Shyam Kishore Choubey
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस बात की वाहवाही ले सकते हैं कि 11 साल पहले उन्होंने फुल कैबिनेट वाली सरकार बनायी-चलायी थी और अब एक बार फिर उन्होंने फुल कैबिनेट का गठन किया है. बीच की अवधि में पूरे पांच साल रघुवर दास के नेतृत्ववाली बहुमत की एनडीए सरकार एक मंत्री पद खाली रखकर ही चली थी. हालांकि उसके बाद चार साल तक खुद हेमंत ने भी एक मंत्री पद खाली रखकर ही सरकार चलायी. यहां तक कि 31 जनवरी को उनके जेल जाने के बाद बनी इंडिया ब्लॉक की ही चंपाई सोरेन सरकार में भी एक मंत्री पद खाली रहा. इस दौरान कांग्रेस कोटे के एक सीनियर मंत्री आलमगीर आलम ईडी द्वारा बंदी बनाये गये थे. उन्होंने पद नहीं छोड़ा था और जब छोड़ा भी तो वैकेंसी पूरी नहीं की गई थी. सरकार के पास बहुतेरे काम होते हैं. उसी के अनुरूप कैबिनेट का साइज निर्धारित किया गया है. कैबिनेट में कुछ पद खाली रखने का सीधा संदेश यही होता है कि सत्ताधारी दल/गठबंधन में कुछ पेंच है. झारखंड में सरकारें हमेशा शंका/आशंकाओं से घिरी रही हैं. इसी कारण तुष्टीकरण के इर्द-गिर्द राजनीतिक इंजीनियरिंग मचलाती-मटकाती जाती रही.
2014 के अंतिम दिनों में बनी रघुवर सरकार ही एकमात्र उदाहरण है, जिसने विरोधाभासों के बावजूद पूरी अवधि तक काम किया. बाकी सभी 12 सरकारें उलझनों के झूले में झूलती रहीं. झारखंड गठन के बाद 15 नवंबर 2000 को बनी पहली सरकार भी इन पेंगों से अलग नहीं रही. उस काल में दो बार एनडीए सरकारें बनानी पड़ी. यही वह दौर था, जब राज्य में मुख्यमंत्री सहित 12 सदस्यीय कैबिनेट का निर्धारण हुआ, अन्यथा बाबूलाल मरांडी के नेतृत्ववाली पहली एनडीए सरकार में दो राज्य मंत्रियों और स्वतंत्र प्रभार वाले आठ राज्य मंत्रियों सहित 26 मंत्री बनाये गये थे. सीएम समेत 27 हुए. आपसी तनावों में इस सरकार का पतन हुआ तो अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार-2 की कैबिनेट में स्वतंत्र प्रभार वाले दो राज्य मंत्रियों सहित 26 माननीय थे. संविधान के 91वें संशोधन के परिणामस्वरूप कैबिनेट के नये स्वरूप-निर्धारण के बाद 4 जून 2004 को 12 मंत्रियों से इस्तीफा करा लिया गया, 30 जून 2004 को तत्कालीन राजस्व मंत्री मधु सिंह को बर्खास्त कर दिया गया और नये प्रावधान के अनुरूप कैबिनेट की ताकत मुख्यमंत्री सहित 12 सदस्यों तक सीमित कर दी गई.
झारखंड विधानसभा के पहले चुनाव के बाद टर्म पूरा होने तक चार सरकारें बनीं. दूसरे चुनाव के बाद 2009-14 के बीच तीन सरकारें बनाने की नौबत आई. उसी दौर के अंतिम 17-18 महीने के लिए 12 जुलाई 2013 को हेमंत सोरेन का मुख्यमंत्री के रूप में उदय हुआ. तकरीबन आठ महीने बाद 19 फरवरी 2014 को चंद्रशेखर दुबे की कैबिनेट से बर्खास्तगी हुई. ऐसे ही 6 जुलाई 2014 को साइमन मरांडी कैबिनेट से रुखसत कर दिये गये. उग्रवादी संगठनों से संबंध के आरोपों से लदे योगेंद्र साव को उसी साल 12 सितंबर को इस्तीफा करना पड़ा. इन तीनों रिक्तियों की पूर्ति अलग-अलग तारीखों में क्रमशः केएन त्रिपाठी, बन्ना गुप्ता और लोबिन हेम्ब्रम से की गई. बन्ना गुप्ता ही अकेले शख्स हैं, जो हेमंत सरकार की दूसरी और तीसरी पाली सहित चंपाई कैबिनेट में भी जगह पा सके. तबतक क्या, बाद की रघुवर सरकार तक खींचतान की स्थिति यह रही कि दो, तीन, चार चरणों में कैबिनेट पूरी की जाती थी.
2019 के चुनाव में यूपीए को बहुमत मिलने से उम्मीद बंधी थी कि 2014 में बनी एनडीए सरकार की नाईं यह भी अपना कार्यकाल पूरा करेगी. लेकिन ऐसा हो न सका. चार साल तक कई शंकाओं-आशंकाओं के बीच हेमंत सरकार चलती रही, लेकिन फरवरी 2024 से अबतक इस राज्य को दो सरकारें देखनी पड़ी. यानी साढ़े चार साल में तीन सरकारें सामने आईं. यह अलग बात है कि 2005 और 2009 के बाद छठे-छमासे बननेवाली अलग-अलग गुण-धर्म की सरकारों के बजाय इस बार एक ही राजनीतिक गोत्र-वर्ण की सरकारें बनीं. लेकिन इतिहास में यह दर्ज हो गया कि विधानसभा के पांचवें कार्यकाल में तीन सरकारें बनाने की नौबत आई, कारण चाहे जो रहा हो. इस बार के अपने दूसरे कार्यकाल में 8 जुलाई को जब हेमंत सोरेन विश्वासमत प्राप्त कर रहे थे तो निवर्तमान मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने ठीक ही कहा, यह राज्य राजनीति की प्रयोगशाला बना दिया गया है.
विधानसभा के इस कार्यकाल के पूरा होने में लगभग छह महीने शेष हैं. यदि महाराष्ट्र और हरियाणा के साथ ही चुनाव करा दिया गया तो यह अवधि और सिमट जाएगी. रांची के बड़गाईं अंचल की 8.86 एकड़ अहस्तांतरणीय भुईंहरी जमीन कथित रूप से हथियाने के जिस मामले में हेमंत को ईडी ने 31 जनवरी को गिरफ्तार किया था, उसे ईडी सुप्रीम कोर्ट में ले गया है. हेमंत को उस मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने 28 जून को नियमित जमानत दी थी. इसी कारण वे दोबारा सत्ता शीर्ष पर आसीन हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट के रूख पर उनका वर्तमान और भविष्य निर्भर करेगा. यूं ईडी के आसामी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गिरफ्तारी के बावजूद मार्च से ही जेल से सरकार चला रहे हैं. ईडी की याचिका पर कोई कार्रवाई होती है, हेमंत की गिरफ्तारी होती है तो झारखंड विधानसभा के चुनाव में इंडिया ब्लॉक को विक्टिम कार्ड चलने का मौका मिल जाएगा. हेमंत ने जमानत मिलते ही सीएम की कुर्सी हासिल कर दोहरी चाल चल दी है. सामान्य स्थिति में विक्टिम कार्ड उनके पास है, यदि ईडी आदि ने कोई असामान्य स्थिति बनाई तो यह विक्टिम कार्ड और वजनी हो जाएगा.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
![](https://lagatar.in/wp-content/uploads/2024/07/neta.jpg)
![](https://lagatar.in/wp-content/uploads/2024/07/sarla.jpg)
Leave a Reply