Girirsh Malviya
ब्लैक फंगस का मामला उलझता जा रहा है. पहले यही लगा कि यह कोरोना मरीज़ों पर स्टेरॉइड के इस्तेमाल से जुड़ा मामला है. अब नया तथ्य यह है कि यह पिछले दिनों ऑक्सीजन संकट में इस्तेमाल की गई दूषित ऑक्सीजन से उपजा संकट है. एक दिन पहले भास्कर में खबर है कि ब्लैक फंगस के ऐसे आठ मरीज सिर्फ इंदौर में ही नजर आए हैं, जिन्हें खुद नहीं पता कि उन्हें कोरोना हुआ भी था या नहीं. यह बहुत आश्चर्यजनक तथ्य है.
ब्लैक फंगस के बढ़ते प्रकोप की बात करें तो देश में अब तक इस बीमारी के 7 हजार से ज्यादा केस सामने आ चुके हैं. 200 से ज्यादा मरीज अपनी जान गवां चुके हैं. ब्लैक फंगस के बढ़ते केस के बाद देश के कई राज्यों में इसे महामारी घोषित किया जा चुका है.
दिलचस्प बात यह है कि भारत में कोरोना की पिछले साल आयी लहर में ब्लैक फंगस के मरीज बहुत कम थे. कोरोना संक्रमण की पहली लहर में देश में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में ब्लैक फंगस का एक मामला ही सामने आया था. उस वक्त 20 फीसदी आबादी संक्रमित हुई थी. इस बार करीब 40 फीसदी आबादी चपेट में आई है. लेकिन ब्लैक फंगस के मामलों में आश्चर्यजनक उछाल आया है.
अमेरिका, यूरोप, ब्राजील या अन्य जगहों पर कोविड रोगियों में ब्लैक फंगस संक्रमण के बहुत कम मामले हैं. फिर भारत में अचानक उछाल क्यों है, वह भी दूसरी लहर के दौरान? यह सवाल बहुत बड़ा है, जिसका जवाब खोजना जरूरी है.
ऑल इंडिया फ़ूड एंड ड्रग लाइसेंस होल्डर फ़ाउंडेशन ने सवाल उठाया है कि कहीं इस फंगस के अचानक फैलाव की पीछे एक बड़ा कारण दूषित ऑक्सीजन या इसमें इस्तेमाल होने वाला पानी तो नहीं? वे सवाल उठा रहे हैं कि पिछले दिनों जब ऑक्सीजन की किल्लत के समय जब उद्योगों के लिए ऑक्सीजन बनाने वालों ने मेडिकल ऑक्सीजन बनाया तो नियमों पर अमल हुआ या नहीं? और उसकी पड़ताल हुई या नहीं ?
अशुद्ध ऑक्सीजन को इसलिए भी दोषी बताया जा रहा है, क्योंकि यह देखने में आया है कि अशुद्ध पानी का उपयोग करके जो लोग योगिक जलनेती (नाक से पानी अंदर लेकर सफाई) का अभ्यास करते थे, उनमें भी पहले ब्लैक फंगस की बीमारी देखी जाती रही है.
अभी यह भी देखने में आया है कि जो मरीज कई दिनों तक ऑक्सीजन पर रहते हैं, उनके मुंह की सफाई ठीक से नहीं हो पाती है. ओरल हाइजीन का ध्यान नहीं रखा जाता है. उनके मुंह और नाक में लगातार ऑक्सीजन जाने से सफेद पपड़ी जम जाती है. ऐसे में लगातार ह्यूमिडीफाइड ऑक्सीजन उनके अंदर जाने से मुंह में ब्लैक फंगस बनने का खतरा रहता है.
दरअसल, ब्लैक फंगस हवा में है. यह सर्वव्यापी है. यह नमी वाली जगह, मिट्टी, सीलन भरे कमरों आदि में पाया जाता है. जब फल सड़ जाते हैं या ब्रेड पर फफूंदी हो जाती है, तो हम अपनी रसोई में इसका अनुभव करते हैं. स्वस्थ लोगों को फ़िक्र की ज़रूरत नहीं. लेकिन जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है, उन्हें ब्लैक फ़ंगस का खतरा अधिक बताया जा रहा है. कोरोना की मृत्यु दर बहुत कम है. लेकिन ब्लैक फंगस यानी म्यूकरमायकोसिस में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक होती है.
अभी घर पर हम सिर्फ इतनी ही सावधानी रख सकते हैं, कि कोविड के मरीजों को छुट्टी मिलने के बाद भी उनके शुगर लेवल पर नज़र रखी जाए. क्योंकि अधिकतर डायबेटिक लोग ही इसके शिकार हो रहे हैं.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.