Amarnath Pathak
Hazaribagh: विविध धर्मों के संग दीपावली के कई रंग बिखरे हुए हैं. सनातन धर्म में लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में दीपावली का त्योहार मनाया जाता है. गुरुकुल कोचिंग संस्थान के निदेशक जयप्रकाश जैन बताते हैं कि पावापुरी में 468 ईसा पूर्व जैन धर्मावलंबियों के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने कार्तिक अमावस्या को ही निर्वाण प्राप्त किया था. सरदार तनवीर सिंह के अनुसार सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह इसी दिन मुगल शासन की कैद से मुक्ति पायी थी. वहीं अपने साथ 26 राजाओं को भी आजादी दिलाई थी. इस खुशी में सिख समुदाय के लोग दीपों का उत्सव मनाते हैं.
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कहा कि बंगाली समाज में काली पूजन (महानिशा पूजा) का विधान है. ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का अर्थ बयां करते हुए शुभाशीष दास कहते हैं कि मां काली हमें अज्ञानता के अंधेरे से ज्ञान की रोशनी में ले जाती हैं. उन्होंने बताया कि सिंधु घाटी सभ्यता के प्रजनन पंथ से भी दीपावली का त्योहार जुड़ा हुआ है. दीपावली दो शब्दों ‘दीप’ और ‘वाली’ का सम्मिश्रण है अर्थात हाथों में दीप लिए महिला. सिंधु घाटी और हड़प्पा की सभ्यता में कई ऐसी प्राचीन मूर्तियां मिली हैं, जिनमें महिला माथे पर रेहु मछली और कलश, हाथों में दीये आदि प्रजनन पंथ का प्रतीक लिए खड़ी हैं. इसका जिक्र इतिहासकार कौशांबी, अमेरिका के इतिहास विशेषज्ञ प्रोफेसर अशको परपोला और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मेगालिथिक पुरातत्वविद् प्रोफेसर टेरेंस मिडेन की लिखी पुस्तकों में बखूबी है.
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