Koderma : झुमरी तिलैया की अड़ी बंगला की रहने वाली वीणा सिंह को कविताएं एवं कहानी लेखन के श्रेणी में राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन के हाथों झारखंड आइकॉन अवार्ड 2023 से नवाजा गया है. समाजसेवी ब्यूटी सिंह ने उनकी इस उपलब्धि पर हार्दिक बधाई दी है. ब्यूटी सिंह ने बताया कि आज कल की घरेलू महिलाओं को भी अपने खाली समय का सदुपयोग करना चाहिए और उनको उस क्षेत्र में अपना योगदान देना चाहिए जिसमें उनकी रुचि हो. ब्यूटी सिंह ने कहा कि वीणा भाभी की उपलब्धि सभी महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है. लेखन के क्षेत्र में वे और आगे जाएं तथा अपने विचारों से समाज के हरेक तबके को यूं ही प्रेरित करती रहें, यही मेरी उनके किले कामना है.
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जरूरतमंदों की सेवा परिवार से सीखी- वीणा सिंह
वहीं वीणा सिंह अपने बारे में बताते हुए कहती है कि होश संभालते ही मैंने अपनी मम्मी और दादा जी को गरीब और जरूरतमंद तबके के लोगों की सहायता करते देखा. मसलन मेरी मम्मी टीचर थी, गरीब बच्चों को अपने वेतन से किताब, कॉपी, स्कूल बैग खरीद कर देती थी. मुफ्त का ट्यूशन भी देती थी. कभी हम रिक्शा से जाते तो रिक्शा वाले को भाड़ा बढ़ाकर देती. पूछने पर बोलती कितना पसीना बहाना पड़ता है इन्हें. यही संस्कार मेरे अंदर रच बस गया. भीख मांगने वाले को भरपेट खाना खिला देती, पापा के कपड़े भी बिना पूछे दे देती. भले ही बाद ने थोड़ा डांट सुनना पड़ता. शादी के बाद भी मेरा ये सिलसिला जारी रहा. करोना काल में अपनी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बाद भी बिरहोर बस्ती के लोगों को दवाईयां ब्रेड बिस्कुट जो बन पड़ता पहुंचाती रही.
कोरोना काल में जरूरतमंदों की सेवा की- वीणा सिंह
वीणा सिंह ने कहा कि करोना का संक्रमण हो जायेगा यह जानते हुए भी मैंने उसकी परवाह नहीं की. मुझे ये लगता था कि उनको मेरी अभी जरूरत है. मम्मी कहती थी कि एक हाथ से करो तो दूसरे हाथ को पता नहीं चले. घर में काम करने वाली मेड को जितना भी बन पड़ा चाहे बेटी की शादी हो या पति का श्राद्धकर्म अपने औकात से बढ़कर सहायता करती हूं. बच्चों का जन्मदिन मैने कभी घर में केक काटकर लोगों को बुलाकर नही मनाया. स्टेशन के पास बहुत से भीख मांगने वाले और शारीरिक रूप से लाचार लोगों को अपने हाथ से गरम खाना परोस कर बच्चों से परोसवाया और उनकी आंखों में जो दुआ संतुष्टि नजर आई वो अलौकिक और अद्भुत थी.
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मृत्यु के बाद मेरी आंखें दान कर देना- वीणा सिंह
वीणा सिंह कहती है कि खाली समय में आसपास के घरों में झाड़ू पोंछा का काम करने वाली औरतों के बच्चों को आज भी पढ़ाती हूं. कुछ कुछ खिला भी देती हूं. बच्चों के छोटे हुए कपड़े, स्वेटर, जूते, चप्पल, स्कूल बैग उन्हें देती हूं. ऐसे कितने बच्चे हैं जो मेरे प्रयास से स्कूल जा रहे हैं. बहुत मुश्किल से उन्हें काम छुड़ाकर उनकी मांओं को कनविंस किया है पढ़ने के लिए. मैने अपने घरवालों से कहा है कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी आंखें किसी जरूरतमंद को दान कर देना और श्राद्ध कर्म में लगने वाले पैसे को ब्लाइंड स्कूल में और चेशायर होम में आधा-आधा दान कर देना. इस मुबारकबाद के मौके पर मुकेश सिंह, विशाल, विक्की, मनोज सिंह, मनुषी, विहान एवं अन्य उपस्थित थे.
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