Saurav Shukla
Ranchi : पिछले डेढ़ साल से भी अधिक समय से स्कूल-कॉलेजों में ताले लगे हैं. बच्चों और किशोरों में मानसिक तनाव का भी खतरा मंडराने लगा है. ऑनलाइन क्लास होने के कारण बच्चे ज्यादा समय मोबाइल पर बिता रहे हैं. आने वाले समय में मोबाइल की लत को छुड़ाना चिकित्सकों और परिवार के लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है. 10वीं और 12वीं की परीक्षा रद्द होने के कारण मेधावी छात्रों का मनोबल टूट रहा है. उन्हें भविष्य की चिंता सता रही है और यह भी अवसाद का एक प्रमुख कारण है.
मोबाइल के इस्तेमाल से शरीर पर पड़ रहा है बुरा प्रभाव- डॉ बासुदेव दास
केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान के निदेशक डॉ वासुदेव दास ने कहा कि शुरुआती दौर में लगा कि कोरोना दो-तीन महीने ने के लिए आया है, लेकिन कोरोना एक सेशन की पढ़ाई को बाधित किया और अब यह कब तक जाएगा कुछ पता नहीं है. उन्होंने कहा कि स्कूल-कॉलेज बंद होने के कारण ऑनलाइन क्लास चल रहा है. बच्चे शारीरिक एक्टिविटी से दूर हो गए हैं. ऑनलाइन क्लास में अब बच्चे ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं. फिजिकल क्लास में शिक्षक के सामने पढ़ने और अपने दोस्तों से मिलने से मानसिक अवसाद कम होता था. डॉ वासुदेव ने कहा कि पहले जो टॉपर छात्र होते थे, उनका कहना था कि वो मोबाइल का इस्तेमान न के बराबर करते हैं. लेकिन अब मोबाइल लोगों की जरूरत बन गई है. मोबाइल मिस यूज़ का साधन बन गया है. बच्चे स्क्रीन पर ज्यादा टाइम दे रहे हैं. इससे आंख, दिमाग और शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. आने वाले समय में बच्चों से मोबाइल की आदत छुड़ाना भी एक बड़ी चुनौती बन जाएगी.
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घर में कैद होने के कारण बच्चों में जिद और चिड़चिड़ापन- डॉ वीणा
सदर अस्पताल में कार्यरत मनोचिकित्सक डॉ वीणा ने कहा कि कोरोना काल में घर में रहने के कारण बच्चे ज्यादा जिद्दी हो गए हैं. चिड़चिड़ेपन के लक्षण भी देखने को मिल रहे हैं. हम बच्चों के माता-पिता को समझाते हैं कि बच्चों को खेल के रूप में संक्रमण से बचने के तरीके को बताएं. उन्होंने कहा कि अभिभावकों को अपने बच्चों को इंडोर गेम खेलने की सलाह दी जा रही है. मोबाइल और उसके गेम से दूर रहने की सलाह उनके घर वालों को दी जा रही है. कोरोना काल काफी मुश्किल भरा हुआ है. बच्चों के मन से डर निकालने के लिए माता-पिता और बच्चों की काउंसलिंग की जा रही है. उन्हें कहा जा रहा है कि बच्चों से ज्यादा बातें करें.
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पोस्ट कोविड ओपीडी में भी समस्या लेकर आ रहे हैं लोग
डॉ वीणा ने कहा कि सदर अस्पताल में संचालित पोस्ट कोविड ओपीडी में भी लोग अपनी समस्या को लेकर आ रहे हैं. पिछले दो-तीन दिन में कई ऐसे लोग पहुंचे हैं, जिनके मन में डर है कि उनके कोरोना संक्रमित होने से बच्चे में भी संक्रमण का खतरा है. वैसे लोगों की भी काउंसलिंग की जा रही है.
गार्जियन को निभानी पड़ेगी दोस्त की भूमिका- डॉ अजय बाखला
वहीं रिम्स के मनोचिकित्सक डॉ अजय बाखला ने कहा कि स्कूल-कॉलेज बंद होने के कारण इंटरनेट और मोबाइल पर निर्भरता ज्यादा बढ़ गई है. सामाजिक मेलजोल से बच्चे दूर हो गए हैं. शारीरिक रूप से बच्चे सुस्त पड़ गए हैं. ऑफलाइन एक्टिविटी को बढ़ाने की जरूरत है. मोबाइल से हट कर इनडोर गेम पर ध्यान देने की जरूरत है. गार्जियन को इस कठिन दौर में अपने बच्चों के दोस्त की भूमिका भी निभानी पड़ेगी.