- आदिवासी हितैषी होने का दावा करने वाली झारखंड की कांग्रेस समर्थित सरकार ने भी आदिवासियों की सुध नहीं ली
- सरकारी कार्यलाय से गुम हो गये वन पट्टा के हजारों आवेदन, नहीं मिला ग्राम सभा को वापस
- दिसंबर 2018 से दिसंबर 2019 के बीच सिर्फ 1846 व्यक्तिगत व 14 सामुदायिक वन पट्टा ही बंटे
- दावे के विपरीत जमीन में हुई कटौती, दो एकड़ का दवा करने वाले को मिला मात्र 10 डिसमिल
Praveen Kumar
Ranchi : राज्य में आदिवासी हितैषी होने का दावा करने वाली कांग्रेस समर्थित झारखंड सरकार ने भी आदिवासियों की सुध नहीं ली. पिछले साढ़े चार साल में एक भी आदिवासियों को वन पट्टा नहीं मिला है. झारखंड में चुनावी सभाओं के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी आदिवासियों को उनका आधिकार दिलाने की बात करते रहे हैं. जबकि हकीकत यह है कि वन अधिकार कानून के तहत अधिकांश आदिवासियों को उनके दावों से बहुत कम जमीन मिली है. यही नहीं दावा करने के बाद भी आदिवासियों के नाम पर जमीन हस्तांतरित करने में सालों लग रहे हैं. हजारों की संख्या में आवेदन किये गये, पर कोई अफसर कुछ कहने को तैयार नहीं हैं.
दिसंबर 2018 से दिसंबर 2019 के बीच सिर्फ 1846 व्यक्तिगत व 14 सामुदायिक वन पट्टा ही बंटे
दिसंबर 2019 के पहले भी जिन आदिवासियों को वन पट्टा मिला है, उन्हें पांच से 10 डिसमिल वन पट्टा देकर ही कोरम पूरा कर दिया गया है. राज्य सरकार को दिसंबर 2019 तक व्यक्तिगत वन पट्टा के लिए 1,07,032 आवेदन मिले थे. इसके एवज में सरकार ने 59,866 व्यक्तिगत वन पट्टा का निपटारा कर 1,53,395 एकड़ जमीन का पट्टा दिया है. वहीं ग्राम सभाओं की ओर से समुदायिक वन पट्टा के लिए सरकार को 3,724 आवेदन प्राप्त हुआ था. इसके एवज में सरकार ने 2104 आवेदनों का निपटरा करते हुए 1,03,758 एकड़ जमीन का पट्टा दिया है. दिसंबर 2018 से दिसंबर 2019 के बीच 1846 व्यक्तिगत पट्टा और 14 समुदायिक पट्टा दिये गये. इसके बाद पिछले चार साल में झारखंड में किसी को भी वन पट्टा नहीं दिया गया.
आखिर! व्यक्तिगत वन पट्टा के आवेदन कहां गये
फॉरेस्ट राइट एक्ट के तहत झारखंड में एक लाख सात हजार 32 व्यक्तिगत वन पट्टा के आवेदन ग्राम सभा के अनुमोदन के बाद सरकार के पास जमा हुए थे. लेकिन अनुमंडल स्तरीय वन अधिकार कमेटी ने मात्र 69105 आवेदन को ही अपने रिकार्ड में दर्ज किया. जबकि इस कमेटी के अफसरों ने शेष सभी वन पट्टा के लिए किये गये आवेदन को सुधार कर पुनः ग्राम सभा की एफआरसी कमेटी के पास भेजने की जगह कूडे में फेंक दिया. मात्र 63,596 आवेदन को जिला स्तरीय कमेटी के पास जमीन का रकबा कम कर वन पट्टा के लिए अनुशंसा किया और इसमें भी 59,930 आवेदनों को पट्टा देने के लिए अनुमोदन किया. लेकिन अनुमोदन के बाद भी 59,930 में से 59,866 लोगों को ही पट्टा मिला.
सामुदायिक वन पट्टा में 90 फीसदी तक कटौती
सामुदायिक वन पट्टा की भी स्थिति कमोबेश इसी तरह है. अनुमंडल स्तरीय वन अधिकार कमेटी ने ग्राम सभाओं से 3724 आवेदन पास कर मात्र 2531 को जिला स्तरीय कमेटी के पास भेजा. फिर जिला स्तरीय कमेटी ने 2135 समुदायिक वन पट्टा के लिए अनुशंसा की. लेकिन वन पट्टा देने वाली जिला स्तरीय कमेटी ने मात्र 2104 समुदायिक वन पट्टा ग्राम सभाओं को दिया. गांव में सबका दावा पत्र ग्राम सभा की सहमति के बाद अनुमंडल गया था, फिर भी दावे के विपरीत जमीन में कटौती की गयी. लातेहार जिला में इसको लेकर कई शिकायत भी दर्ज की गयी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. झारखंड में वन अधिकार कानून 2006 पर काम करने वाले संगठनों का दावा है कि वन अधिकार के तहत पट्टों में 90 फीसदी तक कटौती हो रही है.
झारखंड में वन पट्टा का आवेदन की स्थिति
दिनांक – कुल व्यक्तिगत पट्टा – सामुदायिक वन पट्टा – व्यक्तिगत पट्टा – सामुदायिक वन पट्टा
31.12.2018 – 1,05,365 – 3,667 – 58,053 – 2090
31.12.2019 – 1,07,032 – 3,724 – 59,899 – 2104
31.12.2020 – 1,07,032 – 3,724 – 59,899 – 2104
31.12.2023 – 1,07,032 – 3,724 – 59,899 – 2104
31.02.2024 – 1,07,032 – 3,724 – 59,899 – 2104
ग्राम सभा से अनुमोदन के बाद किये गये दावे और दिये गये पट्टे
व्यक्तिगत पट्टा सामुदायिक वन पट्टा
58053 2090
59899 2104
59899 2104
59899 2104
59899 2104
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