Ranchi : बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने शायराना अंदाज में सीएम हेमंत सोरेन पर सोशल मीडिया एक्स पर तंज कसा है. उन्होंने लिखा है कि समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध. ट्वीट में आगे लिखा है कि राज्य का मुख्यमंत्री होने के नाते बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर आपको संज्ञान लेकर उचित कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन अफसोस है कि आप सत्ता के लिए घुसपैठियों की गोद में बैठकर झारखंड के गरीब आदिवासियों के अस्तित्व की बलि चढ़ा रहे हैं.
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अब पानी सिर से ऊपर जा चुका है
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध। @HemantSorenJMM जी, राज्य का मुख्यमंत्री होने के नाते बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर आपको संज्ञान लेकर उचित कारवाई करनी चाहिए थी, लेकिन अफसोस है कि आप सत्ता के लिए घुसपैठियों की गोद में बैठकर… pic.twitter.com/yLFOdLJsbd— Babulal Marandi (@yourBabulal) July 18, 2024
आगे लिखा है कि झारखंड में बांग्लादेशी मुसलमानों के घुसपैठ जैसे अति संवेदनशील मुद्दों पर आपकी चुप्पी जेएमएम-कांग्रेस सरकार के आदिवासी मूलवासी विरोधी मानसिकता का सबूत दे रही है।पाकुड़ जिले के तारानगर गांव में घुसपैठियों द्वारा हिंदू परिवारों पर हमला किया गया है. स्थिति इतनी भयावह है कि इन हिंदू परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जिला प्रशासन को दल-बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचना पड़ा है. डेमोग्राफी बदलने से पाकुड़ के स्थानीय मूलवासी अपने ही घर में घुसपैठियों के आतंक से खौफजदा हैं. अब पानी सर से उपर जा चुका है. यथाशीघ्र घुसपैठियों को चिन्हित कर उन्हें राज्य से बाहर भेजने के कदम उठाएं, अन्यथा झारखंड की जनता आपको सत्ता से खदेड़ने का काम करेगी.
सीएम के पास देश भ्रमण के लिए फुर्सत और वक्त दोनों है
बाबूलाल मरांडी ने दूसरे ट्वीट में लिखा है कि झारखंड कामचोरी चयन आयोग द्वारा पिछले साल 29 और 30 अक्टूबर को ” झारखंड नगरपालिका सेवा संवर्ग संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा -2023” के 921 पदों पर नियुक्ति के लिए परीक्षा आयोजित की गई थी. परीक्षा के 9 महीने बाद भी अभी तक फाइनल आंसर-की जारी नहीं की गई, रिजल्ट तो दूर की बात है. परीक्षा परिणाम को लेकर अभ्यर्थी राजभवन के पास धरना दे रहे हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है क्योंकि मुख्यमंत्री को देश भ्रमण करने के लिए तो फुर्सत और वक्त दोनों मिल जाता है, परंतु छात्रों की समस्याओं को सुनने तक के लिए न समय है, और न ही फुर्सत.
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