Garhwa: रंका ठाकुरबाड़ी मंदिर में स्नान यात्रा संपन्न हुआ. इस अवसर पर राजा साहब राजा गोवर्धन प्र सिंह के निर्देशानुसार युवराज गुलाब प्र सिंह के द्वारा राज पंडितों और राजपुरोहितों के मंत्रोच्चार के साथ ठाकुर जी को स्नान कराया गया. हल्दी, चन्दन आदि सुगंधित द्रव्यों से अभिषेक किया गया. तत्पश्चात भगवान को मोहनभोग का भोग लगाया गया. उसके उपरांत महाप्रसाद अटका का भी भोग लगा. इस उत्सव पर रंका राज परिवार के सदस्य और रंका ग्राम के सम्माननीय सदस्य, आसपास के पंडित ग्रामीण उपस्थित थे. अब आज से भगवान जगरन्नाथ जी अपनी बहन सुभद्रा जी और बड़े भाई बलराम जी के साथ पंद्रह दिनों के लिए गर्भगृह में चले जाएंगे. उनका कपाट बन्द हो जाएगा. इस दौरान भगवान को सिर्फ फल, फल का रस आदि भोग लगेगा. ऐसी मान्यता है कि महास्नान के दौरान भगवान पंद्रह दिनों के लिए बीमार पड़ जाते हैं. इसीलिए गर्भगृह में चले जाते हैं और पंद्रह दिनों के बाद स्वस्थ होकर साज श्रृंगार कर के रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करते है. जिसे हम भक्त लोग रथयात्रा के नाम से जानते हैं.
भगवान के बीमार पड़ने की भी बड़ी रोचक कहानी प्रचलित है. बताया जाता है कि उड़ीसा प्रांत में जगन्नाथ पूरी में भगवान श्री जगन्नाथ के एक भक्त माधव दास जी रहते थे. माधव दास जी अकेले रहते थे आर भगवान का भजन किया करते थे. हर रोज़ श्री जगन्नाथ प्रभु के दर्शन करते थे और अपनी मस्ती में मस्त रहते थे. वे सांसारिक जीवन से कोई मोह-माया नहीं थी ना वे किसी से कोई लेना-देना रखते थे. प्रभु माधव जी के साथ अनेक लीलाएं किया करते थे और चोरी करना भी सिखाते थे. एक दिन अचानक माधव दास जी की तबीयत खराब हो गई उन्हें उल्टी-दस्त का रोग हो गया. वह बहुत ही कमज़ोर हो गए. उठने-बैठने में भी उन्हें समस्या होने लगी. माधव जी अपना कार्य स्वयं करते थे. वे किसी से मदद नहीं लेते थे. जो व्यक्ति उनकी मदद के लिए आता था उनसे कहते थे की भगवान जगन्नाथ स्वयं उनकी रक्षा करेंगे. देखते ही देखते माधव जी की तबीयत इतनी खराब हो गई की वे अपना मल-मूत्र वस्त्रों में त्याग देते थे. तब स्वयं जगन्नाथ स्वामी सेवक के रुप में माधव जी के पास उनकी सेवा करने पहुंचे. माधव जी के गंदे वस्त्र भगवान जगन्नाथ अपने हाथों से साफ करते थे और उन्हें भी स्वच्छ करते थे. उनकी संपूर्ण सेवा करते थे. जितनी सेवा भगवान जगन्नाथ करते थे शायद ही कोई व्यक्ति कर पाता.
जब माधवदास जी स्वस्थ्य हुए और उन्हें होश आया तब भगवान जगन्नाथ जी को इतनी सेवा करते देख वे तुरंत पहचान गए कि यह मेरे प्रभु ही हैं.
एक दिन श्री माधवदास जी ने प्रभु से पूछा प्रभु आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो. आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो यह सब करना नहीं पड़ता. तब जगन्नाथ स्वामी ने उन्हे कहा देखो माधव मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की. जो प्रारब्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है. अगर उसको इस जन्म में नहीं काटोगे तो उसको भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा और मैं नहीं चाहता की मेरे भक्त को जरा से प्रारब्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े. इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नहीं टाल सकता. अब तुम्हारे प्रारब्ध में ये 15 दिन का रोग और बचा है. इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे. 15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदासजी से ले लिया. तब से भगवान जगन्नाथ जी इन 15 दिन बीमार रहते हैं.
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