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Jamshedpur (Dharmendra Kumar) : शहर में शनिवार को बंगाली समुदाय द्वारा बांग्ला नव वर्ष पोइला बोइशाख उत्साह, उमंग एवं उल्लास के साथ मनाया गया. मंदिरों में भीड़ देखी गई. हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी शनिवार को बंगाली समुदाय द्वारा पोइला बोइशाख मनाया गया. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार विश्वभर में एक जनवरी के दिन को नए साल के रूप में धूमधाम के साथ मनाया जाता है. लेकिन इसके अलावा भारत के विभिन्न राज्यों और समुदाय के लोग अपनी-अपनी संस्कृति व परपंराओं के अनुसार नया साल मनाते हैं. बंगाली समुदाय के लोग पोइला बोइशाख के दिन को नए साल के रूप में मनाते हैं. इस दिन लोग एक-दूसरे को नए साल की बधाई व शुभकामनाएं देते हैं. परिवार के सदस्यों और दोस्तों के साथ इस दिन का जश्न मनाते हैं.
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पोइला बोइशाख बंगाली समुदाय के लिए बहुत खास होता है
बंगाली नववर्ष के इतिहास को लेकर अलग-अलग विचार और मत हैं. मान्यता है कि बंगाली युग की शुरुआत 7वीं शताब्दी में राजा शोशंगको के समय हुई थी. इसके अलावा दूसरी ओर यह भी मत है कि चंद्र इस्लामिक कैलेंडर और सूर्य हिंदू कैलेंडर को मिलाकर ही बंगाली कैलेंडर की स्थापना हुई थी. वहीं इसके अलावा कुछ ग्रामीण हिस्सों में बंगाली हिंदू अपने युग की शुरुआत का श्रेय सम्राट विक्रमादित्य को भी देते हैं. इनका मानना है कि बंगाली कैलेंडर की शुरुआत 594 सीई. में हुई थी. बंगाली समुदाय के लोगों के लिए पोइला बोइशाख (पहला बैसाख) बहुत ही खास होता है. इस दिन से बंगाली नववर्ष की शुरुआत होती है.
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नए कार्य के लिए की जाती है पूजा-अर्चना
इस दिन लोग पवित्र नदी में स्नान कर पूजा-पाठ करते हैं. घर की साफ-सफाई कर अल्पना बनाया जाता है. मंदिर जाकर नए साल के पहले दिन भगवान का आशीर्वाद लिया जाता है. इसके बाद विशेष व्यजंन तैयार किए जाते हैं. इस दिन गौ पूजन, नए कार्य की शुरुआत, अच्छी बारिश के लिए बादल पूजा आदि का भी महत्व होता है. पोइला बोइशाख पर लोग सुख-समृद्धि के लिए सूर्य देव के साथ ही भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं. घर पर रिश्तेदार और दोस्तों का आना-जाना होता है और लोग एक दूसरे को “शुभो नोबो बोरसो” (नए साल की शुभकामनाएं) कहकर नए साल की बधाई देते हैं.
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