Vijay Shankar Singh
बर्बादियों के जश्न का आगाज है यह. आप को याद है,कोरोना राहत के लिये सरकार ने एक साल पहले एक इवेंट के रूप में ₹ 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज घोषित किया था?
तो अब पूछिये सरकार से,
सरकार ने क्या-क्या किया उस पैसे से, इस बीमारी से लड़ने के लिये ?
20 लाख करोड़ का राहत पैकेज कम राशि नहीं है. अब सरकार नाम ही नहीं लेती इस पैकेज का. क्या यह पैकेज भी चहेते पूंजीपति डकार गए?
पीएम केयर्स फंड बना. सभी कॉरपोरेट का सीएसआर कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फ़ंड प्रधानमंत्री ने अपने फंड में जबरन जमा करा लिया और जब उस पर सवाल उठाए गए, जांच की मांग की गयी, ऑडिट के डिटेल मांगे गए तो सरकार से पहले सरकार के समर्थक तड़प उठे. अब पूछिये सरकार से,
उस पैसे से देश के किस राज्य में इस महामारी से लड़ने के लिये सरकार ने क्या-क्या इंतज़ाम किये हैं.
भारत सरकार ने एक आदेश जारी करके कहा था कि सीएसआर के लिये कॉरपोरेट अपना सारा अंश पीएम केयर्स में ही दे सकेंगी. राज्यों के मुख्यमंत्री राहत कोष में वे उसे नहीं दे सकेंगी. पूछिये सरकार से क्या यह नीति खून में व्यापार वाली मानसिकता की नहीं है.
आखिर सरकार क्यों यह नहीं बताना चाहती कि किस-किस राज्य को कितना कितना अंश इस महामारी से लड़ने के लिये दिया गया है? राज्यों के मुख्यमंत्री राहत कोष में सीएसआर का पैसा यदि कोई कॉरपोरेट देना चाहे तो, उस पर क्यों रोक है? सारा धन एक ही फ़ंड में और वह भी एक पब्लिक फ़ंड नहीं है में क्यों इकट्ठा हो रहा है? क्या उसी से सरकार विधायकों की खरीद फरोख्त कर के अपनी सरकारें, हार जानें के बाद भी बनवा रही है ?
रेलवे को बेचने के एजेंडे में हर पल मशगूल रहने वाले और बिना सामान्य रेल यातायात के ही सबसे कम रेल दुर्घटना का दावा करने वाले पीयूष गोयल ने रेल के एसी डिब्बों को आपात स्थिति में कोरोना वार्ड में बदलने की खूबसूरत तस्वीरें सोशल मीडिया पर प्रसारित की थी.
पूछिए रेल मंत्री से,
उन डिब्बों का क्या हुआ?
वे हैं या उन्हें भी बेच दिया गया?
वे थीं भी या वे भी जुमला थीं?
आज स्थिति यह है कि अखबार उठाइये या मोबाइल, सब पर मौत की खबरें हैं. अस्पतालों की बदइंतजामी की खबरें हैं. वेंटिलेटर, ऑक्सीजन, अस्पताल में बेड, दवाइयों और यहां तक कि टीकों की भारी कमी की खबरें है. हर व्यक्ति का कोई न कोई परिजन, मित्र, सखा, बंधु या बांधवी इस महामारी से ग्रस्त है या त्रस्त है. मेडिकल स्टाफ की भी अपनी सीमाएं होती हैं. पिछली बार तो एम्स तक मे पीपीई किट की कमी पड़ गई थी. इस साल स्थिति सुधरी है या नहीं पता नहीं.
जिस देश की संस्कृति में अभय दान और निर्भीकता सबसे बड़ा मानवीय तत्व समझा जाता रहा हो, वहां डर है, दहशत है, वहशत है और कदम-कदम पर मुसीबत है. बस एक ही मशविरे आम हैं कि मास्क लगाइए, पर देश का गृहमंत्री और बड़े नेतागण, पता नहीं कौन सी सुई लगवाए हैं कि वे बिना मास्क के ही घूम रहे हैं. आम आदमी जुर्माना भरते-भरते मरा जा रहा है और इन्हें डर ही नहीं. कोरोना भी सहोदर पहचानता हो जैसे !
अब एक और आदेश आ गया कि, यदि कोई मास्क नहीं लगाएगा तो पुलिस कर्मी सस्पेंड हो जाएगा. मास्क, आप न लगाएं और सस्पेंड हों दारोगा जी? ऐसा इसलिए कि सबसे आसान होता है सिपाही-दरोगा पुलिस पर कार्यवाही करना. जब तक राजनीतिक रैलियों और धार्मिक आयोजनों में, मास्क न लगाने पर उनसे सख्ती नहीं की जाती तब तक यह इसे तमाशा ही समझा जाता रहेगा.
डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.