Adityapur (Sanjeev Mehta) : एनआईटी जमशेदपुर में दो दिवसीय द्वितीय राष्ट्रीय सम्मेलन “संरचनात्मक और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग” का समापन शनिवार की देर शाम हुई. यह राष्ट्रीय सम्मेलन सिविल इंजीनियरिंग विभाग, एनआईटी जमशेदपुर द्वारा हाइब्रिड मोड में आयोजित किया गया. जिसमें शामिल मुख्य वक्ताओं ने कहा कि किसी भी देश के विकास के लिए बुनियादी ढांचे की वृद्धि अनिवार्य है. सिविल इंजीनियर राष्ट्रीय निर्माण में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं. वर्तमान सामाजिक आर्थिक विकास में स्थिरता के साथ-साथ बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है. संरचनात्मक और भू-तकनीकी इंजीनियरों को सामग्री चयन, विश्लेषण और डिजाइन तकनीकों, संरचनाओं के संचालन और रख-रखाव के माध्यम से बुनियादी ढांचे के विकास में विशेष कौशल, विशेषज्ञता और चतुराई की आवश्यकता होती है.
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यह सिविल इंजीनियरिंग पेशेवरों जैसे छात्रों, विद्वानों, संकायों, शोधकर्ताओं और सलाहकारों के बीच बातचीत की मांग करता है ताकि नवीनतम तकनीकों और ताजा निर्माण प्रौद्योगिकियों के आदान-प्रदान के माध्यम से सतत विकास प्राप्त किया जा सके. सम्मेलन में आईआईटी और एनआईटी के प्रमुख वक्ता शामिल थे. इस राष्ट्रीय सम्मेलन के संरक्षक प्रो.(डॉ.) गौतम सूत्रधर निदेशक एनआईटी जमशेदपुर थे. जबकि उनके साथ अनुसंधान और परामर्श डीन प्रो. एमके सिन्हा, सम्मेलन के अध्यक्ष प्रो. अनिल कुमार चौधरी, संयोजक डॉ. संजय कुमार, विभागाध्यक्ष सिविल इंजीनियरिंग, आयोजन सचिव प्रो. वीरेंद्र कुमार, सिविल इंजीनियरिंग विभाग, डॉ. एस. माधुरी, सिविल इंजीनियरिंग विभाग, डॉ. एके चौधरी, सिविल इंजीनियरिंग विभाग, डॉ. के. के. शर्मा, सिविल इंजीनियरिंग विभाग शामिल रहे.
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इस “संरचनात्मक और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग” सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य उन्नत संरचनात्मक सामग्री, स्मार्ट सामग्री और संरचनाएं और नींव, निर्माण प्रौद्योगिकी में स्थायी सामग्री, औद्योगिक कचरे का उपयोग, ग्रीन कंक्रीट, भूकंप प्रतिरोधी विश्लेषण और डिजाइन, संरचनाओं और नींव का विश्लेषण और डिजाइन, भूमि सुधारों में विकास, ढलान स्थिरता और भूस्खलन शमन, भू-समृद्ध सामग्री और सुदृढ़ मृदा संरचनाएँ शामिल हैं. सम्मेलन में प्रतिभागियों द्वारा प्राप्त अनुसंधान पत्रों की संख्या 40 रही. जिसमें पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम, गोवा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र आदि के प्रतिभागी शामिल थे. 40 अनुसंधान पत्रों में प्रस्तुति के लिए स्वीकृत अनुसंधान पत्रों की संख्या 31 रही.
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