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Kiriburu (Shailesh Singh) : एक सहायक के भरोसे करोड़ों की योजना एनआरईपी को दिए जाने की चर्चा जोरों पर है. विशेष प्रमंडल के कैशियर बीटी सिंह के जैसा हाल एनआरईपी के सहायक का है. सौ करोड़ की योजना किसके भरोसे जिला प्रशासन दी है! सौ करोड़ की योजना के अनुपात पर सहायकों की संख्या बल नहीं के बराबर है. समय पर कार्य का संचालन नहीं होने के कारण ठेकेदार परेशान हो रहे हैं. दिलीप हेम्ब्रम, एनआरईपी में दो साल से सहायक के पद पर कार्यरत हैं. विभाग द्वारा सुभाष सिंह को कार्यपालक अभियंता के पद पर पदस्थापित किया है.
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उल्लेखनीय है कि उक्त विभाग में चर्चा जोरों पर है कि एक सहायक के भरोसे सौ करोड़ की कार्य योजना एनआरईपी को कैसे दी गई है. यह बात तकनीकी विभागों में चर्चा का विषय बना हुआ है. अचानक जिला प्रशासन क्यों एनआरईपी पर मेहरबान हो गया है. सौ करोड़ की योजना पूरी करने के लिए लेखा पदाधिकारी, लेखापाल, रोकड़पाल, प्रधान सहायक, तीन सहायक की आवश्यकता होती है. सौ करोड़ की योजना में अन्य एजेन्सी की तुलना में स्वीकृत पदों का सृजन किया जाना आवश्यक है. समय पर निविदा आमंत्रित किया जाना, समय पर निविदा निष्पादन करना, समय पर ठेकेदारों को भुगतान करना, समय पर जिला को प्रगति प्रतिवेदन भेजना, योजना की राशि की मांग जिला से समय पर करना वर्तमान व्यवस्था में संभव नहीं लगता है. सबसे बड़ी समस्या यह है कि एनआरईपी में ठेकेदारों को भुगतान नहीं होता है.
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भुगतान की प्रक्रिया जिला परिषद से होती है. एनआरईपी का खाता कोषागार में नहीं है. वर्तमान में एनआरईपी के एक मात्र सहायक द्वारा अधीक्षण अभियंता और जिला प्रशासन के नाम पर ठेकेदारों से सीएस अनुमोदन कराने के नाम पर कमीशन वसूलने की की चर्चा जोरों पर है. इसकी जांच जिला प्रशासन को करनी चाहिए. साथ ही सौ करोड़ की योजना को समय पर पूर्ण कराने और वित्तीय अनियमितता को रोकने के लिए आवश्यकतानुसार सहायकों की प्रतिनियुक्ति करना आवश्यक है.
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