Bokaro Thermal : नावाडीह प्रखंड के जंगलों और पहाडों के किनारे रहने वाले किसान इन दिनों सखुआ पेड़ का बीज और फल से आमदनी कर रहे हैं. किसान महिला, पुरूष, बच्चे-बुढ़े सुबह ही खाना पीना बांधकर जंगलों में पहुंच रहे हैं और सखुआ पेड़ का फल चुनने में लगे हैं. वे जमीन पर गिरें सखुआ पेड़ के फल को चुनकर जमा करते है. फिर उसके उपरी छिलके को काफी मेहनत कर हटाते है. छिलके हटाने के बाद उसे बाजार में बेचने लायक बनाते हैं.
20 से 50 रुपये किलो तक बिकता है सखुआ का फल
बाजार में सखुआ का फल 20 से लेकर 50 रूपए प्रति किलो की दर से बिकता है. सखुआ के बीज की मांग हर वर्ष मई-जून में काफी बढ़ जाती है. सरकार की ओर से इसकी खरीद को लेकर कोई व्यवस्था ना होने के कारण किसान बाजार में औने-पौने दाम पर बेचने को विवश है. ग्रामीण कहते हैं कि सरकार थोड़ी सी पहले करे तो बाज़ार को विस्तार मिलेगा और ग्रामीणों की आय भी बढ़ेगी.
उपयोगी है सखुआ का बीज
ग्रामीण चिकित्सक डॉ.दिलचंद ठाकुर की मानें तो सखुआ का बीज कई चीजों में उपयोग किया जाता है. पहले जब क्षेत्र में आकाल पड़ता था, तब लोग बीज को भोजन के रूप में उपयोग करते थे. साबून बनाने और तेल निकालने के लिए भी सका उपयेग किया जाता है. पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता गुलाब चंद्रा ने बताया कि सखुआ का फल प्रोटीन युक्त है. इससे खाने के लिए तेल भी निकाला जाता है. जो काफी लाभदायक है.
जंगल के राजा पेड़ के रूप में है सखुआ की पहचान
सखुआ के पेड़ की पहचान जंगल के राजा पेड़ के रूप में है. क्योंकि यह अपने अगल-बगल के पौधों को प्राकृतिक रूप से जैविक विविधता बनाये रखने में सहयोगी की भूमिका निभाता है. इसकी लकड़ी सबसे कीमती और मजबूत होती है. पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी यह काफी बेहतर है. आदिवासी समाज में सखुआ पेड़ की पूजा की जाती है.
वनों के विस्तार से राज्य को होगा फायदा : रेंजर
बेरमो वन प्रक्षेत्र के रेंजर विनय कुमार ने कहा कि एक बड़े क्षेत्र में सखुआ का पौधरोपण प्रयोगात्मक रूप से किया गया है. सखुआ का महत्व पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी काफी अधिक है. बीज के माध्यम से पौधे उगाने का प्रयोग सफल रहा है. आगामी वर्षों में दूसरे जिलों में भी इसका विस्तार किया जाएगा
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