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- झारखंड कांग्रेस नेताओं ने जानी मनरेगा मजदूरों की परेशानियां
- गढ़वा में मनरेगा को लेकर हुई जनसुनवाई
- मनरेगा योजना की पोल खोलकर रख दी मजदूरों ने
Ranchi/Garhwa : कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव जयराम रमेश ने कहा है कि मोदी सरकार मनरेगा को मारना चाहती है. केंद्र सरकार पारदर्शिता के नाम पर मनरेगा में अनावश्यक तकनीकी जटिलता ला रही है, जिसे लोगों के काम के अधिकार का हनन हो रहा है. असल में सरकार का मुख्य उद्देश्य मनरेगा को समाप्त करना है. राजस्थान के बाद झारखंड दूसरा राज्य हो सकता है, जहां शहरी रोजगार गारंटी लागू होना चाहिए. जन प्रतिनिधियों का कर्त्तव्य है कि ऐसी जन सुनवाई में भाग लें और जमीनी सच्चाई को नज़र रखते हुए नीतियों को लोकतांत्रिक तरीके से पारित करें. जयराम रमेश बुधवार को नरेगा संघर्ष मोर्चा एवं झारखंड नरेगा वॉच द्वारा गढ़वा के रंका हाईस्कूल मैदान में राष्ट्रीय जनसुनवाई में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे. कार्यक्रम में पूर्व मंत्री बादल पत्रलेख, पूर्व मंत्री बंधु तिर्की, रामेश्वर उरांव, पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी, सुबोध कुमार, स्थानीय नेता बैजेंद्र कुमार चौधरी, राजद जिला अध्यक्ष सूरज कुमार सिंह, विधायक अनूप सिंह, निखिल डे, अरुणा राय, अनंत प्रताप सिंह उर्फ छोटे राजा सहित कई वरिष्ठ नेता उपस्थित थे.
देश को मजदूरों ने बनाया है : कन्हैया कुमार
कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने कहा कि इस देश को मजदूरों ने बनाया है. गारंटी शब्द देश के श्रमिक आंदोलन से निकला हुआ है. अगर मौजूदा केंद्र सरकार पूंजीपति के 14 लाख करोड़ का कर्ज माफ कर सकती है तो उसे मनरेगा मजदूरों का काम और मजदूरी की गारंटी सुनिश्चित करनी ही होगी. अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने नरेगा मजदूरों द्वारा बनाये गए तालाब से एक मछली दिखाते हुए जयराम रमेश से कहा कि मनरेगा ऐसा निवेश है, जो ग्रामीण, गरीबों के बीच समृद्धि लेकर आया. मनरेगा संघर्ष मोर्चा और झारखंड मनरेगा वॉच की तरफ से बलराम और जेम्स हेरेंज ने मांग पत्र सामने रखा. मांग पत्र में परिवार के हर सदस्य को 100 दिन के काम की गारंटी, मनरेगा की मजदूरी दर 800 रुपया किए जाने, केंद्र सरकार पर दबाव डालकर मनरेगा कानून के अनुसार 15 दिन के भीतर मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित किए जाने सहित अन्य बिंदु शामिल हैं.
विभिन्न राज्यों से आए मजदूरों ने रखी अपनी बात
देश के अलग-अलग राज्यों से आये हुए 20 से अधिक मज़दूरों ने अपने इलाकों में नरेगा से संबंधित समस्याओं और चुनौतियों को जनता के समक्ष रखा . लातेहार से मज़दूर महावीर परहैया ने बताया कि पिछले दो साल से उनके गांव में नियमित रूप से नरेगा में काम नहीं मिल रहा है और काम का भुगतान भी समय पर नहीं हुआ. बिहार के कटिहार की फूल कुमारी का कहना है कि उनके यहां अगर 76 लोग काम की मांग करते हैं तो मुश्किल से 7 लोगों को काम मिलता है. छत्तीसगढ़ से भोलू पंडो और सेवक लकड़ा का कहना है कि नरेगा आने से उनके जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आये, लेकिन पिछले 10 सालों से लगातार बजट की कटौती और मोबाइल हाज़िरी की वजह से नरेगा में काम करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है .
क्या है प्रमुख मांगें
- परिवार के हर सदस्य को 100 दिन के काम की गारंटी
- नरेगा का मज़दूरी दर होना चाहिए 800 रुपया
- नरेगा कानून के अनुसार 15 दिन के अंदर हो मज़दूरी का भुगतान
- लंबित भुगतान का मुआवज़ा भरना चाहिए
- भुगतान के लिए आधार आधारित भुगतान प्रणाली को अनिवार्य न करें
- नरेगा में डिजिटल हाज़िरी को तत्काल बंद किया जाये
- सामाजिक अंकेक्षण के लिए पर्याप्त बजट का आवंटन हो
- सामाजिक अंकेक्षण विभाग के स्वायत्तता को कायम रखा जाए
- हर काम के सामाजिक अंकेक्षण में ग्राम सभा के समक्ष, समस्त जानकारी को रखते हुए कैग के नियामवली के अनुसार किया जाए.
- पश्चिम बंगाल के नरेगा मज़दूरों के साथ हो रहे अन्याय को रोका जाए
- मज़दूरों को बेरोज़गारी भत्ता मिले
- योजनाओं के निर्धारण और क्रियान्वयन में ग्राम सभा के निर्णय को प्राथमिकता दिया जाए.
- पूरे देश में शहरी रोज़गार गारंटी क़ानून लाया जाए
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