Ranchi : कोलकाता सचिवालय में कुड़मी समाज के प्रतिनिधिमंडल और सरकार के बीच हुई वार्ता बेनतीजा रही. इस वार्ता में पश्चिम बंगाल कुड़मी समाज के राज्य अध्यक्ष राजेश महतो, संयोजक कौशिक महतो, अभिजीत महतो, आदिवासी जनजाति कुड़मी समाज के प्रदेश अध्यक्ष शिवाजी महतो और कुड़मी सेना के संयोजक सुदीप महतो शामिल हुए थे. सरकार की ओर से मुख्य सचिव हरिकृष्ण द्विवेदी शामिल थे. वार्ता में कोई निर्णय नहीं होने के कारण झाड़ग्राम से सटे मानिकपाड़ा में बुधवार की देर शाम को कुड़मी समाज की बैठक हुई, जिसमें आगे की रणनीति तय की गयी. पश्चिम बंगाल कुड़मी समाज के अध्यक्ष राजेश महतो ने फोन पर बताया कि प बंगाल सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की रिपोर्ट भेजने से इनकार कर दिया गया. सरकारी पक्ष से कहा गया कि जो भी रिपोर्ट भेजनी थी, केंद्र सरकार को भेज दी गई है. विदित हो कि आदिवासी कुड़मी समाज ने कुड़मी जाति को एसटी में शामिल करने और कुड़माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर खेमाशुली और कुस्तौर में रेल लाइन और एनएच -49 जाम किया था. एक सप्ताह आंदोलन चला, फिर सरकार से वार्ता हुई पर कोई नतीजा नहीं निकला.अब कुड़मी समाज बड़े आंदोलन की तैयारी में है. शुभम संदेश टीम ने राज्य भर से समाज के लोगों के विचार जाने. प्रस्तुत है रिपोर्ट…
कुड़मी समाज का आंदोलन जायज है : सोहन महतो
चाईबासा कुड़मी समाज के सदस्य सोहन महतो कहते हैं कि कुड़मी समाज का आंदोलन जायज है. सरकार की ओर से लंबे समय तक किसी तरह का निर्णय नहीं लेना दुर्भाग्यपूर्ण है. पश्चिम बंगाल में जिस तरह का आंदोलन हुआ है, उससे पूरे देश को एक संदेश दिया कि आदिवासी समुदाय आने वाले दिन में यदि एकजुट हो जाए तो सरकार की हालत खराब कर देगी. आज भी ग्रामीण क्षेत्र में यह समाज आदिवासी की तरह रहन-सहन और पारंपरिक रीति रिवाज के तहत रहता है. सरकार को जब किसी तरह की शंका है तो जांच करवा कर हमारे समुदाय को एसटी का दर्जा दे. झारखंड में भी आने वाले दिनों में जोरदार आंदोलन किया जाएगा. इसे लेकर रणनीति तैयार की जा रही है.
कुड़मी समाज राजनीति का शिकार होता आ रहा है : प्रदीप
आदित्यपुर के कुड़मी समाज के सदस्य प्रदीप महतो कहते हैं कि कुड़मी समाज हमेशा राजनीति का शिकार होते आ रहा है. इतनी संख्या होने के बावजूद भी एकजुट नहीं होने का फायदा राजनीतिक दलों ने उठाया है. लेकिन इस बार यह फायदा राजनीतिक दल उठा नहीं सकते हैं. अब समाज पूरी तरह से जाग गया है. हर एक व्यक्ति संगठन में जुड़ा है. इस वजह से अब राजनेताओं को भी सोचने की जरूरत हो गई है. आने वाले दिनों में समाज राजनीतिक में फेरबदल तक कर सकती है. एक निर्णायक वोटर अभी समाज के पास है, जो राजनेता आदिवासी की बात करेगा उसी को वोट दिया जाएगा.
हमारी इन मांगों को गंभीरता से ले सरकार : राजा महतो
चाईबासा कुड़मी समाज के सदस्य राजा महतो कहते हैं कि समाज को अभी एकजुट होकर एसटी के अभियान में जुड़ना चाहिए. हम लोग पहले भी आदिवासी थे और अब भी आदिवासी हैं. हमारी मांगों को गंभीरता से सरकार ले. इसे नजरअंदाज न करे. जिस तरह से समाज का पश्चिम बंगाल में आंदोलन हुआ है. इसी तरह का आंदोलन झारखंड में भी होने की जरूरत है. झारखंड में एकता तो है, लेकिन आंदोलन को लेकर सही रणनीति नहीं बनती है. इसके कारण कई आंदोलन विफल हो जाते हैं. अब हमें जागने की जरूरत है. आजादी से पहले आदिवासी सूची में होने के बावजूद भी सरकार हमें आदिवासी नहीं मान रही है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है.
सरकार सर्वे करवा कर हमें पूरा अधिकार दे : अंगद महतो
चाईबासा कुड़मी समाज के सदस्य अंगद महतो कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में अभी भी आदिवासी रीति रिवाज परंपरा के तहत कुड़मी समाज के लोग निवास करते हैं. भाषा से लेकर पूजा-पाठ सब आदिवासी की तरह ही होती है, जल जंगल जमीन की पूजा-अर्चना अब भी यहां होती है. सरकार इसे समझे. सरकार एक सर्वे कराकर हमें अधिकार दे. हमारे पूर्वज आदिवासी की तरह निवास कर रहे थे. आज भी गांव में स्थिति बद से बदतर हो है. समाज एकजुट तो है, लेकिन सामाजिक अधिकार अभी भी नहीं मिल रहा है. इसके कारण समाज नहीं उठ पा रहा है. आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक दल को सहयोग करने की जरूरत है. हमारा समाज वोट देने के लिए ही नहीं होगा.
राजनेता सिर्फ ठगते रहे हैं : नीतीश
चाईबासा कुड़मी समाज के सदस्य नीतीश महतो कहते हैं कि सदियों से आदिवासी का आश्वासन देकर कुड़मी समाज को राजनेता सिर्फ ठगने का काम कर रहे हैं. लेकिन यहां के राजनेता समाज का उत्थान के लिए किसी तरह का काम नहीं कर रही है. आदिवासी सूची में शामिल करने के लिए इतने आंदोलन होने के बावजूद भी न ही राज्य सरकार और ना ही केंद्र सरकार इस पर गंभीर है. अनुसूचित जनजाति के लिए सरकार की ओर से अधिसूचना जारी करने की जरूरत है. आजादी से पहले हम आदिवासी सूची में शामिल थे. लेकिन षड्यंत्र के तहत हमें हटा दिया गया है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. इसे पर ध्यान देना चाहिए.
कुड़मी जाति भी छोटानागपुर पठार की मूल बाशिंदा है : अमित
अमित महतो कहते हैं कि कुड़मी जाति छोटा नागपुर पठार के मूल बाशिंदा हैं. बावजूद इसके हमलोगों को एसटी का दर्जा नही दिया गया. जो दुर्भाग्य की बात है. कई वर्षों से एसटी में शामिल करने की मांग की जा रही है. लेकिन अब तक एसटी का दर्जा कुड़मी जाति को नहीं दिया गया है. जबकि आजादी के पूर्व हमलोग एसटी श्रेणी में ही आते थे. लेकिन आजादी के बाद ओबीसी में डाल दिया गया. मूलवासी होने के नाते आदिवासियों को एसटी का आरक्षण प्राप्त है. जिससे कई चीजों में उन्हें फायदा मिल रहा है. कुड़मी जाति को भी एसटी का दर्जा मिलना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में एक बड़ा आंदोलन होगा. जिसकी सारी जवाबदेही आगे सरकार की होगी.
यह कुड़मियों के अस्तित्व का आंदोलन है : जतन महतो
जतन महतो कहते हैं कि यह आंदोलन सिर्फ एसटी में शामिल कर आरक्षण प्राप्त करने का आंदोलन नहीं है. बल्कि यह आंदोलन कुड़मियों की अस्तित्व का आंदोलन है. इसलिए इस आंदोलन को हर हाल में सफल बनाना होगा. आखिर क्यों इतने लंबे समय से चलाए जा रही इस आंदोलन पर सरकार ने अब तक संज्ञान नहीं लिया. कहीं ना कहीं समाज को दरकिनार करने की साजिश रची जा रही है. इसलिए इस आंदोलन को तेज करने के लिए युवाओं को जगना होगा. बंगाल, झारखंड और उड़ीसा शहर के गांव कस्बों में बसे कुड़मी जाति के लोगों को अपने अधिकार के लिए आंदोलन में शामिल होना होगा.अभी तो आंदोलन में सिर्फ ट्रेन रुकी है. आगे बहुत कुछ होगा.
अब तक कुड़मी लोगों को अधिकार नहीं मिला हैः आनंद
आनंद कटिहार कहते हैं कि कुड़मी जाति को एसटी में शामिल करने की मांग को लेकर समाज के लोग इन दिनों आंदोलन कर रहे थे. आंदोलन भी असरदार रहा. लेकिन हमारा अधिकार अब तक नहीं मिल पाया है. सरकार के आश्वासन के बाद भले ही आंदोलन को समाप्त किया गया. लेकिन सरकार अगर हमारी मांगों पर गंभीर नहीं दिखी तो एक बार फिर से बंगाल, झारखंड और उड़ीसा 3 राज्यों के कुड़मी समुदाय के लोग बड़े आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेंगे. इस बार का आंदोलन ऐसा होगा कि केंद्र और राज्य सरकार को अपनी अपनी मांगों पर विचार करने पर विवश कर देंगे. आखिर कुड़मियों को क्यों ठगा जा रहा है. जायज मांग पर अब तक क्यों सरकार मौन है.
कुड़मी समाज की मांगें पूरी तरह से जायज हैं : सुरेश महतो
सुरेश महतो कहते हैं कि आजादी से पहले कुड़मी जाति एसटी था. आजादी के बाद कुड़मी जाति को एसटी से ओबीसी में डाल दिया गया. जिसके बाद समाज के अगुआ इस मुद्दे को लेकर आंदोलन चलाते रहे. लेकिन अब तक ओबीसी को एसटी में शामिल नहीं किया गया है. जिसको लेकर हम सभी काफी क्षुब्ध हैं. बंगाल, झारखंड और उड़ीसा के कुड़मी समुदाय के लोग मिलकर एक बड़े आंदोलन की रूपरेखा की तैयारी में जुटे हैं. कुड़मी समाज द्वारा मांगी जा रही मांगें बिल्कुल जायज हैं. एसटी का दर्जा हमलोगों को मिलना ही चाहिए. उत्तरी छोटानागपुर पठार के मूलवासी होने के नाते यह हमारा अधिकार है. हम भी यहां के आदिवासी हैं. हमें अधिकार मिलना चाहिए.
यह पहचान व अधिकार की लड़ाई : भोला महतो
आजसू के जिला उपाध्यक्ष भोला महतो कहते हैं कि यह लड़ाई पहचान और अधिकार दोनों के लिए है. मनामाफिक तरीके से किसी को सूची से हटा देना उचित नहीं है. एक षड्यंत्र के तहत कुड़मी को आदिवासी सूची से हटा दिया गया. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए था, लेकिन नहीं किया गया. कुड़मी समाज की मांग बिल्कुल जायज है. इसे अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करना ही चाहिए. वर्ष 1891 में इसीलिए जनजाति यानी ट्राइब स्टेट्स दिया गया, कास्ट नहीं. 1908 में उनकी जमीन सीएनटी एक्ट के तहत संरक्षित की गई. वर्ष 1913 में इंडियन सक्शेसन एक्ट के बहुत से प्रावधानों से अलग रखा गया. यह ठीक नहीं है.
कुड़मी लोग भी प्रकृति के उपासक हैं : सुखदेव
कुड़मी समाज के सुखदेव महतो ने कहा कि कुड़मी की संस्कृति आदिवासियों से मिलती-जुलती है. कुड़मी भी प्रकृति उपासक हैं. फिर कुड़मी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने में कहां और क्या परेशानी है. आरंभ से कुड़मी और आदिवासी एक जैसे रहे हैं. छोटानागपुर पठार आदिकाल से आदिवासियों का निवास स्थान रहा है. यहां हो, मुंडा, संथाल, उरांव आदि जनजातियों के साथ कुरमी/कुड़मी जनजाति भी आदि काल से साथ साथ रहते आ रहे हैं. हजारीबाग के सिप्टन रिपोर्ट और बंगाल व ओडिशा के गजेटियर में भी इसका जिक्र है. ऐसे में कुड़मी समाज का आंदोलन बिल्कुल जायज है. सरकार इस पर विचार करे. नहीं तो आगे आंदोलन और तेज किया जाएगा.
अधिकार के लिए किसी हद तक जाएंगे : सुरेश
कुड़मी समाज के सुरेश महतो कहते हैं कि अधिकार के लिए किसी भी हद तक जाएंगे. उन्होंने कहा कि आग्रह और विनती से सुनवाई नहीं हुई, अब आंदोलन ही विकल्प बचा है. राज्यभर में आंदोलन करने की जरूरत है. कुड़मी को एसटी का दर्जा दिलाने के लिए एकजुटता की जरूरत है. समाज के हर लोगों को अपना अधिकार पाने के लिए सड़क पर उतरना होगा और आवाज बुलंद करनी होगी. सरकार को भी इस दिशा में पहल करने की जरूरत है. तभी कुछ हो सकता है. हमलोगों ने काफी समय तक इंतजार किया, लेकिन कुछ नहीं किया गया. अब हमारे समाज को लोग भी जाग रहे हैं. वे अधिकार के लिए सड़क पर उतर रहे हैं. सरकार को अब हमारी मांगों पर विचार करना होगा.
कुड़मी को एसटी सूची से हटाना ठीक नहीं : प्रभात
कुड़मी-आदिवासी आंदोलन समिति के सदस्य प्रभात महतो ने कहा कि कुड़मी को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाना जायज नहीं है. कोल्ह, संताल, मुंडा और उरांव की तरह ही कुड़मी भी प्रकृति के उपासक रहे हैं. बिहार और यूपी के इलाके में ‘कुड़मी’ शब्द को अपभ्रंश कर ‘कुरमी’ कर दिया गया. ऐसे में कुड़मी को अनुसूचित जनजाति के सूची में शामिल करने की दरकार है. बिहार, बंगाल और ओडिशा में सरकार के गजेटियर में भी इस बात का जिक्र है. ऐसे में कुड़मी लोगों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखना ही पड़ेगा. तभी हमारा भला होगा. यह काफी दिनों से मांग की जा रही है. लेकिन इसे टाला जा रहा है. सरकार के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है.
हमारा हक कोई छीन नहीं सकता : विश्वनाथ महतो
कुड़मी-आदिवासी आंदोलन समिति के सदस्य विश्वनाथ महतो ने कहा कि कुड़मी से उसका हक कोई छीन नहीं सकता. हम लड़कर अपना अधिकार लेना जानते हैं. सरकार को कुड़मी को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करना ही होगा. उत्तरी छोटानागपुर के इतिहास के पन्नों में दर्ज अधिकार को कोई मिटा नहीं सकता है. इसके लिए जो भी लड़ाई लड़नी होगी, उसके लिए कुड़मी समाज तैयार है. अभी तो आंदोलन का ट्रेलर था, अभी पूरी फिल्म बाकी है. आगें की लड़ाई के लिए हम सभी तैयार हैं. सरकार को हमारी मांगों पर विचार करना चाहिए. आखिर हमलोग भी इसी समाज के हिस्से हैं. हमारे भी कुछ अधिकार हैं, जिसे पूरा होना चाहिए.
झारखंड के कुड़मी भी करेंगे आंदोलन : हरमोहन महतो
आदित्यपुर निवासी हरमोहन महतो कहते हैं कि पश्चिम बंगाल के बाद अब झारखंड के कुड़मी भी आंदोलन करेंगे. वे अब जागरूक हो चुके हैं. सरकार उनके साथ छल कर रही है. यह वे समझ चुके हैं. उन्होंने कहा कि कुड़मी जाति हर हाल में आदिवासी का दर्जा प्राप्त करके रहेगी. इसकी वह अहर्ता रखती है. कुड़मी जाति के वंशज पहले भी आदिवासी थे, वर्तमान में हैं और आगे भी रहेंगे. अब आंदोलन उग्र होगा. सरकार जल्द मांग नहीं मानेगी तो उग्र आंदोलन की जिम्मेदारी भी सरकार की होगी. इसलिए सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. आजादी के पहले तक तो कुड़मी आदिवासी ही थे. तो फिर बाद में क्यों हटा दिया गया. यह सोचनीय है. इसे सरकार को समझना चाहिए.
राजनीतिक दलों ने वोट के लिए इस्तेमाल किया: शैलेंद्र
आदित्यपुर में कुड़मी सेना के अध्यक्ष शैलेंद्र महतो ने कुड़मी आंदोलन को झारखंड में तेज करने की बात कही है. उन्होंने कहा है कि जल्द ही पश्चिम बंगाल की तरह झारखंड के कुड़मी भी सड़क और रेल मार्ग जाम कर आंदोलन करेंगे. हमलोग इसकी तैयारी कर रहे हैं. जहां तक कुडमियों को एसटी का दर्जा देने की बात है तो वह हमलोग लेकर रहेंगे. राजनीतिक दल अब तक वोट के लिए समाज का इस्तेमाल करते आए हैं. अगले चुनाव में कुड़मी समाज के वोटर राजनीतिक दलों का इसा जवाब देंगे. इसके लिए हमारे पास आधार है. आजादी के पहले तक कुड़मी आदिवासी थे. संविधान लागू होने के दौरान इसे उसके संवैधानिक अधिकार से बाहर कर दिया गया.
प्रदेश के कुड़मियों को जगाने का प्रयास जारी है : ओहदार
आदित्यपुर की शीतल ओहदार ने कहा है कि झारखंड के कुडमियों को जगाने का प्रयास जारी है. अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाना हमारा अधिकार है. इसके लिए हमलोग झारखंड में आंदोलन का बिगुल फूंकने में लगे हैं. हमलोग पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो के नेतृत्व में कुड़मियों को एकजुट कर रहे हैं. आने वाले समय में आंदोलन और तेज होगा. कुड़मी समाज के आंदोलन के सामने सरकार को झुकना पड़ेगा. कुड़मियों की मांग जायज है. हमारा आंदोलन खत्म नहीं हुआ है. कुछ समय के लिए रूका है. आगे फिर हमलोग तैयारी के साथ आएंगे और अपनी बात सरकार तक पहुंचाएंगे. हमारी मांगें सरकार को सुननी ही होगी. यह आज से नहीं, बल्कि वर्षों पुरानी मांग है, जिसे नहीं माना गया.
कुड़मियों का आंदोलन जल्द ही रंग लाएगा : प्रणव महतो
आदित्यपुर निवासी प्रणव महतो ने कहा है कि झारखंड में जल्द कुडमियों का आंदोलन रंग लाएगा. कुड़मी लोग अब जाग रहे हैं. वे अपनी अहमियत समझने लगे हैं. हमलोग सभी जिलों में कुडमियों को एकजुट कर रहे हैं. अभी यहां के कुड़मियों को जगाया जा रहा है. कुड़मी आंदोलन की झांकी पश्चिम बंगाल में दिखी है. उसे अंजाम तक झारखंड के कुड़मी पहुंचाएंगे. यहां आर्थिक नाकेबंदी कर केंद्र सरकार को मिलने वाला खनिज रोकेंगे, तब सरकार गहरी नींद से जागेगी. हमें वर्षों से सरकार बरगला रही है. अब अधिक दिनों तक यह नहीं चलेगा. सरकार को हमारी मांगों पर विचार करना ही होगा. आखिर हमलोग कब तक अपने अधिकार के लिए लड़ते रहेंगे. यह ठीक नहीं है.
राजनीतिक दलों ने कुड़मियों का इस्तेमाल किया : देवदीप
जमशेदपुर के कुड़मी सेना के प्रदेश उपाध्यक्ष सह छात्र नेता देवदीप महतो ने कहा कि राजनीतिक दलों ने अपने फायदे के लिए कुड़मियों का इस्तेमाल किया. वर्तमान में एसटी के साथ सीएनटी के दायरे में रखा है, जबकि एसटी के लाभ से वंचित किया है. उन्होंने कहा कि आज भी नेग नेगाचारी, भाषा-संस्कृति, लिपि अनुसूचित जनजाति के जैसा ही है. इसी को देखते हुए झारखंड को ट्राईव स्टेट बनाया. लेकिन ट्राईव का दर्जा देने से कतरा रहे हैं. देवदीप महतो ने कहा कि केंद्र एवं राज्य की सरकार हमारी सहनशीलता को मजबूरी नहीं समझे. अब आंदोलन शुरू हो चुका है. मांगें पूरी नहीं होने तक आंदोलन जारी रहेगा. इसलिए सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
आदिवासी का दर्जा हमारी संवैधानिक मांग : विष्णु महतो
जमशेदपुर निवासी कुड़मी सेना झारखंड प्रदेश के संयुक्त सचिव विष्णु महतो ने कहा कि कुड़मियों को आदिवासी का दर्जा देना संवैधानिक मांग है. आजादी के पहले तक कुड़मी आदिवासी थे, लेकिन देश में संविधान लागू होने के दौरान इस जाति को उसके संवैधानिक अधिकार से बाहर कर दिया गया. हमारी पहचान को मिटाने के लिए सरकार काम कर रही है. अब समाज के लोग जाग चुके हैं. अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जाना पड़ेगा तो भी वे पीछे नहीं हटेंगे. विष्णु महतो ने बताया कि आने वाले दिनों में और उग्र आंदोलन होगा. इसकी जवाबदेही राज्य व केंद्र सरकार की होगी. हमारा इरादा अटल है. हम हार नहीं मानेंगे. अपना अधिकार लेकर रहेंगे.
कई जातियों को 72 साल से आरक्षण मिल रहा है : लक्ष्मण
जमशेदपुर निवासी कुड़मी नेता लक्ष्मण महतो ने कहा कि अंग्रेजों ने सीएनटी लागू किया. कुड़मी समेत 13 जातियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा, लेकिन 1950 में कुड़मी को साजिश के तहत उक्त श्रेणी से बाहर कर दिया गया. तब से समाज अपनी संवैधानिक मांग के लिए लड़ाई लड़ रहा है. लक्ष्मण महतो ने कहा कि टाटा, धनबाद समेत अन्य शहर कुड़मियों की जमीन पर बसे हैं. जमीन अधिग्रहण करना है तो सीएनटी से बाहर कर दो, जमीन मिल गई तो फिर सीएनटी में डाल दो, आरक्षण का लाभ भी नहीं मिल रहा है. कई पिछड़ी जातियों को 72 वर्षों से आरक्षण मिल रहा है, जबकि इतने वर्षों में आरक्षण की बैशाखी की उन्हें जरूरत नहीं है. लेकिन अधिकार तो है.
गैर सरकारी नोटिफिकेशन में एसटी हैं कुड़मी : फणिभूषण
जमशेदपुर निवासी आजसू पार्टी के कार्यकारी जिला अध्यक्ष सह कुड़मी नेता फणिभूषण महतो ने कहा कि कुड़मियों की अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग कोई नई नहीं है. पूर्वजों के समय से यह मांग की जा रही है. गैर सरकारी नोटिफिकेशन में आज भी कुड़मी अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में हैं. लेकिन 1950 में साजिश के तहत इसे बाहर कर दिया गया. खूंटकाटी बनकर बंजर जमीन को समतल कर उपजाऊ बनाया, कृषि पर निर्भरता है, लेकिन लाभ से वंचित हैं. उन्होंने कहा कि अगला आंदोलन काफी उग्र होगा. इसकी सरकार ने कल्पना नहीं की होगी. इसके लिए जल्द ही तिथि तय कर घोषणा की जाएगी. जब तक सरकार मांग पूरा नहीं करती है.
सरकार ने हमलोगों को छला है : सुमित
जमशेदपुर के कुड़मी समाज के युवा नेता सुमित महतो ने कहा कि देश में कुड़मियों की आबादी के हिसाब से राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिला. राज्य सरकारें इस मामले में दोहरा रवैया अपना रही हैं. पश्चिम बंगाल सरकार ने झूठ बोलकर आंदोलन को स्थगित करवाया. लेकिन अपनी वाजिब अनुशंसा केंद्र सरकार को नहीं भेजी. त्रुटियों को सुधारने के लिए वार्ता की पेशकश की, लेकिन वार्ता सफल नहीं हो सकी. उन्होंने कहा कि कुड़मी समाज सभी राज्य सरकारों पर दबाव बनाकर कुड़मी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने से जुड़ी अनुशंसा भिजवाएगी. इसके लिए आगे लड़ने के लिए तैयार हैं.
हमें एसटी का दर्जा मिलना चाहिए : डॉ करुणाकरण महतो
घाटशिला प्रखंड के झामुमो नेता डॉ. करुणाकरण महतो ने बताया कि कुड़मी समुदाय का यह आंदोलन कोई नया नहीं है. अंग्रेजों के जमाने से इसकी लड़ाई लड़ी जा रही है. 1930-31 में कुड़मी समुदाय के लोग एसटी जाति में शामिल थे, परंतु 1950 में इस जाति के लोगों को एसटी से हटा दिया गया. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि मिस प्रिंटिंग हो गई है. इसे सुधार किया जाएगा, परंतु आज तक सुधार नहीं किया गया है. यह समाज के लिए और राजनीतिक लोगों के लिए अभिशाप बन गया है. हम अपना हक लड़ाई लड़ कर लेंगे. हमें एसटी का दर्जा मिलना चाहिए.
सरकार कुड़मी को नजरअंदाज कर रही है : गिरधारी
घाटशिला प्रखंड के युवा व्यवसायी गिरधारी महतो ने कहा कि हमें एसटी का दर्जा मिलना चाहिए, परंतु सरकार हमारे समाज को नजरअंदाज कर रही है. कारण यह है कि दूसरे वर्ग के लोग हमारे समाज को एसटी बताकर आरक्षण का पूरा फायदा ले रहे हैं, जबकि हमलोगों को आरक्षण का फायदा सुनने को मिल रहा है. झारखंड में एसटी 26% एवं कुड़मी 24% है. इस तरह 50% दिखाकर आरक्षण का पूरा फायदा लिया जा रहा है. सरकार जल्द से जल्द हम लोगों की मांग को मानते हुए एसटी का दर्जा दे, अन्यथा इससे भी जोरदार आंदोलन किया जाएगा. इसके लिए हमलगो पूरी तरह तैयार हैं.
हमारे पूर्वज तो आदिवासी ही थे : निर्मल महतो
घाटशिला प्रखंड के महतो बहुल क्षेत्र के निर्मल महतो ने बताया कि आज से पहले हमारे पूर्वज आदिवासी थे. आज भी हमलोग आदिवासी परंपरा के तहत गांव में जीवनयापन करते हैं. विभिन्न पर्व त्योहार आदिवासी परंपरा के तहत मनाया जाता है, परंतु केंद्र व राज्य सरकार की मिलीभगत के कारण हम लोगों की सरकारी सुविधा का पूरी तरह हनन किया जा रहा है. सरकार से मांग करते हैं कि हमलोगों की समस्या पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए सरकार एसटी का दर्जा दे, अन्यथा जोरदार आंदोलन किया जाएगा. सरकार को इस पर गंभीरतापूर्वक ध्यान देना चाहिए. नहीं तो आंदोलन और उग्र होगा.
अपने हक के लिए कर रहे आंदोलन : मनसा महतो
चक्रधरपुर के झारखंड आदिवासी कुड़मी समाज के प्रवक्ता मनसा महतो ने कहा कि हम लोकतांत्रिक तरीके से अपने हक के लिए आंदोलन कर रहे हैं. हमें आश्वासन दिया गया है कि मांगें पूरी की जाएंगी. अगर हमारी मांगों को पूरा नहीं किया जाता है तो पुनः जोरदार आंदोलन किया जाएगा. हम अपनी मांग को लेकर अड़े हुए हैं. इससे हम पीछे हटने वाले नहीं हैं. हमारी मांग जायज है और जब तक यह पूरी नहीं कर ली जाती है, तब तक आंदोलन जारी रहेगा. सरकार को अब इस पर सोचना ही चाहिए. आखिर हमलगोग कब तक अपने अधिकार से वंचित रहेंगे. यह अधिक दिनों तक नहीं चलेगा.
सरकार यह ना समझे कि हम पीछे हट गए हैं : हीरा
चक्रधरपुर निवासी हीरा महतो ने कहा है कि सरकार यह ना समझे कि हम पीछे हट गए हैं. सरकार को वक्त दिया गया है, लेकिन इसका फायदा ना उठाया जाए. पश्चिम बंगाल में हुए आंदोलन से सरकार को सबक लेने की आवश्यकता है. अगर मांगों पर विचार नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में इससे भी व्यापक रूप से आंदोलन किया जाएगा. हमने अपने आंदोलन को खत्म नहीं किया है. सरकार को इस बारे में सही तरीके से जानकारी होनी चाहिए. अब हमलोगों में अपने अधिकार के प्रति जागरुकता आ गयी है. इसलिए लोग सड़कों पर उतरे हैं. वे अब जागरूक हो चुके हैं. अधिकार के लिए सजग हैं.
सरकार हमें ठगना बंद करे : संगीता महतो
चक्रधरपुर निवासी आदिवासी कुड़मी समाज की नेत्री संगीता महतो ने कहा कि सरकार हमें ठगना बंद करे. अब हम पीछे हटने वाले नहीं हैं. हमारी मांग 70 साल पुरानी है. इसे लेकर कई बार आंदोलन भी किया जा चुका है, लेकिन अब आंदोलन को बड़ा रूप दिया जा रहा है. मांगें पूरी नहीं होने तक हम आंदोलन करते रहेंगे. कुड़मी समाज को एसटी का दर्जा दिया जाए, अन्यथा आने वाले समय में सरकार को भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा. एकजुटता के साथ हम अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं. इसमें समाज के हर वर्ग के लोग अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं. तो इसमें गलत क्या है. सरकार को ध्यान देना होगा.
हमें वर्षों से करना पड़ रहा आंदोलन : किरण महतो
चक्रधरपुर निवासी किरण महतो ने कहा कि कुड़मी समाज अपने इस हक के लिए वर्षों से आंदोलन करता रहा है. सरकार को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए. बंगाल झारखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में में बड़ी संख्या में कुड़मी समाज के लोग निवास करते हैं. हमारी मांग कोई नई नहीं है. पहले भी हमलोग अपनी आवाज उठाते रहे हैं. लेकिन इस बार अलग है. हमलोग एकजुट हैं. बंगाल में जिस तरीके से आंदोलन हुआ है उस तरीके से आगामी दिनों में झारखंड समेत अन्य राज्यों में भी आंदोलन किया जाएगा. कुड़मी समाज अपने हक के लिए एकजुट है और अधिकार व हक की लड़ाई आगे भी जारी रहेगी.
1931 से पहले तो एसटी की सूची में थे : विश्वजीत
चाकुलिया के युवा कुड़मी नेता विश्वजीत महतो ने कहा कि कुड़मी 1931 से पहले एसटी के सूची में शामिल थे. एक साजिश के तहत हमें एसटी से निकाला गया. कुड़मी जाति को एसटी में शामिल करने के लिए हमारा समाज वर्षों से लंबी लड़ाई लड़ रहा है. इसको लेकर आंदोलन किया जा रहा है. अगर हमें पुनः एसटी सूची में शामिल नहीं किया जाता है तो हम आने वाले चुनाव में इसका जवाब सरकार को देंगे. सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. अब तक इस पर विचार नहीं किया गया, लेकिन अब किया जा सकता है. यही वक्त अब सरकार अपनी गलती सुधारे. नहीं तो हम फिर आंदोलन करेंगे.
यह हमारी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई है : प्रफुल्ल
चाकुलिया प्रखंड कुड़मी नेता प्रफुल्ल महतो ने कहा कि कुड़मी को एसटी में शामिल करने की मांग हमारी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई है. इसके लिए समाज आंदोलनरत है. बृहत आंदोलन की रूप रेखा तैयार की जाएगी. रेल चक्का जाम और हाईवे जाम जैसे आंदोलन काफी सफल हुए हैं. कुड़मी जाति को एसटी में शामिल किया जाए और कुड़माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए. जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होंगी तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा. हमारे साथ भेदभाव किया गया है. यह अब नहीं चलेगा. सरकार को हमारी मांगों पर विचार करना होगा.
यह कुर्मी समाज का ही आंदोलन नहीं है, यह जन-जन का आंदोलन है
धनबाद कुर्मी को आदिवासी दर्जा देने की मांग को लेकर झारखंड, बंगाल, ओडिशा के समाज से जुड़े लोग वृहद आंदोलन की तैयारी में लगे हैं. फिलहाल आंदोलन स्थगित है, मगर मांगें कायम हैं. आंदोलनकारियों ने ट्रेन रोकी, जिसका सीधा असर आम जनता पर पड़ा. इस आंदोलन से आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा. नेताओं का कहना है कि कुर्मी समाज के साथ अन्याय हो रहा है. इस आंदोलन को अब वृहद रूप देना होगा.
कुर्मी समाज का आंदोलन नया नहीं : रतिलाल महतो
कुर्मी आंदोलन नया नहीं है. यह बहुत पुरानी मांग है. कुर्मी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करना चाहिए. आजादी के बाद सरकार की भूल के कारण आज पूरे देश में कुर्मी जाति के लोग अनुसूचित जनजाति का दर्जा से वंचित हैं. केंद्र सरकार को जल्द से जल्द सूची में शामिल कर पुरानी गलती को ठीक करना चाहिए. अगर सरकार जल्द निर्णय नहीं लेती है तो कुर्मी समाज उग्र आंदोलन करने की रणनीति बनाएगा. इसे पहले ही किया जाना चाहिए था. लेकिन नहीं किया गया. अब कुर्मी समाज के लोग जागरूक हो रहे हैं. वे अब अपनी मांगों के लिए आंदोलन की राह पर हैं.
ट्राइबल का दर्जा कुर्मी समाज की अस्मिता से जुड़ा : विशाल
यह केवल आरक्षण का मामला नहीं है. यह कुर्मी समाज की पहचान और अस्मिता से भी जुड़ा हुआ है. एक षड्यंत्र के तहत कुर्मी समाज को आदिवासी सूची से हटा दिया गया. वर्ष 1891 में कुर्मी को ट्राइबल का स्टेटस दिया गया था. 1908 में उनकी जमीन सीएनटी एक्ट के तहत संरक्षित की गई. आजादी के समय तक समाज को ट्राइबल का दर्जा प्राप्त था. उस समय की सरकार की छोटी सी गलती का खामियाजा आज तक कुर्मी समाज भुगत रहा है. इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा. वर्तमान में एसटी के साथ सीएनटी के दायरे में रखा है, जबकि एसटी के लाभ से वंचित किया है. यर कितने दिनों तक चलेगा.
अब आगे बड़े आंदोलन का होगा शंखनाद : हीरालाल
आदिवासी समाज की तरह ही कुर्मी समाज का रहन-सहन, तौर-तरीका, पर्व-त्योहार सभी प्रकृति पर आधारित है. ऐसे में इस समाज को आदिवासी का दर्जा मिलना चाहिए. कुर्मी समाज 70 साल से अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत है. परंतु बार-बार सरकार ने ठगने का काम किया है. फिलहाल आंदोलन को अल्पविराम दिया गया है. अब भी सरकार नहीं चेती तो बड़े आंदोलन का शंखनाद किया जाएगा. यह छोटा मामला नहीं है. वर्तमान में एसटी के साथ सीएनटी के दायरे में रखा है, जबकि एसटी के लाभ से वंचित किया है. यह ठीक नहीं है. आखिर हमलगों को कब तक दरकिनार किया जाएगा.
यह आंदोलन वर्षों के रोष का परिणाम है : नरेश
सरकारी दस्तावेजों के अनुसार देश की आजादी के समय तक कुर्मी को ट्राइबल का दर्जा प्राप्त था. वर्ष 1951 में साजिश के तहत कुर्मी समाज से यह दर्जा छीन लिया गया. उस समय की सरकार ने भी स्वीकार किया था कि यह केवल प्रिंटिंग मिस्टेक है. लेकिन इस प्रिंटिंग मिस्टेक को सुधारने में 70 साल लग गए. तब से अब तक की सभी सरकारों ने समाज को बरगलाने का काम किया है. यह आंदोलन युवाओं के वर्षों के रोष का परिणाम है. आज कुर्मी समाज जाग चुका है. इसलिए आंदोलन की राह पर है.युवा अब अपने अधिकार को समझने लगे हैं. वे सरकार की नीति से भी वाकिफ हैं. इसलिए सरकार को गंभीर होना होगा. अगर सरकार अभी भी नहीं चेती तो आंदोलन तेज होगा. इसके लिए सरकार जिम्मेदार होगी.
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