NewDelhi : दहेज उत्पीड़न के मामलों में अदालतें कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सावधानी बरतें. पति के सगे-संबंधियों को फंसाने की प्रवृत्ति को देखते हुए निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक परेशानी से बचाना जरूरी है. सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह टिप्पणी की है. बता दें कि बेंगलुरु की एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी में काम करने वाले इंजीनियर अतुल सुभाष ने पत्नी निकिता सिंघानिया पर उत्पीड़न, जबरन दौलत वसूलने और बच्चे को दूर करने के आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली है.
फैमिली कोर्ट की जज पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया
अतुल सुभाष ने इस मामले की सुनवाई कर रही फैमिली कोर्ट की जज रीता कौशिक पर रिश्वत लेने का आरोप भी लगाया. अतुल सुभाष ने 24 पन्नों का लेटर और एक वीडियो बनाकर आपनी जान दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए की, जिसमें एक महिला द्वारा अपने पति, उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करने से मना कर दिया गया था.
पत्नी ने कहा था, सुसाइड क्यों नहीं कर लेते
अतुल सुभाष ने अपने वीडियो में बताया है कि कोर्ट में जज के सामने उन्होंने कहा कि पत्नी निकिता सिंघानिया और परिवार ने कैसे इल्जाम लगाये हैं मेरे परिवार पर. मुझे मेरे बच्चे से नहीं मिलने दिया जा रहा है. पत्नी खुद घर छोड़कर गयी है. मुझे और मेरी फैमिली को परेशान कर रही है. कहा कि मुझे बैंग्लोर से जौनपुर आना पड़ता है. इस पर जज ने जवाब दिया, क्या हो गया केस डाल दिया तो. तुम्हारी पत्नी है
अतुल के अनुसार उन्होंने जज से कहा कि आप अगर एनसीआरबी का डेटा देखो तो लाखों लोग फाल्स केसेज की वजह से सुसाइड कर रहे हैं. इस पर निकिता ने कहा कि तो तुम भी सुसाइड क्यों नहीं कर लेते? अतुल ने वीडियो में बताया कि यह सुनकर जज को हंसी आ गयी. उन्होंने मेरी पत्नी को बाहर जाने को कहा और कहने लगीं कि ऐसे केसेज सब झूठे होते हैं. ऐसा ही होता है. तुम अपने और अपनी फैमिली के बारे में सोचो. ये केस सेटल कर लो. हम मदद करेंगे.
दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा को लेकर देश में कानूनों पर नयी बहस छिड़ी
अतुल सुभाष की इस तरह की मौत के बाद दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा को लेकर देश में कानूनों पर नयी बहस छिड़ गयी है. न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि ‘न्यायिक अनुभव से यह सर्वविदित तथ्य है कि वैवाहिक विवाद उत्पन्न होने की स्थिति में अक्सर पति के सभी परिजनों को फंसाने की प्रवृत्ति (पत्नी के परिजनों) की होती है कहा कि ठोस सबूतों या विशिष्ट आरोपों के बिना सामान्य प्रकृति के और व्यापक आरोप आपराधिक अभियोजन का आधार नहीं बन सकते. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों को कानूनी प्रावधानों और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने और परिवार के निर्दोष सदस्यों को अनावश्यक परेशानी से बचाने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए.
हाल के वर्षों में देश भर में वैवाहिक विवादों में वृद्धि हुई है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संशोधन के माध्यम से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में धारा 498ए को शामिल किये जाने का उद्देश्य महिला पर उसके पति और उसके परिजनों द्वारा की जाने वाली क्रूरता को रोकना है, ताकि राज्य द्वारा त्वरित हस्तक्षेप सुनिश्चित किया जा सके.
हालांकि पीठ ने माना कि हाल के वर्षों में देश भर में वैवाहिक विवादों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, विवाह संस्था के भीतर कलह और तनाव भी बढ़ रहा है. परिणामस्वरूप, आईपीसी की धारा 498ए (पत्नी के खिलाफ पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, ताकि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध को बढ़ावा दिया जा सके.
हम यह नहीं कह रहे हैं कि क्रूरता झेलने वाली किसी भी महिला को चुप रहना चाहिए
SC का कहना था कि वैवाहिक विवादों के दौरान अस्पष्ट और सामान्य आरोपों की यदि जांच नहीं की जाती है, तो कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग होता रहेगा और पत्नी एवं उसके परिवार द्वारा दबाव डालने की रणनीति को बढ़ावा मिलेगा. इसी क्रम में कोर्ट ने कहा, हम यह नहीं कह रहे हैं कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता झेलने वाली किसी भी महिला को चुप रहना चाहिए और शिकायत करने या कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से खुद को रोकना चाहिए. पीठ ने कहा कि हमारा सिर्फ यह कहना है कि इस तरह के मामलों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने प्राथमिकी खारिज करते हुए माना कि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध के कारण और रंजिश की वजह से मामला दर्ज कराया गया था.