Lagatar Desk : इतिहास गवाह है, महामारी में सरकारें तानाशाह हो जाती हैं. कोरोना की पहली लहर में सरकार ने करोड़ों लोगों को सैंकड़ों किमी पैदल चलने को मजबूर करके यह साबित कर दिया था. अपनी छवि बचाने और गलतियों पर परदा डालने के लिए सरकारें कितनी निष्ठुर और बेरहम हो सकती हैं? आप सोंच भी नहीं सकते. सरकार मौत के आंकड़ों को भी छिपा सकती है. ताकि मुआवजा नहीं देने पड़े. यह आप यूपी और बिहार की दो उदाहरणों से समझ सकते हैं. दोनों राज्यों में सरकार “रामराज” के नारे के साथ बनी थी. अब “रामभरोसे” हो चली है.
यूपी का उदाहरण
पंचायत चुनाव के दौरान कोरोना संक्रमण से सरकारी कर्मियों की मौत को लेकर उत्तर प्रदेश की सरकार ने एक आंकड़ा जारी किया है. सरकार ने कहा है कि चुनाव ड्यूटी में लगे तीन शिक्षकों की मौत कोरोना संक्रमण की वजह से हो गई. जबकि शिक्षक संगठनों ने सरकार के आंकड़ों को झूठ का पुलिंदा बताया है. संगठनों ने कहा है कि पंचायत चुनाव की ड्यूटी करने वाले 1621 शिक्षकों, शिक्षामित्रों व अन्य कर्मियों की मौत हुई है. सरकार मुआवजा देने से बचने के लिए गलत आंकड़े दे रही है. साफ है कि सरकार आंकड़े छिपा रही है. आंकड़े छुपाने की वजह से ही दो दिन पहले इलाहाबाद हाइकोर्ट ने यह टिप्पणी की थी कि यूपी में सबकुछ “रामभरोसे” है.
बिहार का उदाहरण
बिहार सरकार की तरफ से वहां के मुख्य सचिव ने हाइकोर्ट में जो रिपोर्ट दी, उसमें बताया गया कि 5 से 14 मई के बीच बक्सर जिला में छह लोगों की मौत हुई. लेकिन आयुक्त ने जो रिपोर्ट हाइकोर्ट में दी, उसमें कहा गया है कि 5 से 14 मई के बीच बक्सर जिला में 789 शवों को जलाया गया. साफ है कि इतने अधिक लोगों की मौत सामान्य नहीं है. सरकार की रिपोर्ट झूठी है. सरकार मौत का आंकड़ा छिपाना चाह रही है. बिहार में भी सरकार “रामराज” के नारे के साथ बनी है. लेकिन यहां भी हालात “रामभरोसे” वाली ही है.