- आजसू ने 1985 को छोड़ दिया या भाजपा ने 1932 स्वीकार कर लिया !
- रघुवर सरकार के समय आजसू ने चलाया था “जन की बात” कार्यक्रम
Ranchi : विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, एनडीए के दो महत्वपूर्ण घटक भाजपा और आजसू के बीच मुद्दों को लेकर गंभीर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. भाजपा इस बात को नहीं भूल पायी है कि वर्ष 2014 का चुनाव गठबंधन के तहत लड़ा गया था. भाजपा-आजसू की सरकार बनी थी. लेकिन पांच सालों तक आजसू विपक्ष की भूमिका में चली गयी थी. सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही आजसू 1985 के मुद्दों पर आ गयी थी. “जन की बात” नाम से पूरे राज्य में अभियान चलाया था, जिसमें आजसू प्रमुख सुदेश महतो शामिल होते थे और उनका लहजा आक्रामक हुआ करता था. 10 लाख पोस्टकार्ड तब के मुख्यमंत्री रघुवर दास को भेजा गया था. 10 साल बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या आजसू ने 1985 के मुद्दे को छोड़ दिया है. यह भी सवाल उठने लगा है कि आजसू इस चुनाव में 1985 की नीतियों को छोड़ कर आगे बढ़ेगी या भाजपा ने उसे स्वीकार कर लिया है.
जातीय जनगणना
इस मुद्दे पर भाजपा और आजसू की राहें जुदा-जुदा हैं. आजसू प्रमुख जातीय जनगणना को लेकर न सिर्फ सहमत रहे हैं, बल्कि पार्टी के अधिवेशन में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठा चुके हैं. यही हाल भोजपुरी, मगही, अंगिका जैसी क्षेत्रीय भाषाओं को लेकर है. आजसू इन भाषओं को क्षेत्रीय भाषा से हटाने की मांग करती रही है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या भाजपा की कोई बातचीत इन दोनों मुद्दों पर हुई है या फिर चुनाव के बाद 2014 वाली स्थिति ही देखने को मिलेगी.
1932 का खतियान व कुरमी मुद्दा
झारखंड के कुरमी शिडयूल ट्राईब (एसटी) में शामिल करने की मांग करते रहे हैं. आजसू भी यही मांग करती रही है. क्या भाजपा ने इस पर अपनी सहमति जता दी है. बात 1932 के खतियान वाले मुद्दे की करें, तो 30 अप्रैल 2023 को हरमू मैदान में आयोजित सभा में सुदेश महतो ने कहा था कि हेमंत सोरेन की सरकार ने कहा था कि वह 1932 का खतियान लागू करेगी, लेकिन गलती से 2023 का खतियान लागू कर दिया. वह जनता के पास जाएंगे और इस मामले में सरकार की नियत के बारे में बताएंगे. सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी और विधायक लंबोदर महतो ने भी इस मुद्दे पर सरकार को खरी-खोटी सुनायी थी. लंबोदर महतो हर सत्र में इसी मुद्दे की तख्ती लेकर विधानसभा के बाहर बैठते हैं. इस मामले में भी भाजपा की नीति बिल्कुल विपरित है. सवाल उठ रहा है कि क्या दोनों में कुछ बात हो गई है.
विशेष राज्य का दर्जा देने की रखी थी मांग
नवंबर 2013 में आजसू के हजारों कार्यकर्ता दिल्ली पहुंचे थे. सुदेश महतो नेतृत्व कर रहे थे. उनकी मांग झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा देने की थी. बीबीसी से बात करते हुए सुदेश महतो ने कहा था कि देश का 40 प्रतिशत खनिज झारखंड में है. लेकिन विकास के पैमाने पर राज्य लगातार पिछड़ रहा है. लिहाजा विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर ही झारखंड का नवनिर्माण हो सकेगा. विशेष राज्य के आंदोलन में भाग लेने के लिए विशेष ट्रेन की भी व्यवस्था की गयी थी. 16 नवंबर को पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने सुदेश महतो के नेतृत्व में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मिलकर अपना मांग पत्र सौंपा था, जबकि यह बात जगजाहिर है कि भाजपा इस तरह की मांगों को लगातार खारिज करती रही है.
वृहद झारखंड
पिछले साल पार्टी के महाधिवेशन में आजसू ने इस बात पर गंभीर चर्चा की थी कि आखिर झारखंड राज्य बना क्यों ? क्यों जरूरी था और बना तो क्या उद्देश्यों की पूर्ति हुई? महाधिवेशन में पार्टी के मुख्य प्रशिक्षक संजय बसु मल्लिक ने कहा था कि झारखंड आंदोलन 1938 में शुरू हुआ, 1950 में इस नाम से पहली पार्टी बनी और आंदोलन जारी रहा. तो क्या अब आंदोलन खत्म हो गया है. मैं समझता हूं कि झारखंड न तो मिला है और न ही झारखंड आंदोलन खत्म हुआ है. आंदोलनकारियों व शहीदों ने जो सपना देखा था, वह पूरा नहीं हुआ है. बिहार से लेकर झारखंड अलग बना, लेकिन पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में झारखंड का जो हिस्सा है, वह अभी भी छूटा हुआ है. इसलिए आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है. क्या झारखंड को लेकर भाजपा भी इसी तरह सोंचती है या आगे भी सोचेगी.