमी द्रविड़ कुल के अनुसूचित जनजाति है. मॉनभूम जिला गेजेटियर 1910 में मिस्टर कुमलैड ने भी छोटानागपुर के कुरमियों को बिहार के कुरमियों से अलग मानते हुए छोटानागपुर के कुरमियों को प्रिमिटिव ट्राइव के रुप में माना. विद्वान जनगणना अधीक्षक डब्ल्यू जी लेसी कुरमी ओर कुरमियों के तुलनात्मक अध्ययन करने के उपरांत एवं जार्ज ग्रियसन और मिस्टर कुपलैड तथा अन्य के साक्ष्य प्रमाण प्राप्त होने के बाद डब्ल्यू जी लेसी ने एपेन्डिक्स फोर के पारा फोर में छोटानागपुर के कुड़मियो प्रिमिटिव ट्राइव के सूची में शामिल करने की अनुशंसा की. इसे भारत के जनगणना आयुक्त जे. एच. हुटन द्वारा सेन्सस ऑफ इंडिया के वोल्यूम 1 पार्ट 1 के पेज 507 प्रिमिटिव ट्राइव के रूप में मान लिया गया.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
शीतल ओहदार
(कुरमी जाति के शोधकर्ता और आंदोलनकारी)
सभी फैक्टस एवं तर्क प्रमाणिक हैं कि कुरमी एसटी थे,आदिवासी थे. अगर आदिवासी यह तर्क देते हैं कि मांग गलत है तो वह सच का सामना करना नहीं चाहते. कुरमी समाज में आदिवासियों की तरह बाईसी शासन व्यवस्था चलता है जो आदिम जनजाति का घोतक है. अगर विभिन्न जनजातियों से इसकी तुलना करें तो भी इसे आसानी से समझा जा सकता है. मुंडा जनजाति में टोटेम की बात करें तो विभिन्न जीव जंतुओं के प्रतीक से मेल खाता है. जैसे मुंडा जनजाति में सोय का प्रतीक सोल मछली होता है तो कुरमी में इसे कुचिया मछली कहा जाता है. इसी तरह से संथाली जनजाति में मुर्मू टोटेम का प्रतीक नीलगाय होता है तो कुरमी में इस शब्द का अभिप्राय साऊनि गाय से होता है. इसी तरह उरांव, खड़िया जनजाति का टोटेम शब्द सभी कुरमियों के जाति से मिलते हैं.
आदिवासियों की आबादी, उनकी आर्थिक, समाजिक व शैक्षणिक स्थिति
झारखंड में आबादी – 86,4500,42
कुल आबादी का हिस्सा – 26.21 प्रतिशत
साक्षरता दर – 40.70 प्रतिशत (पुरूषों में 54 प्रतिशत व महिला में 27.20 प्रतिशत)
आर्थिक स्थिति – 10 प्रतिशत जनजातीय नौकरी से जुडे़ हैं. व्यवसाय में जनजातियों की उपस्थिति 2 प्रतिशत से कम है. अधिकांश लोग कृषि कार्य से जुड़े हैं.
सामाजिक स्थिति
जनजातियों की जीविका ही जमीन पर आधारित है मगर शहरीकरण के कारण जमीन छीनने से, सामाजिक ताना-बाना, कस्टमरी लॉ में चोट पहुंची है. सरना, इसाई और सनातन विवाद से जनजाति विभिन्न वर्ग में बंटते चले जा रहे हैं.
किन क्षेत्रों में है आदिवासियों की बहुलता
कोल्हान प्रमंडल
संथाल परगना
दक्षिणी छोटानागपुर
लातेहार
कुरमी के एसटी बनने से आदिवासियों को ये है नुकसान का अंदेशा
– जमीन हस्तांतरण बढ़ेगा, जमीन पर कुरमियों का एकाधिकार हो जाएगा.
– राजनीतिक मामले में कुरमी आदिवासियों को क्रश करते हुए आगे बढ़ जाएंगे.
– ट्राइबल को डोमिनेट करके कुरमी आगे बढ़ जाएंगे.
– आदिवासियों का कस्टमरी लॉ समाप्त हो जाएगा, कुरमी हावी हो जाएंगे.
– कुरमाली क्षेत्रीय भाषा नहीं बल्कि जुबान है. यह जुबान हावी हो जाएगी, अन्य जनजातीय भाषाओं की समाप्ति का है खतरा.
– ट्राइबल बहुल सीटों पर भी कुरमियों का कब्जा हो जाएगा.
क्या कहते हैं आदिवासी एक्सपर्ट
डॉ मीनाक्षी मुंडा
(अध्यक्ष एशिया यंग इंडिजिनियस यूथ नेटवर्क फिलीपींस)
कुरमी जाति के लोग चाहे लाख दावे और तथ्य रख दें. मगर जब इन्हें एसटी सूची से हटाया गया होगा, तो इसके पीछे भी कोई लॉजिक और तथ्य होंगे. कुरमी के एसटी सूची में आने से हर दृष्टिकोण से जनजातियों को नुकसान होगा. झारखंड के ओबीसी समाज में कुरमी अपर हैंड में स्थापित है. जिस दिन इन्हें एसटी का दर्जा मिल गया, उस दिन से आदिवासियों की आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक ह्रास का दौर शुरू हो जाएगा. कुरमी तर्क दे रहे हैं कि अगर वे एसटी बन गए तो आदिवासियों की संख्या बढ़ जाएगी और यह राज्य आदिवासी राज्य के रूप में स्थापित हो जाएगा. यह गलत तर्क है. आदिवासी राज्य बने या नहीं मगर मूल आदिवासी इससे समाप्ति के कगार पर पहुंच जाएंगे. आदिवासियों की शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति के आंकड़े बताते हैं कि इनकी स्थिति क्या है. कुरमी आदिवासी पर भारी पड़ जाएंगे और आदिवासियों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा.
क्या कहते हैं आदिवासी नेता
सालखन मुर्मू,
(पूर्व सांसद, राष्ट्रीय अध्यक्ष, सेंगेल)
कुरमी जाति को एसटी बनाने की मांग के लिए सर्वाधिक दोषी झामुमो है. इस पार्टी ने केवल वोट के लालच और स्वार्थ के लिए आदिवासी विरोधी फैसला लेकर कुरमी (महतो) जाति को एसटी बनाने का समर्थन देकर भड़काने का काम किया है. इस निमित्त 8 फरवरी 2018 को झामुमो के सभी सांसद विधायकों ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व में हस्ताक्षरित ज्ञापन पत्र तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को दिया था. झामुमो का यह फैसला बिल्कुल आदिवासी विरोधी था. इससे तो आदिवासियों के नरसंहार का रास्ता प्रशस्त होता है. आदिवासियों के भोलेपन और राजनीतिक कुपोषण का बेजा फायदा उठाकर झामुमो पार्टी आदिवासियों का सर्वाधिक नुकसान कर रही है. आदिवासी समाज का दुर्भाग्य है, जाने-अनजाने झामुमो की बी टीम की तरह कार्यरत माझी परगना महाल, आसेका, संथाली लेखक संघ और पंडित रघुनाथ मुर्मू से जुड़े अनेक सामाजिक संगठन, लुगु-बुरु कमिटी आदि आंखें मूंदकर झामुमो को समर्थन देकर अपनी कब्र खोदने का काम खुद करते हैं. कुरमी मुद्दे पर अब झामुमो को अपनी पूर्व की अनुशंसा और स्टैंड बदलने की जरूरत है. झामुमो वास्तव में आदिवासी विरोधी पार्टी है. यह अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है.
लक्ष्मी नारायण मुंडा
(कुरमी मांग विरोधी नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता)
आदिवासियों के संवैधानिक हक-अधिकार नौकरी, जमीन और राजनीतिक हिस्सेदारी को लूटने, हथियाने के लिए कुरमी समुदाय के लोगों द्वारा आदिवासी बनने का आंदोलन चलाया जा रहा है. आज इन लोगों को बिरसा मुंडा, सरना धर्म सब याद आ रहा है. कभी सरना कोड की लड़ाई में ये लोग शामिल नहीं रहे. कभी सरहुल पर्व मनाते हैं? किसी भी आदिवासी समुदाय के आंदोलन में शामिल नहीं रहे हैं. ये लोग पेसा कानून के तहत पंचायत चुनाव में मुखिया, ब्लॉक प्रमुख, जिला परिषद अध्यक्ष पद पर आदिवासी आरक्षण का विरोध किया था.ये लोग बूटी मोड़ रांची में शिवाजी का मूर्ति लगाते थे. ये लोग ओबीसी आरक्षण की लड़ाई लड़ते रहे हैं. विनोद बिहारी महतो ने शिवाजी समाज संगठन क्यों बनाया था? यह कुरमी समाज के लोगों को बताना चाहिए. सिल्ली में शिवाजी महोत्सव मनाया जाता है. यही आदिवासी पहले असभ्य जंगली लगते थे. आज आदिवासी बनने के लिए लालायित हैं. झारखंड, बिहार, ओड़िशा व पश्चिम बंगाल का कोई भी सामान्य नागरिक जानता है कि कुरमी क्यों आदिवासी बनना चाहते हैं. यह बात किसी से नहीं छिपी हुई है. कुरमी समुदाय के लोगों का कहना है कि हमलोग 1913 से ही आदिवासी थे. अंग्रेजों को राज करना था, इसलिए ऐसा किया गया. जब देश आजाद हुआ तो इन्हें हटा दिया गया. उसके लिए यहां के कुछेक पुरानी जातियों को लिस्टिंग करके यह एर्बोजिनल नाम दिया था. जब 1950 मे संविधान बना और एसटी, एससी और ओबीसी का निर्धारण हुआ तो कुछ जातियों को एसटी, कुछ जातियों को एससी, कुछ जातियों को ओबीसी में रखा गया. उस एर्बोजिनल लिस्ट में घांसी, तांती का भी नाम था. आज इन लोगों को किसमें रखा गया है ? अंग्रेजी हुकूमत के समय नौकरी,आरक्षण जैसे विषय नहीं थे इसे याद रखना होगा. इसलिए झारखंड की साझा संस्कृति की विरासत को बचाना चाहिए. कुरमी/ कुड़मी समाज की बेहतरी, खुशहाली और समग्र विकास के लिए लड़ना चाहिए.